जो पुरुष अनन्तता को जानते थे…

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जो पुरुष अनन्तता को जानते थे……

श्रीनिवास रामानुजन 22दिसंबर 1887 को पैदा हुए उनके पिता एक साड़ी शॉप में मामूली क्लर्क का काम करते थे और माँ एक साधारण ग्रहणी थी। श्रीनिवास बचपन में बहुत ही सेंसिटिव थे, बचपन में उन्हे मंदिर के प्रसाद की आलावा कुछ भी अच्छा नहीं लगता था, बचपन में अगर उन्हें उनका मनपसंद खान ना मिलता तो वो आम बच्चों की तरह जमीं पर रेंगने लगते जैसे आम बचे करते हैं, अपनी बात मनवाने के लिए और तब तक वो न मानते जब तक उनकी बात को पूर्ण न मान लिया जाए। उनकी एक बात जो उन्हें सभी बच्चों से अलग बनती थी वो थी उनकी जिज्ञासा, जो उन्हें आम बच्चों से बहुत अलग बनती थी उस उम्र में भी जब बच्चे सिर्फ खेल कूद और शैतानियों में व्यस्त रहते हैं उनके ऐसे सवाल की दुनिया का पहला इंसान कौन था?, यहाँ से बदल कितने दूर हैं? बड़े से बड़े व्यक्तियों के होश उड़ा देते थे उनके सवाल।
बच्पन में जब एक शिक्षक ने कहा की जब आप एक नंबर को उसी नंबर से भाग करोगे तो उसका उत्तर 1 आएगा, उद्धरण देते हुए शिक्षक ने कहा की अगर आप 1000 फलों को 1000 लोगो को बांट दो तो हर एक को 1-1 फल मिलेगा , लेकिन रामानुज एकदम बोल पड़े की ये जीरो के केस में सत्य नहीं होगा क्योंकि अगर हम जीरो को जीरो से भाग करेंगे तो उत्तर 1 नहीं होगा, क्योंकि किसी को भी 1 भी फल नहीं मिलेगा। रामानुजन एक परिवार के पास ज्यादा पैसे नहीं थे, इसलिए उन्हें किरायेदार रखने पड़े, जो की स्टूडेंट्स थे जो की पास के सरकारी कॉलेज में पढ़ते थे फिर एक दिन उन दोनों ने देखा की रामानुजन मैथ में बहुत इंट्रेस्टेड हैं, इसलिए वो अपने खली समय में रामानुजन को मैथ्स पढ़ाने लगे, रामानुजन बहुत की कम टाइम में उन दोनों स्टूडेंट्स से भी मैथ्स में अच्छे हो गए
रामानुजन हमेशा उन दोनों स्टूडेंट्स से पुस्तकालय से मैथ्स की बुक लेन को कहते स्कूल में सब जानते थे की रामानुजन मैथ्स में बहुत अच्छे स्टूडेंट हैं और तो और उन्हें हेडमास्टर ने भी कहा था, रामानुजन मैथ्स में जीनियस हैं और में इसे 100% या A+ से भी ज्यादा अंक देना चाहता हूँ। स्कूल में तो रमाणुजन बाकी विषय भी पढ़ लेते थे , इसलिए उन्हें स्कूल के लिए पूरी स्कॉलर्शिप मिल गयी लेकिन कॉलेज तक पहुँचते-पहुँचते उनका मैथ्स में बहुत ज्यादा इंट्रेस्ट हो गया था, इसलिए वो बाकी विषय नहीं पढ़ते थे इसलिए मैथ्स की आलावा बाकी विषयों में फेल होने लगे, कॉलेज में भी सब जानते थे की रामानुजन मैथ्स में बहुत अच्छे हैं, क्यूंकि मैथ्स के 3 घंटे के पेपर को वो 30 मिनट्स में हल कर देते थे।
जिन सवालों को प्रोफेसर्स 12-15 स्टेप्स में करते थे उनको रामानुजन 3 स्टेप्स में कर देते थे, लेकिन इन सब के बावजूद रामानुजन की स्कालरशिप रद्द कर दी गयी जिसके चलते उन्हें कॉलेज छोड़ना पड़ा, क्योंकि वो बाकी विषयों में पास नहीं हो पा रहे थे, जिसके कारण उनका रिजल्ट सिर्फ मैथ्स में ही अच्छा रहता था।
ये सब देख कर उनकी माँ बहुत परेशान रहने लगी और उनको रामानुज की बहुत चिंता सताती जिसके कारण उन्होंने रामानुज की शादी करवाने का निर्णय लिया उनको लगता था की शादी के बाद रामानुज अपनी जिम्मेदारियों को समझ जायेंगे, इसलिए उनकी शादी जानकी से करवा दी गयी उस वक़्त जानकी की उम्र महज 10 साल थी, जो की उस समय छोटी उम्र में शादी करना बहुत ही आम बात हुआ करती थी। शादी के बाद रामानुजन को अपनी जिम्मेदारियों का एहसास हुआ इसलिए उन्होंने नौकरियों के लिए कई जगह आवेदन भी किया, कई इंटरव्यूज के बाद उन्हें मद्रास पोर्ट ऑफ़ ट्रस्ट में एकाउंटिंग क्लार्क की नौकरी मिली जहाँ उनकी मुलाकात सर फ्रांसिस और नारायण ऐयर से हुई फिर एक दिन सर फ्रांसिस ने रामानुजन को यूनिवर्सिटी ऑफ़ कैंब्रिज को पत्र लिख कर अपना काम दिखाने को कहा, उन्होंने सलाह मान ली और यूनिवर्सिटी ऑफ़ कैंब्रिज के 3 प्रोफेसर्स को पत्र लिखा, जिसमे से 2 ने उनके पत्र को नज़रअंदाज कर दिया और एक प्रोफेसर्स को उनका काम बहुत पसंद आया, उनका कहना था की वो पत्र देखते ही समझ गए थे की ये इंसान जीनियस है और उन प्रोफेसर का नाम था जी.एच. हार्डी

जी.एच. हार्डी ने उनकी बहुत मदद की और उन्हें यूनिवर्सिटी ऑफ़ कैंब्रिज में आकर अपने साथ काम करने का न्यौता भी दिया परन्तु उन्होंने मना कर दिया लेकिन एक दिन उनके सपने में उनकी कुलदेवी के आने के बाद उन्होंने हामी भर दी और वो यूनिवर्सिटी ऑफ़ कैंब्रिज जाने को तैयार हो गए, वो वहाँ हार्डी और मिस्टर लिटिल वुड से मिले और उन्हें अपनी लिखी करीब करीब 3000 प्रमेय (theorem) दिखाई। 1915 तक रामानुजन के 9 पेपर पब्लिश हो चुके थे। जिनमे Modular Equatios or Approximation to PI or Infinity Theorms उनके महत्वपूर्ण पेपर थे परन्तु उनका स्वास्थ खराब होने की वजह से उनको अपना चेकअप करवाना पड़ा, जिसमे उन्हें पता चला की उनको ट्यूबरक्लोसिस है। इसके दौरान उन्होंने यूनिवर्सिटी ऑफ़ कैंब्रिज से रॉयल सोसाइटी के फेलो (एफ आर एस) बनने तक का सफर तय किया परन्तु अब उनकी तबियत और बिगड़ चुकी थी। रामानुजन को लगा की भारत जाकर उनकी तबियत ठीक हो जायेगी परन्तु उनकी तबियत में कोई सुधार नहीं हुआ पर वो अपने मैथ्स के जुनून को लेकर बीमारी के साथ ही मैथ्स के सवालों को सॉल्व करते रहते थे और एक साल के भीतर ही उनकी मृत्यु 32 साल की उम्र मे हो गई जिससे हार्डी को बहुत दुःख पंहुचा हार्डी कहते हैं की “मैं खुशकिस्मत हूँ की रामानुजन सबसे पहले मुझे मिले ” मर्त्य से लगभग 3 महीने पहले रामानुजन ने हार्डी को एक पत्र लिखा था, जिसमे उन्होंने लिखा था की इस दौरान मैने बहुत ही महत्वपूर्ण मैथ्स के सूत्र त्यार किये हैं, जिन्हे मैं मॉक ठिठा सूत्र कहता हूँ जिन्हे मैं आपको भेज रहा हूँ आशा करता हु की आपको पसंद आएंगे।
भेजे गए सूत्र का लिंक निचे दिया है??????
http://www.ams.org/notices/201011/rtx101101410p.pdf

लेखक की कलम से …
आशा करता हूँ की आपको एस0 रामानुजन के बारे में लेख पसंद आएगा !