उत्तराखंड जो की देवभूमि के नाम से भी जाना जाता है, इसे देवभूमि इसलिए भी कहा जाता है, क्योंकि यहाँ अनेकों देव स्थल और दैवीय शक्तियां निवास करती हैं । उत्तराखंड का ये त्यौहार जिसे हम घुघुतिया के नाम से जानते हैं, यह त्यौहार मकर संक्रांति के दिन घुघुतिया के नाम से मनाया जाता है। इस दिन घर के सभी बच्चों के लिए घुघुते की माला बनाई जाती है, जिसमे घुघुतों के साथ संतरा और कुछ फूल भी सजाये जाते हैं, इस त्यौहार का मुख्य अतिथि कौवा होता है। बच्चे इस दिन बनाये गए घुघते कौवे को खिला कर कहते हैं, काले कोवा काले घुघुती माला खाले।
इस त्यौहार के सम्बन्ध में प्राचीन कथा प्रचलित है, कथा के अनुसार जब कुमाऊँ में चंद्र वंश के राजा राजा कल्याण चंद राज करते थे, उनकी संतान न होने की वजह से उनका मंत्री सोचता था, की राजा की कोई संतान नहीं है, और राजा के पश्चात राज्य मुझे ही मिलेगा। एक दिन राजा कल्याण चंद बागनाथ मंदिर गए, और वहाँ संतान के लिए पूजा अर्चना की और भगवान से संतान के लिए प्रार्थना की। बागनाथ की कृपा से उनको एक पुत्र प्राप्त हुआ। पुत्र प्राप्ति के पश्चात् राजा बहुत खुश हुए और पुत्र का नाम निर्भय चंद पड़ा। निर्भय को उसकी माता प्यारा से घुघुतिया कहकर पुकारती थी। घुघुतिया के गले में बहुत सुन्दर मोतियों की माला थी, जिसमें घुंगरू भी लगे हुए थे। वो जहाँ जहाँ जाता, घुंगरू वहाँ वहाँ बजते थे।
इस माला को पहन कर घुघुतिया बहुत प्रसन्न होता था, परन्तु जब वह किसी बात पर शैतानी करता और ज़िद करता तो उसकी माता उससे खेती थी, की ज़िद न कर नहीं तो में ये माला कौवे को देदूंगी! और कहती काले कौवा काले, घुघुतिया माला खाले यह सुन कर कई बार कौवा भी जाता, इस डर से घुघुतीय शैतानी और ज़िद छोड़ देता, परन्तु जब बुलाने पर कौवे आ जाते तो माता उन्हें कुछ खाने को दे देती थी। और फिर धीरे धीरे कौवों और घुघुतिया में मित्रता हो गयी, और जो मंत्री राजपाठ की उम्मीद लिए बैठा था! घुघुतिया को मारने की योजना बनाने लग गया।
मंत्री ने अपने साथियों के साथ मिलकर योजना बनाई कि एक दिन जब घुघुतिया अकेले खेल रहा था तब वह उसे चोरी छुपे उठा कर ले गया, जब वह उसे ले कर एक जंगल से होकर गुजर रहा था, तब उसे वहाँ एक कौवे ने देख लिया, और घुघुतिया को देख कर जोर जोर से काँव काँव करने लगा। कौवे की आवाज सुनकर घुघुति जोर जोर से रोने लगा और अपनी मोती और घुंगरू जड़ित माला उतारकर दिखने लगा। इतने में सभी कौवे वहाँ इकठ्ठे हो गए, और मंत्री और मंत्री के साथि। पर मंडराने लगे और एक कौवे ने घुघुतिया के हाथों से वो माला झपट ली, और बाकी सभी कौवे एक साथ मंत्री और उसके साथियों पर चोंच और पंजों से हमला करने लगे, घबरा कर मंत्री और उसके साथी वहाँ से भाग खड़े हुए!।
अब घुघुतिया जंगल में अकेला पड़ गया था, और वह जा कर एक पेड़ के नीचे बैठ गया और सभी कौवे भी उसी पेड़ पर बैठ गए, जो कौवा मोतियों की माला लेकर गया था! वो सीधे महल गया, और पेड़ पर माला टाँग कर जोर जोर काँव काँव करने लगा ! जब लोगों की नज़र उस पर पड़ी तो उसने घुघुतीये की माला घुघुतीये की माँ के समक्ष डाल दी, इसके बाद कौवा एक पेड़ से दूसरे पेड़ उड़ता और सबने ये जान लिया था की कोवा घुघुतीये के बारे में कुछ तो जानता है, राजा और उनके घुड़सवार उस कौवे के पीछे चल दिए, कोवा आगे-आगे और घुड़सवार पीछे-पीछे इतने में कोवा एक पेड़ की डाली पर जा बैठा। राजा ने देखा की उसी पेड़ के नीचे उसका बेटा सोया हुआ है! उसने अपने बेटे को उठाया और गले लगा कर बहुत प्रेम और स्नहे से घर ले आया। घर लौटते ही जैसे उसकी माँ के प्राण लौट आये, घुघुतिया की माँ ने घुघुतीये की माला दिखा कर कहा, कि यह माला ना होती, तो आज घुघुतिया जीवित न होता। राजा ने मंत्री और उसके साथियों को मृत्यु का दंड दिया और घुघुतीये के वापस मिल जाने की ख़ुशी में माँ बहुत सारे पकवान बनाये और अपने बेटे घुघुतिये से कहा जा जाकर अपने दोस्त कोवन को भी ये पकवान खिला दे उसने कौवों को बुला कर खाना खिलाया और धीरे-धीरे ये बात पुरे कुमाऊँ में फ़ैल गयी। फिर इसे पुरे कुमाऊँ में बच्चों के त्यौहार के रूप में मनाया जाने लगा। आज पुरे कुमाऊँ में और जहाँ जहाँ कुमाऊँनी जा बसे हैं। वहाँ वहाँ ये त्यौहार के रूम में बनाया जाता है।
मीठे आँटे के पकवाने बनाये जाते हैं, और उसे घुघुत नाम दिया जाता है! बच्चे इस दिन घुघुत की माला बना कर अपने गले में डालते हैं, और कौवे को बुलाते हैं! और कहते है।
काले कौवा काले घुघुति माला खा ले।
लै कौवा भात में कै दे सुनक थात।
लै कौवा लगड़ में कै दे भैबनों दगड़।
लै कौवा बौड़ मेंकै दे सुनौक घ्वड़।
लै कौवा क्वे मेंकै दे भली भली ज्वें।
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