हिमालय के बेहतरीन ट्रेक

by Neha Mehta
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उत्तर भारत, नेपाल, चीन देश में फैला हिमालय पर्वत कई मायनों में बेहद महत्वपूर्ण है। हिमालय से कई नदियां निकलती हैं, जो कई लोगों तक पानी का संचार करती हैं, हिमालय में कई औषधियाँ पाई जाती हैं। इसके अलावा साहसिक खेलों के मामले में भी हिमालय कई मायनों में बेहद रोचक जगह हैं। इसी हिमालय की गोद में कई बेहद खूबसूसरत ट्रेक भी हैं जिनके बारे में हम इस पोस्ट में बात करेंगे।

केदारनाथ ट्रेक, उत्तराखंड (Kedarnath Trek, Uttarakhand)

केदारनाथ उत्तराखंड में स्थित भगवान शिव के पंच केदार केदारनाथ, मध्यमहेश्वर, तुंगनाथ, रुद्रनाथ और कल्पेश्वर में प्रथम केदार के रूप में पूजा जाता है। इसके अलावा यह मंदिर उत्तराखंड में की जाने वाली छोटा चार धाम यात्रा का भी हिस्सा है। यह केदारनाथ मंदिर भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से ग्यारवें ज्योतिर्लिंग के रूप में भी पूजा जाता है। केदारनाथ भगवान शिव के सबसे प्रसिद्ध मन्दिरो में से एक है।

यह मंदिर साल में सिर्फ 06 महीने के लिए ही खुला रहता है। और इस बीच यहाँ लाखों श्रद्धालु आते हैं। बाकी के 06 महीनें केदारनाथ की पूजा उखीमठ मंदिर के ओंकारेश्वर मंदिर में की जाती है।

केदारनाथ धाम पहुँचने के लिए लगभग 16-17 किलोमीटर का पैदल मार्ग तय करके जाना पड़ता है। एक समय था जब केदारनाथ की यात्रा करने वाले श्रद्धालुओं को फिटनेस सर्टिफिकेट दिखाना जरूरी था क्योंकि उस समय केदारनाथ की पैदल बहुत ज्यादा कठिन थी। लेकिन अब 2013 की प्राकृतिक आपदा के बाद केदारनाथ के पैदल मार्ग को बहुत आसान बना दिया गया है। वर्तमान में आप केदारनाथ की 16 किलोमीटर पैदल यात्रा बड़े आराम से कुछ घंटों में ही पूरी कर सकते है।

केदारनाथ की पैदल यात्रा को आप आसान और मध्यम स्तर का पैदल ट्रेक मान सकते है। आसान इसलिये की वर्तमान में केदारनाथ ट्रेक के लिए पूरे रास्ते मे पक्की सड़क का निर्माण कर दिया गया है। और मध्यम इसलिए कि 16 किलोमीटर ले ट्रेक के दौरान आपको बहुत सारी जगहों पर बेहद स्टीप चढ़ाई करनी पड़ सकती है।

केदारनाथ जाने से पहले आपको पंजीकरण करना आवश्यक है। आप ऑनलाइन या ऑफलाइन दोनों तरह से पंजीकरण कर सकते हैं।

केदारनाथ का ट्रैक गौरीकुंड से शुरु होता है, गौरीकुंड से केदारनाथ की दूरी 16 किलोमीटर है। ट्रेक शुरू करने से पहले आपको गौरीकुंड से 05 किलोमीटर पहले सोनप्रयाग में बने हुए चेक पोस्ट पर अपनी केदारनाथ यात्रा पंजीकरण और मेडिकल सर्टिफिकेट दिखाने होते है।

साथ ही केदारनाथ ट्रेक आप सुबह 04:00 बजे से लेकर दोपहर के 01:30 बजे तक ही शुरू कर सकते है। इसके बाद आपको केदारनाथ ट्रेक करनी की अनुमति नहीं दी जाएगी। क्योंकि केदारनाथ ट्रेक की दूरी बहुत ज्यादा है इस वजह से अगर आप देरी से ट्रेक शुरू करते है तो फिर ट्रेक के दौरान रात होने की बहुत ज्यादा संभावना है। इस के साथ ही केदारनाथ का यह क्षेत्र केदारनाथ वन्यजीव अभ्यारण्य का भी हिस्सा है इसलिए सुरक्षा कारणों की वजह से भी केदारनाथ ट्रेक देरी से शुरू करने की अनुमति नहीं दी जाती है।

केदारनाथ ट्रेक के दौरान कई पड़ाव भी बने हुए है जहाँ पर ट्रेक के दौरान आराम कर सकते है और आपको यहाँ पर खाने-पीने की सुविधा भी मिल जाएगी। सबसे पहला पड़ाव जंगल चट्टी दूसरा पड़ाव भीमबली तीसरा पड़ाव लिनचौली हैं। लिनचौली के बाद केदारनाथ बेस कैंप आता है। केदारनाथ बेस कैंप से केदारनाथ मंदिर की दुरी मात्र 01 किलोमीटर है।

केदारनाथ ट्रेक आसान से माध्यम श्रेणी के ट्रेक में आता है, पुरे ट्रेक के दौरान आपको कभी-कभी एक समतल रास्ता मिलेगा और कभी-कभी एकदम सीधी खड़ी चढाई आ जाएगी। ट्रेक के दौरान आप को कई जगहों पर ढलान भी मिल सकती है।

चंद्रशिला ट्रेक, उत्तराखंड (Chandrashila Trek, Uttarakhand)

उत्तराखंड में तृतीय केदार के नाम से प्रसिद्ध तुंगनाथ से लगभग 1.5 किलोमीटर की पैदल दूरी पर स्थित चंद्रशिला का इतिहास रामायण काल से भी पुराना माना जाता है। तुंगनाथ पर्वत में स्थित चंद्रशिला का सिर्फ पौराणिक महत्व ही नहीं, बल्कि चंद्रशिला उत्तराखंड के सबसे प्रसिद्ध ट्रेकिंग डेस्टिनेशन में से एक माना जाता है।

चंद्रशिला शिखर से हिमालय की अनेक प्रमुख पर्वत श्रृंखलाएं दिखाई देती है जिनमें से नंदादेवी, चौखम्बा, बुग्याल, त्रिशूल, केदार और बन्दरपूँछ आदि प्रमुख मानी जाती है।

चंद्रशिला के बारे में कहा जाता हैं कि, राजा दक्ष प्रजापति के 27 कन्याएं थी। उन सभी मे रोहिणी नाम की कन्या से चंद्रमा बहुत ज्यादा प्रेम करते थे, जब इस बात का पता राजा दक्ष प्रजापति को चला तो उन्होंने चंद्रमा को श्राप दे दिया। राजा दक्ष प्रजापति के श्राप की वजह से चंद्रमा को क्षय रोग हो गया। क्षय रोग से मुक्ति पाने के लिए चंद्रमा तुंगनाथ के पास स्थित इस स्थान पर आकर भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या की जिससे प्रसन्न होकर भगवान शिव चंद्रमा को क्षय रोग से मुक्त होने का आशीर्वाद देते है।

ऐसा कहा जाता है चंद्रमा द्वारा की गई कठोर तपस्या की वजह से इस स्थान को चंद्रशिला कहा जाता है। चंद्रशिला के शिखर पर एक बहुत छोटा-सा मंदिर भी बना हुआ है। चंद्रशिला समिट पूरा होने के बाद यहाँ आने वाले सभी ट्रेकर्स इस मंदिर के दर्शन जरूर करते है।

रामायण काल से जुड़ी हुई एक पौराणिक कथा के अनुसार रावण का वध करने के बाद ब्राम्हण हत्या के अपराध से मुक्त होने के लिए भगवान राम ने भी इस स्थान पर तपस्या की थी।

उत्तराखंड के सबसे प्रसिद्ध ट्रैकिंग डेस्टिनेशन में से एक चंद्रशिला ट्रेक (Chandrashila) की शुरुआत चोपता (Chopta) से शुरू होता है।

चंद्रशिला के शिखर तक पहुंचने के दो प्रमुख रास्ते है। सबसे पहले रास्ते से आप चोपता से तुंगनाथ होते हुए चंद्रशिला के शिखर तक पहुँच सकते है। चंद्रशिला के शिखर तक पहुँचने का यह सबसे छोटा ट्रेक है जो कि मात्र 5.5 किलोमीटर का है। सर्दियों के मौसम में बहुत ज्यादा बर्फबारी की वजह से यह ट्रेक बंद हो जाता है। चंद्रशिला तक जाने वाला यह ट्रेक तुंगनाथ चंद्रशिला ट्रेक ( Tunganath Chandrashila Trek) के नाम से प्रसिद्ध है।

चंद्रशिला तक जाने वाला दूसरा ट्रेक देवरियाताल चंद्रशिला ट्रेक (Deoriatal Chandrashila Trek) के नाम से  प्रसिद्ध है। देवरियाताल चंद्रशिला ट्रेक की कुल दूरी 27 किलोमीटर है जो कि उखीमठ से 12 किलोमीटर की दूरी पर स्थित सरी गाँव से शुरू होता है।

संदकफू ट्रेक, दार्जिलिंग (Sandakphu Trek, Darjeeling)

दार्जिलिंग में सैंडकैफू ट्रेक सबसे ऊंचे और सबसे बड़े ट्रेकों में से एक है, जो एक छोटे से पर्यटक शहर माने भंजंग से शुरू होता है, जिसे सैंडकैफू के प्रवेश द्वार के रूप में भी जाना जाता है।

दुनिया भर के ट्रेकर्स इस ट्रेक के लिए बहुत दीवाने है क्योंकि पश्चिम बंगाल की सबसे ऊंची चोटी संदकफू पर पहुंचकर आप दुनिया की पांच सबसे ऊंची चोटियों में से चार का शानदार नजारा देख सकते हैं।

ऐसा कहा जाता है कि ट्रैकिंग का सबसे अच्छा दृश्य कंचेंदज़ोंगा पर्वत से दिखता है। आप कार से या ट्रैकिंग करते हुए इस चोटी के शिखर तक पहुंच सकते हैं।

इस ट्रेक का पूरा मार्ग काफी साहसी और खूबसूरत है क्योंकि घास घास के मैदानों से होकर गुजरता है, जो घने जंगलों से घिरा है,और सिंगालीला राष्ट्रीय उद्यान जो रमणीय रोडोडेंड्रोन और विदेशी लाल पांडा की किस्मों का घर है। यह एक जबरदस्त मजेदार और साहसिक अनुभव है।

मणिबंजन से शुरू होने वाली इस पहाड़ी का रास्ता करीब 51 किमी लंबा और खूबसूरत है। यहां हिमालयन कोबरा लिली की बहुतायत के कारण संदकफू को “जहरीले पौधों के पहाड़” के रूप में भी जाना जाता है। शिखर तक पहुंचने से पहले ट्रेक कई अलग-अलग इलाकों से होकर गुजरता है, जिनमें चुनौतीपूर्ण घाटियां, रोडोडेंड्रोन, मैगनोलियास के साथ बनी जमीनों के हरे-भरे मैदान हैं।

हर की दून ट्रेक, उत्तराखंड (Har ki Dun trek, Uttarakhand) 

उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले के गोविन्द बल्लभ पंत राष्ट्रीय उद्यान में स्थित हर की दून ट्रेक, उत्तराखडं के सबसे सुन्दर ट्रेक्स में एक माना जाता है। हर की दून हिमालय पर्वत में स्थित एक बहुत ही सुन्दर घाटी हैं। हर की दून का शाब्दिक अर्थ हिंदू धर्म में हर का मतलब होता है देवता और दून का मतलब होता है घाटी। सरल शब्दों में कहा जाए तो हर की दून का मतलब देवताओ की घाटी (Velly of Gods)। स्थानीय लोगों में ऐसी मान्यता है की इस स्थान पर देवता निवास करते है इसलिए को हर की दून कहा जाता है।

हर की दून का इतिहास महाभारत काल के समय का माना जाता है। स्थानीय लोगों का मानना है कि महाभारत का युद्ध समाप्त होने के बाद पांडव इस स्थान से स्वर्ग गए थे। कहा जाता है युधिष्ठिर हर की दून के पास स्थित स्वर्गारोहिणी पर्वत से वह सशरीर स्वर्ग गए थे।

इसके अलावा हर की दून के आस पास रहने वाले दुर्योधन की पूजा करते है। यहाँ रहने वाले स्थानीय निवासियों के अनुसार दुर्योधन एक बहुत अच्छे शासक थे। इसलिए हर की दून के पास स्थित ओसला गांव में दुर्योधन का प्राचीन मंदिर भी बना हुआ है। इन सब के अलावा भी हर की दून के आस पास के गाँव में महाभारत काल से जुड़े हुए घटनाक्रम का प्रभाव भी देखने को मिलता है।

हर की दून ट्रेक हिमालय की स्वर्गारोहिणी पर्वत श्रृंखला की तलहटी में स्थित सुन्दर घाटी की यात्रा करते है। इसी वजह से हर की दून का ट्रेक एक आसान श्रेणी का ट्रेक माना जाता है। हर की दून ट्रेक के दौरान उत्तराखंड के कुछ ऐसे गाँव से होकर गुजरते है जिन्हे आधुनिकता आज भी नहीं छू पाई है। आज भी इन गाँव में रहने वाले लोग पुराने तौर-तरीकों से ही अपना जीवन यापन करना पसंद करते है। और अपने आपको जितना हो सके उतना ज्यादा प्रकृति के नजदीक रखने की कोशिश करते है। इन सब के अलावा हर की दून के आसपास रहने वाले लोग यहाँ ट्रेक करने आने वाले लोगो का दिल खोल कर स्वागत करते है।

इस ट्रैक को पूरा करने में सामान्य रूप से 7-8 दिन का समय लग सकता है। हर मौसम के समय हर की दून ट्रेक में आपको यहाँ की अलग-अलग खूबसूरती देखने को मिलेगी। इसलिए साल के किसी भी महीने में यहाँ ट्रेकिंग का आनंद लिया जा सकता हैं। लेकिन फिर भी मौनसून के समय यहाँ ट्रेकिंग से बचना चाहिए क्योंकि पहाड़ों में अक्सर इस मौसम में भूस्खलन का खतरा बना रहता है।

हर की दून प्राकृतिक रूप से बहुत सुंदर घाटी है इसको देख कर लगता है कि मानो ईश्वर ने अपने हाथों से इस जगह का निर्माण किया है। प्राकृतिक सुंदरता के अलावा हर की दून से हिमालय की कुछ प्रमुख पर्वत श्रृंखलाओं स्वर्गारोहिणी, बन्दरपुच्छ और काला नाग (ब्लैक पीक) आदि के दृश्य दिखाई देते हैं।

हर की दून ट्रेक के पहले दिन आपको देहरादून से 190 किलोमीटर की दुरी पर स्थित साँकरी गाँव तक पहुँचना है।  बस द्वारा देहरादून से साँकरी पहुंचने में आपको 8-10 घंटे का समय लगेगा। दूसरे दिन के ट्रेक साँकरी से सीमा गांव जिसकी दूरी 26 किलोमीटर है, पहुंचना होता है। जिसमें 12 किलोमीटर ड्राइव के बाद आपको सीमा गाँव तक पहुँचने के लिए 14 किलोमीटर का ट्रैक पैदल करके पहुंचा जाता है।

अगले दिन सुबह जल्दी सीमा गाँव से 12 किलोमीटर दूर हर की दून की तक का रास्ता तय करना होता है। इस 12 किलोमीटर को 2 भागों में बांट सकते है। सीमा गाँव से 06 किलोमीटर की दूरी पर स्थित कलकती धार हर की दून ट्रेक का पहला स्टॉप है। कलकती धार से स्वर्गारोहिणी और बन्दरपुच्छ जैसी पर्वतमालाएं साफ दिखाई देने लग जाती हैं। कलकती धार से हर की दून ट्रेक के पूरे दृश्य ही बदल जाते है। कलकती धार से 06 किलोमीटर का ट्रैक करने के बाद स्वर्गारोहिणी पर्वत की तलहटी में स्थित हर की दून जैसी खूबसूरत जगह पर पहुँच जाते है।

हर की दून ट्रेक का चौथे दिन सुबह जल्दी उठ कर स्वर्गारोहिणी पर्वत के पीछे हो रहे सूर्योदय के आंनद ले सकते है। और इसके अलावा हर की दून से 3 किलोमीटर दूर स्थित जौंधर ग्लेशियर भी देखने जा सकते है। हर की दून से 3 किलोमीटर की पर स्थित मनिंदा ताल एक बेहतरीन जगह है। हर की दून में ट्रेकर्स 1 से 2 दिन यहाँ एक्सप्लोर करने के लिए लेते हैं।

हर की दून ट्रेक के पांचवें दिन वापस देहरादून की तरफ रवाना होते है। यहाँ से 12 किलोमीटर में वापस सीमा गांव की तरफ ना जाकर एक नया रुट लेते है जो की ओसला गांव की और जाता है। उत्तराखंड में स्थित ओसला गांव अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए बहुत ज्यादा प्रसिद्ध है। यहाँ के लोग आज भी सांस्कृतिक रूप से बेहद समृद्ध है। आज भी ओसला गांव में बने हुए अधिकांश घर लकड़ी के है जो की पर्यटन के हिसाब से भी इस जगह को बाकि और पर्यटन स्थलों से अलग बनाते है।

ओसला गांव में ही महाभारत काल के समय से बना हुआ दुर्योधन का मंदिर है जो की जुलाई और अगस्त महीने में खुलता है।

अगले दिन सुबह साँकरी के लिए रवाना होना होता है। ओसला से साँकरी रवाना होने पर पहला स्टॉप गंगाड गांव है। ओसला से गंगाड गांव की दुरी मात्र 04 किलोमीटर है। गंगाड से 08 किलोमीटर की पैदल दुरी पर स्थित तालुका है। तालुका से जीप की सहायता से साँकरी तक पहुँच सकते है। और अगले दिन साँकरी से देहरादून तक का वही मार्ग फिर तय करना होता हैं।

इस पूरे ट्रेक के दौरान अप रुकने के लिए यहाँ अलग-अलग स्टॉप पर बने होमस्टे में रुक सकते हैं।

 

एवरेस्ट बेस कैम्प ट्रेक, नेपाल (Everest base camps trek, Nepal)

दुनिया की सबसे ऊँची चोटी माउंट एवरेस्ट नेपाल और तिब्बत की सीमा में है। इस प्रकार इसके दो बेस कैंप हैं। एक दक्षिणी बेस कैंप जो कि नेपाल में स्थित है और दूसरा उत्तरी बेस कैंप जो कि तिब्बत में स्थित है। इन बेस कैंपों का प्रयोग पर्वतारोही माउंट एवरेस्ट के पर्वतारोहण के लिये आधार के तौर पर करते हैं।

यहाँ भोजन-आपूर्ति आदि वहाँ के स्थानीय निवासी शेरपा उपलब्ध कराते हैं।

दक्षिणी बेस कैंप (South Base Camp in Nepal)

इस बेस कैम्प की लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता हैं कि 2015 में, 40000 से ज्यादा ट्रैकर्स ने एवरेस्ट बेस कैंप की ट्रैकिंग की।

यह ट्रैक दुनिया के सबसे प्रसिद्ध ट्रैकिंग मार्गों में से एक है और प्रतिवर्ष हज़ारों ट्रैकर्स यहाँ आते हैं। ट्रैकर्स समय बचाने के लिये काठमांडू से लुकला तक वायुमार्ग से भी आ सकते हैं और लुकला के बाद अपनी ट्रैकिंग आरंभ कर सकते हैं। कुछ ट्रैकर्स जीरी या फाफलू तक सड़क मार्ग से आकर आगे की यात्रा पैदल करते हैं।

लुकला से दूधकाशी नदी के साथ-साथ ट्रैकिंग करते हुए आगे बढ़ते हैं और नामचे बाजार पहुँचते हैं। इसमें दो दिन लग जाते हैं, लेकिन अच्छी फिटनेस वाले ट्रैकर्स इसे एक दिन में भी तय कर सकते हैं। नामचे बाज़ार इस ट्रैकिंग मार्ग का सबसे बड़ा शहर है। इसके बाद एक दिन में तेंगबोचे पहुँचते हैं, दूसरे दिन डिंगबोचे तीसरे दिन लोबुचे या घोरकक्षेप और चौथे दिन बेस कैंप पहुँच जाते हैं।

यह बेस कैम्प कई बार भूकंप और भूस्खलन से तबाह भी हुआ है।

उत्तरी बेस कैंप (North Base Camp in Tibet)

उत्तरी बेस कैंप चूँकि तिब्बत (चीन) में स्थित है, इसलिये वहाँ जाने के लिये विशेष परमिट की आवश्यकता होती है। ये परमिट हमेशा ल्हासा या चीन के किसी अन्य हिस्सों में स्थित विभिन्न मान्यताप्राप्त ट्रैवल कंपनियों के माध्यम से ही लिये जा सकते हैं। इसमें गाड़ी, ड्राइवर और गाइड़ लेना आवश्यक होता है, जो वह कंपनी उपलब्ध कराती है। सामान्य पर्यटकों के लिये बेस कैंप पर्वतारोहियों द्वारा प्रयुक्त बेस कैंप से थोड़ा पहले है।

 



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