संसार का सबसे बड़ा धन है “आत्मधन”

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‘मैकक्रीडल’ नमक एक पाश्चात्य विचारक ने ‘मैगस्थनीज़’ के ‘इन्द्रिक ग्रंथ’ का उदाहरण देते हुए अपनी पुस्तक में लिखा है कि जब सिकंदर भारत पर आक्रमण हेतु निकला , तब उसके गुरु ‘अरस्तु’ ने उसी आदेश दिया था की वह भारत से लौटते समय दो उपहार अवश्य लाये –

  • एक गीता 
  • दूसरा एक दार्शनिक संत ;

सिकंदर जब वापस लौटने को था तो उसने अपने सेनापति को आदेश दिया -“भारत के किसी संत को समान के साथ ले आओ।” 

सैनिक ‘दंडी स्वामी’ जिनका उल्लेख ग्रीक भाषा में ‘डायोजिनीज’ के रूप में हुआ है उनसे मिला। दंडी स्वामी से मिलकर सिकंदर के दूत ने कहा – “आप हमारे साथ चले सिकंदर आपको मालामाल कर देंगे। अपार वैभव आपके चरणों में होगा।”

अपनी सहज मुस्कान में दंडी स्वामी ने उत्तर दिया -“हमारे रहने के लिए शस्य श्यामला भारत की पावन भूमि , पहनने के लिए वल्कल वस्त्र ,पीने के लिए गंगा की अमृत धार तथा खाने के लिए एक पाव आटा पर्याप्त है। हमारे पास संसार की सबसे बड़ी संपत्ति आत्मधन है। इस धन से बड़ा तुम्हारा दरिद्र सिकंदर हमें क्या दे सकता है ?”

शक्ति एंव सम्पति के दर्प से चूर सिकंदर ने सैनिक के वार्तालाप को जब सुना तो विस्मित रह गया । उसका अहंकार चकना चूर हो गया।

आद्यात्मिक सम्पदा के धनी इस देश के समक्ष नतमस्तक होकर चला गया ।