भगवान राम ने त्रेतायुग में अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए, अपने पिता राजा दशरथ के वचनों का पालन किया और चौदह वर्ष के लिए वनवास गए। जिसमें से साढ़े 11 वर्ष उन्होंने चित्रकूट में बिताये थे। चित्रकूट Chitrakoot की भूमि के हर पग पर प्रभु राम के चरणों ने स्पर्श किया होगा, यह विचार ही श्रदालुओं, के हृदय में असीम आनंद, पवित्रता और उमंग भर देता है।
पवित्र ग्रंथों और यहाँ मिलने वाले साक्ष्य भगवान श्री राम, माता सीता और अनुज लक्ष्मण के यहाँ बिताये समय का वर्णन करते हैं। इस पौराणिक और पवित्र स्थान का आध्यात्मिक और धार्मिक महत्व अनुपम है।
चित्रकूट, भारत में उत्तरप्रदेश राज्य के 75 जिलों मे से एक है। इस जनपद के पड़ोसी जिले उत्तरप्रदेश में बाँदा, फतेहपुर, कौशाम्बी, प्रयागराज और मध्य प्रदश में सतना जिला है।
चित्रकूट पहले बाँदा जिले का ही भाग था। जो 6 मई 1997 अलग जिले के रूप में अस्तित्व में आया। शुरू में जिले का नाम छत्रपति शाहू जी महाराज नगर रखा गया था। लगभग 16 माह बाद, 4 सितंबर 1998 जिले का नाम शाहू जी महाराज नगर से बदलकर चित्रकूट कर दिया गया।
चित्रकूट मे चार तहसीलें कर्वी, मऊ, मानिकपुर और राजापुर है।
चित्रकूट का परिचय:
चित्रकूट धाम का कुछ एरिया चित्रकूट जिले के बाहर मध्य प्रदेश मे भी है। जिसकी सीमाए उत्तर प्रदेश के बांदा, फतेहपुर, कौशाम्बी और प्रयागराज जिले से लगी है और मध्य प्रदेश में चित्रकूट जिले की सीमा सतना जिले से मिलती है।
यह मुख्यतः 5 गाँव का समूह है, जिनमे उत्तर प्रदेश में चित्रकूट जिले के कर्वी तहसील के दो गाँव सीतापुर और कर्वी तथा मध्य प्रदेश के सतना जिले के तीन कस्बे कामता, कोहली और नयागाँव शामिल है।
चित्रकूट के रामघाट में प्रतिदिन शाम को तट पर हजारों दिये जलाए जाते हैं।यहाँ सायंकालीन आरती में वातावरण भक्तिमय एवं आनंद से भर जाता है। जिसमे अनेकों लोग शामिल होते है। घाट पर स्थित प्रमुख मंदिरों के दर्शन के बाद यह अनुभव रामघाट तीर्थयात्रियों के यात्रा अनुभव को भव्य बनाता है। इस समय मन्दाकिनी नदी पर चलती रौशनी जगमगाती रंगों से भरी नावें आकर्षक लगती है। इस पवित्र नदी के तट पर श्रदालुओं के बैठने के लिए सीढ़ियाँ बनी है।
रामघाट के एक तरफ मध्य प्रदेश और दूसरी तरफ उत्तरप्रदेश है जहाँ मन्दाकिनी नदी में बने पुल को पार कर अथवा नाव द्वारा पंहुच सकते है। नदी मे रोशनी की लड़ियों से घिरी नौकाएँ चलते हुए आकर्षक लगती है।
संध्या आरती के बाद उत्तर प्रदेश पर्यटन विभाग द्वारा मन्दाकिनी नदी पर लेज़र शो और 30 मिनट की भगवान राम पर आधारित एक फिल्म दिखाई जाती है। जो अत्यंत सुंदर दृश्य होता है।
उत्तर प्रदेश में चित्रकुट जनपद का सबसे प्रसिद्ध स्थल रामघाट है। इसके साथ ही तीर्थयात्री प्रभु श्री राम से जुड़े, निकटवर्ती अन्य कई पौराणिक और धार्मिक महत्त्व के स्थल के दर्शन करते है। जिसमें से स्वामी मत्यगजेंद्रनाथ अथवा स्वामी मत्यगयेंद्रनाथ रामघाट में स्थित एक प्रमुख मंदिर है। मान्यता है कि, भगवान ब्रह्मा जी ने यहाँ 108 कुंड बनाकर यज्ञ किया था। यज्ञ के प्रभाव से निकले शिवलिंग को स्वामी मत्यगजेंद्र नाथ जी के नाम से जाना जाता है। जब प्रभु श्री राम यहां पर वनवास काल में आए तो उन्होंने चित्रकूट निवास के लिए स्वामी मत्यगजेंद्रनाथ से आज्ञा ली थी।
रामघाट पर राम भरत मिलाप सहित अनेकों मंदिर है। ऐसा लगता है यहाँ का कण-कण पवित्रता से भरा है। इसी घाट पर गोस्वामी तुलसीदास जी की प्रतिमा भी है l धार्मिक मान्यताओं के अनुसार गोस्वामी तुलसीदास का जन्म हुआ था और उन्होने यही श्रीरामचरितमानस, हनुमान चालीसा, गीतावली और तुलसी दोहावली समेत अन्य कई महाकाव्यों की रचना की।
इस घाट में अनेकों धार्मिक कार्यक्रम, कीर्तन, भजन होते हुए भी देखे जा सकते हैं। सावन के माह और महाशिवरात्रि में यहाँ बड़ी संख्या में श्रदालु में शिवलिंग पर जलाभिषेक करते है। स्वामी मत्यागयेन्द्र नाथ जी के दर्शन से शोक, भय और अवसाद से मुक्ति मिलती है।
यहाँ के प्राकर्तिक दृश्यों, खुबसूरत झरनों, घने वनों, पंक्षियों के संगीत, हिरणों की अठखेलियों, मयूरों को झूमते देख दुनिया भर के पर्यटक रोमांचित होते हैं।
निकटवर्ती प्रमुख स्थल:
चित्रकूट में भगवान श्रीराम, माता सीता और लक्ष्मण के द्वारा वनवास का लंबा समय यहाँ काटे जाने के कई साक्ष्य हैं। साथ ही यहाँ कई सुंदर और मनोरम जगह भी हैं जिनमे से कुछ स्थान ये हैं,
कामद गिरी:
प्रधान धार्मिक महत्व की एक वन्य पहाड़ी, जिसे मूल चित्रकूट माना जाता है। यहीं भरत मिलाप मंदिर स्थित है। तीर्थयात्री यहाँ भगवान कामदनाथ व भगवान श्रीराम का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए कामदगिरी पहाड़ी की परिक्रमा करते हैं।
भरत कूप:
भरत कूप, भरतकूप गांव के निकट एक विशाल कुआं है। जो चित्रकूट के पश्चिम में लगभग 20 किमी के दूर स्थित है। यह माना जाता है कि भगवान राम के भाई भरत ने अयोध्या के राजा के रूप में भगवान राम को सम्मानित करने के लिए सभी पवित्र तीर्थों से जल एकत्र किया था। भरत, भगवान राम को अपने राज्य में लौटने और राजा के रूप में अपनी जगह लेने के लिए मनाने में असफल रहे। तब भरत ने महर्षि अत्री के निर्देशों के अनुसार, वह पवित्र जल इस कुएं में डाल दिया। यह मान्यता है की यहाँ के जल से स्नान करने का अर्थ सभी तीर्थों में स्नान करने के समान है। यहाँ भगवान राम के परिवार को समर्पित एक मंदिर भी दर्शनीय है।
भरत मिलाप मंदिर:
माना जाता है कि भरत मिलाप मंदिर उस जगह को चिह्नित करता है जहां भरत, अयोध्या के सिंहासन पर लौटने के लिए भगवान श्री राम को मनाने के लिए उनके वनवास के दौरान उनसे मिले थे। यह कहा जाता है कि चारों भाइयों का मिलन इतना मार्मिक था कि चित्रकूट की चट्टानें भी पिघल गयीं। भगवान राम और उनके भाइयों के इन चट्टानों पर छपे पैरों के निशान अब भी देखे जा सकते हैं।
गणेश बाग:
गणेश बाग कर्वी-देवांगना रोड पर स्थित है। यह 19वीं शताब्दी में विनायक राज पेशवा द्वारा बनाया गया था इस जगह में एक मन्दिर है, जो खजुराहो की कलाशैली जैसी शैली में निर्मित है। मूल खजुराहो के साथ इसकी वास्तुकला की समानता के कारण यह स्थान मिनी खजुराहो के रूप में भी जाना जाता है। सामने एक सरोवर भी है, जो इसकी खूबसूरती और बड़ा देता है।
हनुमान धारा:
यह एक विशाल चट्टान के ऊपर स्थित हनुमान मंदिर है। मंदिर तक पहुँचने के लिए कई खड़ी सीढियों की चढ़ाई चढ़नी पड़ती है। इन सीढियों पर चढ़ते समय चित्रकूट के शानदार दृश्य देखे जा सकते हैं। पूरे रास्ते में हनुमान जी की प्रार्थना योग्य अनेक छोटी मूर्तियां स्थित हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार हनुमान जी के लंका में आग लगा कर वापस लौटने पर इस मंदिर के अंदर भगवान राम, भगवान हनुमान के साथ रहे। यहां भगवान राम ने उनके गुस्से को शांत करने में उनकी मदद की। इस स्थान के आगे भगवान राम, माता सीता और लक्ष्मण जी को समर्पित कुछ और मंदिर हैं।
गुप्त गोदावरी:
गुप्त गोदावरी चित्रकूट से 18 किलोमीटर दूर स्थित है। पौराणिक कथा है कि भगवान राम और लक्ष्मण अपने वनवास के कुछ समय के लिए यहां रहे। गुप्त गोदावरी एक गुफा के अंदर गुफा प्रणाली है, जहाँ घुटने तक उच्च जल स्तर रहता है। बड़ी गुफा में दो पत्थर के सिंहासन हैं जो राम और लक्ष्मण से संबंधित हैं। इन गुफाओं के बाहर स्मृति चिन्ह खरीदने के लिए दुकानें हैं।
सती अनुसूया आश्रम:
यह आश्रम ऋषि अत्री के विश्राम स्थान के रूप में जाना जाता है। अत्री ने अपनी भक्त पत्नी अनुसूया के साथ यहां ध्यान किया। कथा के अनुसार वनवास के समय भगवान राम और माता सीता इस आश्रम में सती अनुसूया के पास गए थे। सती अनसूया ने यहाँ माता सीता को शिक्षाएं दी थी। यहाँ एक रथ पर सवार भगवान कृष्ण की बड़ी सी मूर्ति है जिसमे अर्जुन पीछे बैठे हैं, जो महाभारत दृश्य को दर्शाती है। अंदर दर्शन के लिए रखी अनेक मूर्तियां हैं।
राम दर्शन:
राम दर्शन मंदिर, एक अनोखा मंदिर है, जहां पूजा और प्रसाद निषिद्ध हैं। यह मंदिर लोगों को मूल्यवान नैतिक पाठ प्रदान करके अभिन्न मानवता में प्रवेश करने में मदद करता है। यह मंदिर सांस्कृतिक और मानवीय पहलुओं का एकीकरण है, जो कभी भी इस मंदिर में जाने पर मन में एक निशान छोड़ता है। मंदिर भगवान राम के जीवन और उनके अंतर-व्यक्तिगत संबंधों की जानकारी देता है। परिसर में प्रवेश करने के लिए एंट्री टिकट की व्यवस्था है।
स्फटिक शिला:
स्फटिक शिला एक छोटी सी चट्टान है, जो रामघाट से ऊपर की ओर मंदाकिनी नदी के किनारे स्थित है। यह ऐसा स्थान माना जाता है जहां माता सीता ने श्रृंगार किया था। इसके अलावा, किंवदंती यह है कि यह वह जगह है जहां भगवान इंद्र के बेटे जयंत, एक कौवा के रूप में माता सीता के पैर में चोंच मारी थी। ऐसा कहा जाता है कि इस चट्टान में अभी भी राम के पैर की छाप है।
चित्रकूट कब आयें?
चित्रकूट वर्ष में कभी भी आया जा सकता है। गर्मियों में अप्रैल से जून के बीच आये तो सुबह और शाम दर्शन और भ्रमण कर सकते है। इस समय गर्मियों का मौसम होने से कम तीर्थयात्री आते है, इसलिए होटल्स गेस्ट हाउस आसानी से मिल जाते है। अप्रैल में रामनवमी के समय बड़ी संख्या में तीर्थयात्री आते हैं।
जुलाई से अक्टूबर मानसून के महीनों के और उसके बाद चित्रकूट में मौसम सुखद और आरामदायक रहता है, क्योंकि कम से मध्यम वर्षा होती है और मौसम में नमीं रहित है। बरसात का मौसम पसंद करने वाले पर्यटक जून और जुलाई के समय आ सकते है। इस समय हरियाली, जलस्रोतो और वॉटरफॉल के अच्छे दृश्य मिलते है।
सर्दियाँ – नवंबर से फरवरी
चित्रकूट में सर्दी का मौसम नवंबर में शुरू होता है और यह पीक सीजन है, जो फरवरी तक रहता है। यह समय यहाँ विभिन्न दर्शनीय स्थलों का आनंद लेने के अच्छा माना जाता है। हालाकिं जनवरी और फरवरी माह में कभी-कभी अत्यधिक कोहरा होता है।
सर्दियों में यात्रा करने से पूर्व, होटल रूम की एडवांस बुकिंग करना ठीक रहता है, क्योंकि यह पीक सीजन है। इसी सीजन में दशहरा, मकर संक्रांति जैसे त्यौहार होते हैं, इसलिए अधिक श्रदालू यहाँ आते है। उत्तर प्रदेश पर्यटन के टुरिस्ट बंगलो सहित अधिकतर होटल/ धर्मशाला चित्रकूट जनपद के सीतापुर क्षेत्र मे तथा मध्य प्रदेश सरकार के पर्यटक आवास गृह सहित अनेकों होटल/ धर्मशाला सतना जिले के चित्रकूट घाट के समीपवर्ती क्षेत्रों मे मिल जाते है।
ग्रीष्मकाल – मार्च से जून
मार्च शुरू होने के साथ जून तक होने वाली गर्मी के कारण कम लोग विजिट करते है। इस समय होटल और रिसॉर्ट का टैरिफ कम रहता है। अप्रैल में रामनवमी पर्व पर भी यहाँ बड़ी संख्या में श्रदालु पंहुचते हैं। गर्मियों में आना चाहें तो – प्रातः एवं सूर्यास्त के बाद दर्शन करने का अच्छा समय है।
मानसून – जुलाई से सितंबर:
मानसून के महीनों के दौरान, चित्रकूट में मौसम सुखद और आरामदायक रहता है। क्योंकि कम से मध्यम वर्षा होती है और मौसम ठंडा होता है। बरसात का मौसम पसंद करने वाले पर्यटक जून और जुलाई के समय आ सकते है। इस समय हरियाली और वॉटरफॉल के अच्छे दृश्य मिलते है।
चित्रकूट कैसे पँहुचे?
सड़क मार्ग
चित्रकूट के लिए निकटवर्ती सभी स्थानों के लिए नियमित बस सेवाएँ है और साथ ही दिल्ली सहित देश के कई शहरों के लिए चित्रकूट के लिए बस सेवाये है। प्रयागराज से दिन भर नियमित अंतराल पर रोडवेज की बसें चलती हैं। मध्य प्रदेश में सतना से भी चित्रकूट तक बस चलती है।
हवाई मार्ग
चित्रकूट का नजदीकी एयरपोर्ट 129 किलोमीटर दूर प्रयागराज मे है। इसके अलावा 229 किलोमीटर दूर लखनऊ हवाई अड्डे से भी चित्रकूट पहुंचा जा सकता है। इलाहाबाद और लखनऊ से बस और ट्रेनें लगातार उपलब्ध हैं।
रेल मार्ग
चित्रकूट में रामघाट से 10 किलोमीटर की दूर करवी निकटतम रेलवे स्टेशन है। यहाँ से देश के के कई स्थानों के लिए ट्रेन चलती है। इसके अलावा अन्य नजदीकी रेल्वे स्टेशन शिवरामपुर रेलवे स्टेशन है। इसके अतिरिक्त रामघाट से 37.7 किलोमीटर दूर मानिकपुर जंक्शन से भी देश के कई हिस्सों को जोड़ने के लिए कई ट्रेन्स चलती है। जहां से से रामघाट सहित चित्रकूट के अन्य दर्शनीय स्थलों के लिए ऑटो, टैक्सी और बस मिल जाती है।
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