नानतिन बाबा (एक अवतार पुरुष)

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देवभूमि उत्तराखंड ने, अध्यात्म की तलाश में इस क्षेत्र में आये विभिन्न विभूतियों को आकर्षित किया है। क्योंकि इस देवभूमि के कण-कण में देवताओं का वास है। इस क्रम में सोमवारी बाबा, हैड़ाखान बाबा, नीब करौरी बाबा, नानतिन बाबा जैसे अद्भुत संतों ने इस धरा को अपनी कर्मभूमि बनाया और निःस्वार्थ रूप से क्षेत्र के निवासियों को सम्यक् जीवन दर्शन से परिचित कराया।

 

इस संत परम्परा के अन्तर्गत कुमाऊँ के विशिष्ट संत के रूप में नानतिन बाबा का नाम प्रमुखता से लिया जा सकता है। एक ब्राह्मण परिवार में पैदा हुए, इस संत ने मात्र 6 वर्ष की आयु में अपना घर व माता-पिता को त्यागकर सन्यास ग्रहण किया। 6 वर्ष की आयु सन्यास लेने के बाद बाबा अयोध्या चले गये और उसके बाद कुमाऊँ क्षेत्र में आ गये।

 

 

नानतिन बाबा ने यहां आकर हिमालय के निर्जन वनों की गुफाओं व कन्दराओं में कठोर तप साधन की। ना सिर्फ उतराखण्ड हिमालय वरन् नेपाल के मलास  क्षेत्र के निर्जन वनों में भी उन्होंने तपस्या की। इस साधनावधि में उन्होंने जंगली कन्दमूल फल खाकर ही अपनी साधना पूर्ण की।

नानतिन बाबा बगुला देवी के अनन्य उपासक थे और भगवान शिव उनके ईष्ट देव थे। कुमाऊँ में नानतिन बाबा द्वारा लडि़याकांटा (नैनीताल) गर्जिया (रामनगर), कुकुड़ामाई (बागेश्वर), डाण्डेश्वर (मासी), बासुकीनाग (बेरीनाग), कालीचैड़, झड़कोट, पनियाली, गैरखान, जाबरनाला आदि स्थानों को अपनी साधना व तपस्या का केन्द्र बनाया। वे दीर्घावधि समाधिस्थ होकर साधना में रत रहते थे।

 

इस क्षेत्र में नानतिन शब्द का इस्तेमाल बच्चे अथवा बालक लिए किया जाता है। कम उम्र में साधक बन जाने के कारण क्षेत्र की महिलाओं ने जब उन्हें कुमाऊँनी भाषा में नानतिन बाबा शब्द का इस्तेमाल किया। तत्पश्चात् वे नानतिन बाबा के रुप में प्रसिद्ध हुए।

बाबा का स्वभाव नाम के अनुरूप नानतिन रूपी अर्थात् बालक जैसा ही रहा। उन्हें छोटे बच्चों का साथ अत्यन्त पसंद था और उनके साथ वे बालक जैसा व्यवहार करते थे। मुझे भी बाबा के कुकुड़ामाई साधना स्थल, बागेश्वर को देखने का सौभाग्य मिला है।

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बाबा जी के बारे राजेन्द्र प्रसाद जोशी बताते हैं – “पिथौरागढ़ जिले के एक गांव में बाल्यावस्था में गांव वालों ने सर्वप्रथम देखा। वही से नानतिन बाबा इनका नाम पड़ा। महाराजजी के दर्शन, सानिध्य का लाभ मुझे भी मिला है, परंतु तब में छोटा था। यादे धूमिल सी है। अल्मोड़ा प्रवास में महात्माजी हमारे घर भी आते थे। बिंदु डॉक्टर साहब, जगदीश ठेकेदारजी, लक्ष्मेश्वर जज साहब के यहा की हल्की याद मुझे है, जज साहब के यहा कुटिया भी बनाई थी। अंतर्ध्यान होने की भी हल्की स्मृति मुझे है, हमारे घर मे भी जन समुदाय बढ़ जाने पर देर समय चाय के लिए दूध नही होने की स्थिति में चमत्कारिक रूप से दूध की उपलब्धता, इनके हाथ लगते ही पीड़ित के बीमारी छूमंतर होने, इनके द्विशरीरी होने की घटनाएं मेने सुनी हैॐ श्री गुरुवे नमः।”


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