बिच्छू घास सिर्फ एक हथियार, या फिर आता है काम, किसी और भी प्रकार?
“बिच्छू से डरना धर्म बन गया!
जब से शैतानी कर्म बन गया!”
1) मेरे विचार – बिच्छू क्यों है हथियार?
उत्तराखंड भले ही प्रगति शील है, परंतु आज भी जड़े उसकी उतनी ही गहरी है। भले ही आज हमारे उत्तराखंड ने “इजा” से “माँ” और “माँ” से “मम्मी” तक का सफर कर लिया हो परंतु इस देवभूमि में अभी भी वही संस्कार व्याप्त है।
वही बड़ों का आदर करना। वही बच्चों का शैतानी करना। और वही घर में माँ को अपनी शैतानी से परेशान करना, यहीं से शुरू होता है “बिच्छू घास” का प्रयोग में आना।
आज इस प्लेटफार्म के माध्यम से, मैं सभी बड़े और छोटे लोगों से जुड़ना चाहती हूँ, जिन्होंने अपने बचपन में हम सभी के “अत्यधिक प्रिय” (कृपया यहां मेरा व्यंग्य समझे) बिच्छू घास का सामना अवश्य किया है।
2) चलिए जान लेते हैं कि, मेरे उसका सामना करने के ज्यादातर क्या कारण रहते थे:-
- पहला और सबसे आम कारण -पहाड़ी इलाके में और हरी भरी जगह में घर होने के कारण, छोटे बिच्छू घास के पौधों का मेरे पैरों की त्वचा से कई बार मिलना हो जाता था। (आप लोग सही समझे हैं। मैं अपनी शैतानियों के बारे में बात करने से बचने की कोशिश कर रही हूँ। )
- मेरा और मेरे भाई का पढ़ाई के दौरान पढ़ाई को छोड़, बाँकी सब करना।
- घर पर पापा मम्मी की गंभीर बातों के दौरान, कोलाहल करना।
- टीवी ना देखने के सख्त निर्देशों का पालन ना करना।
- खेल कर ठीक 1 घंटे में वापस घर ना आना।
- मुझे दिन में सोना बिल्कुल पसंद नहीं है, इसलिए मम्मी कहती थी – “मेरे वापस आने तक सोए ना मिले…. तो बिच्छू मिलेगा!”
3) एक निष्कर्ष
यह सब लिखते हुए मैं सोच रही हूँ कि, अब बस साँस लेने पर पाबंदी ही बची थी। लेकिन इतने कठोर नियमों के बावजूद भी मैं इतनी कामचोर हूँ। तो सोचिए अगर बिच्छू घास नहीं होती तो आज मैं यह लिख पाने के काबिल भी नहीं होती।
4) बिच्छू घास और क्यों है वह इतनी खास?
चलिए जान लेते हैं कि बिच्छू घास से डरने का कारण क्या हैं? यह विश्लेषण ज्यादातर उत्तराखण्डी व अन्य उत्तराखण्ड से बाहर रहने वाले भारतीय लोगों के लिए है। जिन्होंने बिच्छू घास का सपर्श नहीं झेला है।
- बिच्छू घास “कुमाऊनी” में “सिसूण”, “गढ़वाली” में “कंदाली”, “अंग्रेजी” में “स्टिंगिंग नेटल” तथा “वैज्ञानिकी भाषा” में “अर्टिका डियेका” के नाम से मशहूर है।
- बिच्छू घास, डंक मारने वाले पौंधे के रूप में जाना जाता है क्योंकि इस को स्पर्श करने पर त्वचा में झनझनी(जलन) फैल जाती है।
- बिच्छू घास को छूने पर जलन होने के साथ-साथ त्वचा में लालिमा व सूजन आने लगती है| गीली की गई बिच्छू घास का असर दोगुना होता है।
- बिच्छू घास की उम्र आम तौर पर 2 साल होती है।
- बिच्छू घास स्वास्थ्य के लिए अत्यधिक लाभप्रद है, इसमें अनयान्य प्रकार के विटामिन और मिनरल्स पाए जाते हैं| इसमें प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, विटामिन, सोडियम, कैल्शियम और आयरन आदि का भंडार है।
- बिच्छू घास की सबसे अधिक पैदावार अफ्रीका, एशिया और उत्तरी अमेरिका में की जाती है।
5) सत्य घटना और बिच्छू
बिच्छू की व्याख्या करने के बाद, मैं आप सभी के साथ मेरी माताश्री जिन्हें बिच्छू के प्रतिकूल प्रभावों के बारे में नहीं पता था, का एक कारनामा बतााना चाहती हूँ। यह एक सत्य घटना है। मेरी मम्मी और उसके पहाड़ी इलाकों में पली-बढ़ी ना होने के कारण, बिच्छू के प्रभाव का ज्ञान ना होने की है। आपको बता दूँ, मेरी मम्मी को गुस्सा दिलाना बिल्कुल पलक झपकाने जितना आसान है (विशेष रूप से उनके बच्चों द्वारा)।
तो यह घटना उस वक्त की है, जब मेरा छोटा भाई अपने जीवन के 2 से 3 वर्ष पूरे कर चुका था। मम्मी सुबह से काम से घिरी हुई थी| दिन में जब अंततः सारे कार्य कर उसने यह सोचा कि अब आराम का वक्त है। अपने सामने एक 2 से 3 तीन वर्षीय बालक को, बिस्तर पर फैली हुई चीनी के बीच मुस्कुराता पाया| मम्मी दिन भर से मन में दबी भावनाओं को रोक नहीं पाई।
उसने कुछ ऐसा इस्तेमाल कर लिया जिसके परिणामों का उसे स्वयं कोई ज्ञान नहीं था। जी हाँ! मम्मी ने मेरे छोटे भाई पर बिच्छू का प्रयोग करते हुए उसका पूरा चेहरा श्री हनुमान के समान लालिमा युक्त और सूजा हुआ बना दिया।
इसीलिए कहा गया है के,
“अपूर्ण जान होने से बेहतर ज्ञान ना होना है। “
6) बिच्छू घास एवं अन्य लाभदायक कार्य
जहाँ बिच्छू घास का एक सशक्त हथियार के रूप में प्रयोग होता है, वहीं बिच्छू घास कई अन्य प्रकार से काम में आता है। चलिए जान लें बिच्छू घास के ऐसे प्रयोग, जिससे नहीं हैं डरते बच्चे, हर रोज :-
- यह लिखते हुए मैं इसकी पुष्टि स्वयं करना चाहूँगी, इसका स्वाद लेने का मौका मुझे स्वयं प्राप्त हुआ था, जी हाँ! बिच्छू घास की सब्जी बनाई जाती है,और यह सौभाग्य मुझे मेरी नानी के हाथों द्वारा प्राप्त हुआ।
“मैं उस दिन को और बिच्छू के उस निर्मल स्वभाव को कभी नहीं,पाऊँंगी भुला
और
कस स्वाद छिन व्येक शब्दाें में कि बतों भुला!”
- अल्मोड़ा के करीब चितई के पंत गाँव में स्थापित कंपनी पिछले डेढ़ साल से, बिच्छू घास से बनी 500 किलो चाय का देशभर में निर्यात कर चुकी है। इस चाय का सालाना उत्पादन 4 कुंटल है। इसका स्वाद बिल्कुल खीर के समान होता है| काफी मांग होने के कारण इस बिच्छू घास से बनी चाय के 50 ग्राम के एक पैकेट की कीमत ₹110 है।
- बिच्छू घास को औषधि के रूप में भी इस्तेमाल किया जाता है, जैसे:-
- उच्च रक्तचाप (ब्लड प्रेशर) को कम करना।
- किसी भी प्रकार के दर्द (जैसे माँसपेशियों का दर्द, पीठ दर्द, मासिक धर्म के दौरान होने वाला दर्द) को कम करना।
- मोच आने पर आराम।
- त्वचा संबंधी समस्याओं का निदान।
- गठिया में इसका तेल लाभदायक होता है।
- बालों और मुहांसों के लिए फलकारी होता है।
- बिच्छू घास का प्रयोग कर ऊन बनाया जाता है, उसका इस्तेमाल शाल, कंबल, जैकेट आदि का निर्माण होता है।
- उत्तराखंड में जब पहाड़ी महिलाओं ने मदिरा के विमत हो मोर्चा उठाया था, तो शराबियों को सबक सिखाने हेतु महिलाओं ने बिच्छू घास का ही इस्तेमाल किया।
“बिच्छू घास का साया था आया था,
बचपन पर डर मंडराया था!
शांति व सन्नाटा छाया था,
वो बच्चा पहाड़ी कहाँ, जो बिच्छू से ना थर्राया था!”
– darkness_entails_light