Home Miscellaneous चल यूंही चल, थोड़ा और चल (कविता)

चल यूंही चल, थोड़ा और चल (कविता)

by Atul A

सुबह हुई, शाम होने से पहले चल लूँ थोड़ा,
चल लूँ थोड़ा और कि, शाम होने को है

शाम होने को है, पर बचा है काम थोड़ा,
बचा है काम थोड़ा, ये आराम क्या होता है।

ये आराम क्या होता है, शायद यही नसीब होता है,
कि कोई क्यूँ अमीर, कोई क्यूँ गरीब होता है।

पता तो है तुझे, क्या मिलेगा वहाँ,
क्या मिलेगा वहाँ, चल वहीं चल…
चल यूंही चल, थोड़ा और चल, और जरा तेज भी चल

चल किसी और के वहाँ पहुचने से पहले चल,
चल क्यूंकी तेरे चलने से बने कदमों के निशान,
कदमों के निशानों पर, किसी और को भी चलना है कल…

चलना है कल, इसलिए तुझे पहुँचना होगा मंजिल पे भी,
मंजिल पे भी, मंजिल पे ही
मंजिल पे ही तुझे पता चलेगा, तूने क्या पाया और पीछे क्या खो दिया है।
चल यूंही चल, थोड़ा और चल… 


उत्तरापीडिया के अपडेट पाने के लिए फ़ेसबुक पेज से जुड़ें।

You may also like

Leave a Comment

-
00:00
00:00
Update Required Flash plugin
-
00:00
00:00