ऐपण या अल्पना एक लोक चित्रकला है। जिसका कुमाऊँ के घरों में एक विशेष स्थान है। ये उत्तराखण्ड की एक परम्परागत लोक चित्रकला है। यह चित्रकला उत्तराखण्ड के कुमाऊँ क्षेत्र से सम्बन्धित है। ऐपण शब्द संस्कृत के शब्द अर्पण से व्युत्पादित है। ऐपण का वास्तविक अर्थ है लिखायी या लिखना। ऐपण मुख्यतः तीन अंगुलियों से लिखा जाता है। कुमाऊँ का कोई भी त्यौहार और धार्मिक अनुष्ठान ऐपण के बिना अधूरा माना जाता है। कुमाउनी महिलाएं सभी धार्मिक अनुष्ठान व त्यौहारों की शुरुआत अपने आँगन में ऐपण बना कर करती हैं। ऐपण त्यौहार, पूजा और बहुत से अवसर जैसे जन्म, विवाह, जनेऊ और कुछ कारण मे मृत्यु में भी बनाये जाते हैं। ऐपण में बहुत से ज्यामिती रेखा आरेख व देवी-देवताओं के चित्र प्रयोग कर एक सुन्दर रूप दिया जाता है। ऐपण दीवारों व कपड़े आदि में बनाये जाते हैं।
ऐपण गेरू व बिस्वार से बनाया जाता है। गेरू सिंदूरी रंग की मिट्टी होती है जिसे भिगो कर उस स्थान पर रंगा जाता है जहाँ ऐपण बनाना होता है। गेरू से रंग कर ऐपण का आधार तैयार किया जाता है। फिर उसके ऊपर से बिस्वार जो रात भर भिगो कर पिसे गये चावल या चावल के आटे से तैयार एक घोल होता है, से कलात्मक चित्रों के रूप में बनाया जाता है।
महिलाएं अपनी पुत्री और बहू को ऐपण सिखाती हैं जिससे यह कला एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक हस्तांतरित होती है। कुमाऊँ क्षेत्र मे मुख्यतः तीन प्रकार के ऐपण देखने को मिलते हैं :
सिद्धू- इस प्रकार के ऐपण आँगन व चौकियों में बनाये जाते हैं।
दाविया- यह एक प्रकार का पट्टा होता है, जिसमें ज्योतिषीय आकृतियां होती हैं।
लौकिका- यह एक प्रकार की बार बूंद शैली है, जो दीवारों में लिखी जाती है।
जगह के अनुसार ऐपण को चार भागों में वर्गीकृत किया जाता है:
जमीन चित्रकला- यह दो श्रेणियों में विभाजित है। पहली जो देहली में लिखी जाती है। इसमें फूल और लताऐं होती हैं। दूसरा जो पूजा स्थल मे बनाये जाते हैं। जैसे शिव पीठ, लक्ष्मी पीठ व आसन आदि।
दीवार चित्रकला- यह चित्रकला दो भाग में विभाजित होती है। पहली रसोई में (नाता और लक्ष्मी नारायण), दूसरी जहाँ धार्मिक अनुष्ठान किये जाते हैं।
कपड़े में- कुछ ऐपण कपड़े में भी बनाये जाते हैं जैसे खोड़िया चौकी पिछौड़े में और शिव पीठ, पीले कपड़े में बनायी जाती है। इसका उपयोग धार्मिक अनुष्ठान में किया जाता है।
लकड़ी की चौकी- ये उपासना आसन होते हैं जो देवताओं के लिए और विभिन्न अवसरों में प्रयोग किये जाते हैं।
आकार और रूप के अनुसार ऐपण का वर्गीकरण:
नव दुर्गा चौकी- यह चौकी देवी पूजन के लिए प्रयोग की जाती है। यह तीन क्षैतिज और ऊर्ध्वाधर रेखा के चित्रों द्वारा बनायी जाती है जिसके मध्य स्वातिक का चिन्ह बनाया जाता है। इस चौकी की मुख्य बात यह है कि इसमें नौ बिन्दु होते हैं, जो नौ दुर्गाओं को प्रदर्शित करते हैं।
आसन चौकी- यह बहुत से अवसर में प्रयुक्त होती है। यह चौकी का एक जोड़ा होता है जो उपासक और उसकी पत्नी के लिये होता है ।
चामुंडा हस्त चौकी- यह चौकी हवन और योग के लिए प्रयुक्त होती है। इसमें दो त्रिकोणों और दो विकर्ण लाइनें एक साथ जुड़ी होती हैं, जिनके मध्य एक सितारा होता है, जो एक वृत्त से बंद होता है। इनके मध्य के रिक्त स्थान में फूल या लक्ष्मी के पैर बनाये जाते हैं। इसका मध्य भाग अक्सर आठ कमल कि पंखुड़ी से सजाया जाता है।
सरस्वती चौकी- सरस्वती विद्या की देवी है। जब एक बच्चा औपचारिक शिक्षा के तैयार होता है, तब उसकी अच्छी शुरुआत के लिए एक पूजा का आयोजन होता है। इस पूजा का मुख्य बिन्दु सरस्वती चौकी होती है। इसमें एक सितारा होता है, जिसके पाँच कोने होते हैं, जिसके मध्य स्वास्तिक फूल या दिया बना होता है।
जनेऊ चौकी- यह चौकी जनेऊ संस्कार के लिए प्रयुक्त होती है। इसके मुख्य अनुभाग में छह पक्षीय चित्र के भीतर सात सितारे होते हैं जो सप्त ऋषि को प्रदर्शित करते हैं।
शिव या शिवचरण पीठ- शिव की पूजा मुख्यतः सावन और माघ के महीनों में की जाती है। इस पीठ में आठ कोनों का डिजाइन होता है जो बारह बिन्दु और बारह लाइन से जुड़ा होता है।
विभिन्न अवसरों के अनुसार ऐपण का वर्गीकरण:
जन्म के लिए विशेष प्रकार कि चौकी बनायी जाती हैं।
सूर्य दर्शन चौकी- यह चौकी नामकरण समारोह में काम आती है। ग्यारह दिनों तक नए जन्मे बच्चे को अंदर रखा जाता है। ग्यारहवें दिन सूर्य दर्शन के लिए बच्चे को बाहर लाया जाता है। यह चौकी आँगन में बनाई जाती है जहां पंडित मंत्र पढ़ते हैं।
स्यो ऐपण- यह एक ज्यामिती नमूना होता है, जो बच्चे को बुरी आत्माओं से बचाता है। यह बच्चे के जन्म के ग्यारह दिन में बनायी जाती है।
शादी- विवाह संस्कार के अवसर पर तीन प्रकार की चौकियां बनायी जाती हैं। शादी के ऐपण हल्दी, सिन्दूर और चारकोल से बनाये जाते हैं।
आचार्य चौकी- विवाह संस्कार में पंडित या आचार्य के लिए एक विशेष चौकी बनाई जाती है। इसमें एक स्वास्तिक लाल रंग के साथ बनाया जाता है। साथ ही कमल और अन्य शुभ प्रतीकों जैसे घण्टी, शंख और कभी-कभी दो तोते स्वास्तिक के आसपास चित्रित किये जाते हैं।
विवाह चौकी- यह विवाह के लिए प्रयुक्त होती है जो दूल्हे की ओर से उपलब्ध करायी जाती है। यह पीले रंग कि होती है जिसमें कमल की पंखुड़ी और दो तोते बने होते हैं।
धूलि अर्ध्य चौकी- यह चौकी मुख्यतः दुल्हे के दुल्हन पक्ष के द्वारा स्वागत के लिए बनायी जाती हैं। पूर्व में दूल्हा सायं-गोधूलि के समय पर ही विवाह स्थल पर पहुँचता था। दूल्हा नारायण का रूप माना जाता है इसलिए दुल्हन के पिता पूजा से पूर्व उसे धूलि अर्घ्य चौकी में खड़ा कर उसके पैरों को धुलाते हैं।
ज्योति पट्टा- कुमाऊं मे विशेषतः ब्राह्मण और साह परिवारों के मध्य इसका प्रचलन है। यह उस कमरे की दिवार में बनायी जाती हैं जहाँ धार्मिक समारोह होते हैं। ज्यूनीत इसका स्थानीय नाम है। ये निम्नलिखित हैं: महा मात्रिका, महा लक्ष्मी, महा सरस्वती और महा काली।
त्यौहार के अनुसार ऐपण :
दुर्गा थापा- यह कुमाऊँ कि महिलाओं के द्वारा कागज में बनाया जाता है, जो काफी कठिन होता है। इसमें माँ दुर्गा शेर के साथ होती हैं। इसमें और भी स्थानीय देवी-देवता होते हैं।
लक्ष्मी यंत्र- यह दिवाली में उस स्थान पर रखा जाता है जहाँ माँ लक्ष्मी की पूजा होती है।
जन्माष्टमी पट्टा- यह मुख्यतः कृष्ण के जन्मदिन-जन्माष्टमी पर उनकी पूजा हेतु बनाया जाता है।
ऐपण चित्रकला एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को सिखायी जाती है पर नवीनीकरण, पलायन और संयुक्त परिवार ना होने के कारण यह अपना स्थान खो रही है।
उत्तरापीडिया के अपडेट पाने के लिए फ़ेसबुक पेज से जुड़ें।