सम्मान ऐसी कीमती वस्तु जिसे देने में आपकी जेब से कुछ नहीं जाता

by Yashwant Pandey
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साल 2005
मैं हिंदुस्तान की आर्किटेक्चरल हार्डवेयर की सबसे बड़ी कंपनी में झारखंड और बिहार का सेल्स देखता था। पूरा झारखंड और बिहार घूमता रहता था। महीने में लगभग पच्चीस दिन टूर पर होता था। कंपनी की ऑफिस रांची और पटना दोनों में ही थी। मेरा घर रांची है, तो मैंने बेस स्टेशन रांची बना रखा था।
पहली बार धनबाद गया था। मेरे डिस्ट्रीब्यूटर थे धनबाद में, फास्ट मूविंग कंज्यूमर प्रोडक्ट्स के, बहुत सारे कंपनियों का काम करते थे। अच्छी नेटवर्क थी और अच्छे पैसे वाले थे। पहली बार उनके पास पहुंचा था, थोड़ी देर बात हुई उनसे, कंपनी और कंपनी की पॉलिसी की बुराई कर रहे थे। उनके अनुसार सारी कंपनियां उन्हें लूटने में लगी हुई थी। और वह किसी भी कंपनी से बिजनेस करके कमा नहीं पा रहे थे। लगभग एक घंटा उन्होंने रोना रोया, किस तरह से मेरी कंपनी से बिजनेस करके उन्हें लगातार घाटा हो रहा है। और आश्चर्य की बात यह है इस दौरान उन्होंने नई गाड़ी भी खरीदी थी, नया घर भी बनाया था, अच्छे कपड़े भी पहने हुए थे। ऑफिस भी शानदार थी, लेकिन वह लगातार नुकसान में थे, ऐसा उनका मानना था।
एक घंटा उनकी कहानी सुनने के बाद मैंने कहा मार्केट चलते हैं। कुछ रिटेलर से भी बात किया जाए, अब वह थोड़ा संभल गए, उनका कहना था मार्केट जाकर कोई फायदा नहीं है। रिटेलरस भी आपको वही बताएंगे जो मैं आपको बता रहा हूं। मैंने कहा कोई बात नहीं मैं आया हूं, चल कर कम से कम मिल तो लिया जाए। बड़े बेमन से मुझे लेकर एक रिटेलर के पास पहुंचे।
बहुत ही साफ-सुथरी, वेल मेंटेंड एक रिटेल स्टोर दो लोग बैठे हुए थे, काउंटर पर बेहद साफ-सुथरे कपड़े, करीने से कटे हुए बाल क्लीन शेव मुस्कुराता हुआ चेहरा। मैंने उन्हें नमस्कार कर अपना कार्ड दिया, दोनो काउंटर से खड़ा होकर मुझसे हाथ मिला कर कहा, अरे वाह! आपकी कंपनी से भी लोग आने लगे, मुझे बहुत अच्छा लगा। हमें बैठने को कहा, फिर इधर उधर की बात शुरू हुई, उन्होंने कोल्ड ड्रिंक्स मंगवायी। थोड़ा बहुत काम की भी बातचीत हुई, मैंने जब उनसे बिजनेस बढ़ाने की बात की तो उनका कहना था अगर मेरी कंपनी उन्हें डिस्प्ले दे देती है तो मेरे कंपनी के प्रोडक्ट बेचना उनके लिए आसान हो जाएगा। और हमारा बिज़नस बढ़ सकता है। मैंने डिस्प्ले अरेंज करने का कमिट किया, और अगले महीने उनके पास एक अच्छे डिस्प्ले लग गई।
धीरे-धीरे उन दोनों भाइयों से से मेरी अच्छी जान पहचान हो गई। गुजराती थे, उम्र अधिक नहीं थी, लेकिन बड़े ही मृदुभाषी और सुलझे हुए व्यापारी थे। अच्छे पढ़े लिखे थे, और जो सबसे अच्छी बात थी। चाहे ग्राहक हो या विक्रेता, उन्हें बहुत सम्मान देते थे। धीरे धीरे उनसे बहुत अच्छे रिश्ते नाते हो गए। एक दिन खाना खाने के दौरान मैंने उनसे पूछा, मैं देखता हूं कि आप किसी भी वेंडर को बहुत सम्मान देते हैं और चाहे बिजनेस ना भी हो आप उनको सॉफ्ट ड्रिंक, कॉफी इत्यादि प्रोवाइड करते हैं। उनका कहना था, देखिए सर यह गुजराती कल्चर है कि अगर हमारे पास कोई आया है, तो हम उन्हें सम्मान दें, और कम से कम एक गिलास पानी दें, काम हो या ना हो लेकिन सम्मान तो जरूर होना चाहिए। यह गुजरात की संस्कृति का हिस्सा है, और हम इसको स्ट्रिक्टली फॉलो करते हैं। आज काम नहीं हो रहा है, लेकिन कंपनियों के बीच हमारी फर्म की रेपुटेशन बहुत अच्छी है। और कोई भी नयी कंपनी हमारे शहर में आती है तो हमारी फर्म के साथ काम करना चाहती है।
यह मेरा पहला परिचय था गुजराती बिजनेस हाउस के साथ। मैं डॉमेस्टिक मार्केट छोड़कर इंटरनेशनल मार्केट में चला गया। अफ्रीका में मुझे बहुत से गुजराती बिजनेसमैन मिले, बहुत लोगों के साथ कोई काम नहीं हुआ, लेकिन उन्होंने मुझे बहुत सम्मान दिया। मैं नौकरी छोड़ कर के अपना बिजनेस शुरू किया, गुजरात से कुछ खरीददारी शुरू की और इस सिलसिले में कुछ दफा गुजरात भी गया। चाहे बिजनेस हुआ या ना हुआ लेकिन उन्होंने हमें पूरा सम्मान दिया। गुजरात का समृद्धि का राज शायद यही है।

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