काल गणना – प्राचीन उन्नत भारतीय ज्ञान

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kaal chakra

हमारे देश की संस्कृति व यहां का प्राचीन ज्ञान जो वेदो, शास्त्रों में यहां के ऋषि मुनियो द्वारा लिखा गया है। वह इतना रोचक है की आज के वैज्ञानिक भी जो आकलन नहीं कर सकते या जहां वह आज पहुंच रहे है। वहा हमारा प्राचीन विज्ञानं बहुत पहले ही पहुंच चूका है। लेकिन आधुनिकता की इस दौड़ में हम आज भी पास्चतय शिक्षा पद्धति को ही पढ़ते है। क्योकि हमारी गुलाम मानसिकता हमें ऐसा करने पर मजबूर कर देती है।

चलिए आज आपको बताते है हमारे ऋषि मुनियो ने बड़े बड़े आकलन कैसे किये –
जाने माने वैज्ञानिक विलियम हॉकिंस ने बताया था की एक सूक्ष्म द्रव्य के महाविस्फोट से इस पुरे ब्रह्माण्ड की उतपत्ति हुई थी तथा समय भी इसी के साथ उतपन हुआ था इस घटना से पहले की स्थिति में हॉकिंस ब्लैक होल की संभावनाए होना बताते थे।

आदि ग्रन्थ ऋग्वेद के नारदीय सूक्त में सृष्टि की उतप्ति से पूर्व की स्थिति का वर्णन करते हुए कहा गया है कि “तब ना सत था, न असत था, न परमाणु था, न मृत्यु थी, न अमरत्व था, न दिन था, न रात थी। उस समय स्पन्द -शक्ति से युक्त एक तत्त्व था। तप की सकती से वह तत्त्व अंधकार से ढका हुआ था। इच्छा रूपी सकती से वह अव्यक्त से व्यक्त अवस्था मैं आयी। साथ ही काल की गति भी आरम्भ हुई“।


गीता में कहा गया है की ईश्वर मैं समस्त सृष्टि समा जाती है और पुनः उससे उत्पन्न होती है। यह परिभाषा आधुनिक विज्ञानं मैं दोलन ब्रम्हांडकी की ओर संकेत करती है। अर्थात यह सृष्टि एक बार बनी और नष्ट हुई ,ऐसा नहीं है। अपितु यह पेंडुलम की गति की भाँती बार बार उत्पन और नष्ट होती है। तथा यह क्रम निरंतर चलते रहता है।

भारत के ऋषि मुनियो ने अपने ज्ञान के द्वारा इस काल की गति का भी आकलन किया। श्रीमद्भागवत में राजा परीक्षित के एक प्रसन उत्तर में सुकदेव जी बताते है की काल का सूक्ष्तम अंश परमाणु है और महत्तम अंश आयु है। उन्होंने यह माप कुछ इस प्रकार बतलायी :

  • एक तृसरेणु = 6 ब्रह्माण्डीय अणु
  • एक त्रुटि = 3 तृसरेणु या सेकंड का 1/1687.5 भाग।
  • एक वेध = 100 त्रुटि।
  • एक लावा = 3 वेध।
  • एक निमेष = 3 लावा या पलक झपकना।
  • एक क्षण = 3 निमेष।
  • एक काष्ठा = 5 क्षण अर्थात 8 सेकंड।
  • एक लघु = 15 काष्ठा अर्थात 2 मिनट। आधा लघु अर्थात 1 मिनट।
  • पंद्रह लघु = एक नाड़ी, जिसे दंड भी कहते हैं अर्थात लगभग 30 मिनट।
  • दो दंड = एक मुहूर्त अर्थात लगभग 1 घंटे से ज्यादा।
  • सात मुहूर्त = एक याम या एक चौथाई दिन या रात्रि।
  • चार याम या प्रहर = एक दिन या रात्रि।
  • पंद्रह दिवस = एक पक्ष। एक पक्ष में पंद्रह तिथियां होती हैं।
  • दो पक्ष = एक माह। (पूर्णिमा से अमावस्या तक कृष्ण पक्ष और अमावस्या से पूर्णिमा तक शुक्ल पक्ष)
  • दो माह = एक ॠतु।
  • तीन ऋतु = एक अयन
  • दो अयन = एक वर्ष।
  • एक वर्ष = देवताओं का एक दिन जिसे दिव्य वर्ष कहते हैं।
  • 12,000 दिव्य वर्ष = एक महायुग (चारों युगों को मिलाकर एक महायुग)
  • कलयुग =4,32,000वर्ष
  • द्वापर युग =8,46,000वर्ष(2xकलयुग)
  • त्रेता युग =12,96,000वर्ष(3xकलयुग)
  • सत्त युग =17,28,000वर्ष(4xकलयुग)
  • 71 महायुग = 1 मन्वंतर (लगभग 30,84,48,000 मानव वर्ष बाद प्रलय काल)
  • 14 मन्वंतर = एक कल्प।
  • 7200 कल्प= ब्रह्माण्ड आयु
  • एक कल्प = ब्रह्मा का एक दिन। (ब्रह्मा का एक दिन बीतने के बाद महाप्रलय होती है और फिर इतनी ही लंबी रात्रि होती है)। इस दिन और रात्रि के आकलन से उनकी आयु 100 वर्ष होती है। उनकी आधी आयु निकल चुकी है और शेष में से यह प्रथम कल्प है।
    मन्वंतर की अवधि : विष्णु पुराण के अनुसार मन्वंतर की अवधि 71 चतुर्युगी के बराबर होती है। इसके अलावा कुछ अतिरिक्त वर्ष भी जोड़े जाते हैं। एक मन्वंतर = 71 चतुर्युगी = 8,52,000 दिव्य वर्ष = 30,67,20,000 मानव वर्ष।

आधुनिक विज्ञान भी रेडिओ एक्टिव पदर्थो द्वारा की गइ गणना से पृथ्वी की आयु लगभग 2 अरब वर्ष ही बताता है।

ऐसे ही एक श्लोक प्रकाश की चाल भी बताता है –

योजनानं सहस्रे द्वे द्वे शते द्वे च योजने ।
एकेन निमिषार्धेन क्रममाण नमोऽस्तुते ॥

इस श्लोक का अर्थ है उस प्रकाश को प्रणाम है जो एक अर्ध निमेष में 2202 योजन चलता है। इस प्रकार इस श्लोक से प्रकाश की गति मापी जा सकती है की 1 योजन 9.11 मील के बराबर तथा एक निमेष 1/10 सेकण्ड्स के बराबर होता है गणना करने पर हमें प्रकाश की चल ठीक 188766.67 मील / सेकण्ड्स ज्ञात होती है। जो आधुनिक मान के बराबर है।

इसी प्रकर कई गणनाए प्राचीन ऋषि मुनियो ने की हुई है।

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