पहाड़न! – आत्मविश्वास से भरी पहचान बनाती पहाड़ी महिलाएं

pahadhan

पहाड़ों पर सुदूर गांव से जब कोई लड़की आंखों में बहुत सारे सपने लेकर नजदीकी किसी शहर का रुख करती है तो उसका हौसला कई गुना बढ़ जाता है और उसके आत्मविश्वास के आगे हिमालय भी सिर झुकाता है। ज़्यादातर पहाड़ी गांवों में न सड़क है और ना ही आने जाने के लिए कोई साधन फिर भी रोजाना पहाड़ी पगडंडियों का सफ़र बहुत आराम से कर लेती हैं ये बेटियाँ शायद ये ही बजह है कि एक पहाड़ी गर्ल (कंगना रनौत) जो फ़िल्मी दुनिया के सबसे ताकतवर लोगों से पंगा लेकर भी रंगमंच की दुनिया में अलग ही पहचान सँजोए हुए है। खुद के दम पर ही उर्बशी रौतेला, रूप दुर्गापाल, चित्राशी रावत, प्रियंका कांडपाल जैसी अनेकों पहाड़ी लड़कियां रंगमंच की दुनिया में अपनी एक अलग पहचान रखती हैं।

पहाड़ों पर सुंदरता नैसर्गिक है यहाँ का वातावरण और खान-पीन इस सुंदरता में चार चांद लगा देता है भटक डुबुक, हरि साग, पुदीना चटनी और मू टपकी खाकर बड़ी हुई ये लड़कियां सुन्दर होने के साथ-साथ शारीरिक और भावनात्मक तौर पर बहुत मजबूत भी होती हैं तभी तो बछेंद्री पाल ने दुनिया की सबसे ऊँची चोटी पर तिरंगा फ़हराने में सफलता हासिल की और एकता बिष्ट भारतीय महिला क्रिकेट टीम में खुद को साबित कर पायी। मैदान चाहे कोई सा भी हो लेकिन परचम लहराना अच्छे से जानती हैं ये पहाड़ी लड़कियाँ।

जहां आज भी समाज में लिंग भेदभाव का शिकार ज़्यादातर बेटियों होती हैं वहीं पहाड़ों पर ऐसे किसी भी भेदभाव का कोई मामला नजर नहीं आता। यहां बचपन से लड़का लड़की में कोई फर्क नहीं किया जाता है। लडक़ी को खाने-पीने से लेकर पहनने-ओढ़ने तक कि पूरी आज़ादी एक लड़के के जैसे ही दी जाती है। यहां की लड़कियां आधुनिक फ़ैशन के इस दौर में बहुत आगे हैं। कभी कभी तो लगता है कि बॉलीवुड के बाद सीधा फैशन पहाड़ों पर ही आता है लेकिन फिर भी उनमें पारम्परिक परिधान और खान-पीन को लेकर कभी भी विरोधाभास नहीं देखा गया है वो लहंगा पिछौरी पहनने को भी उतनी ही इज़्ज़त देती हैं जितना कि जीन्स टीशर्ट पहनने को।

इन पहाडी लड़कियों की सबसे अच्छी बात ये है कि चाहे इन्हें कितना ही स्टारडम क्यों ना मिल जाये लेकिन फिर भी अल्मोड़ा के लाला बाज़ार जैसे छोटे से मार्केट में अपने इजा-बाजू (मां-बाप) के साथ बहुत सादगी से घूमती हुयी देखी जा सकती हैं।

दौड़ती-भागती ज़िन्दगी में भी अपने स्टारडम की परवाह किये बिना अपनी जन्मभूमि के लिए समय निकालकर अपने लोगों के बीच रहना और अपनी संस्कृति के लिये ऐसा समर्पण कोई देवभूमि में जन्मी इन पहाड़नों से सीखे जो आकाश के समान ऊंचाइयों पर जाकर भी अपनी जड़ों से मोहब्बत करती हैं।
ऐसी सादगी और निश्छलता केेेवल हिमालय की बेेटियों में ही देखने को मिल सकती है।