यों तो इस जगह को किसी परिचय की जरूरत नहीं है। उत्तराखंड के चार धामों में सबसे दुर्गम जगह पर बना यह धाम अपने आप में सम्पूर्ण है। यकीन मानिये अगर आपने यह धाम देख लिया तो दुनिया का कोई भी धाम और मंदिर आपको रास नहीं आयेगा। लगभग 3593 मीटर की ऊँचाई पर हिमालय की गोद में बना यह भव्य मंदिर 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। इतनी ऊँचाई पर यह मंदिर कैसे बनाया गया इस बारे में आज भी पूर्ण सत्य ज्ञात नहीं है। यहाँ जाने के लिए आपको गौरीकुंड से लगभग 22 किलोमीटर पहाड़ी रास्ते से गुजरना पड़ेगा अगर आप पहाड़ पर चढ़ने में असमर्थ हैं तो गौरीकुण्ड से घोड़ा, पालकी, पिट्ठू आदि के साधन मिलते हैं लेकिन इन सब से आप यात्रा का सम्पूर्ण आनन्द नहीं ले पायेंगे। हमने पैदल ही इस यात्रा की शुरुआत की।
लगभग दोपहर 2 बजे हम गौरीकुंड पहुँचे और वहाँ से जो सफर शुरू हुआ वो बाकई यादगार था। बम भोले के स्वरों से गूँजता हिमालय औऱ घोड़ो की चाप से बजता हुआ संगीत बहुत शुकून देने वाला था। थोड़ी थोड़ी दूरी पर रुकने औऱ खाने पीने की छोटी मोटी दुकानें के बीच चाय पीने का मज़ा ही कुछ और था। चारों तरफ बर्फीले पहाड़ों को देखकर और बापस आते हुए लोगों से जय भोले की बोलकर उनके थके हुए पैरों को नई ऊर्जा देकर हम लोग आगे बढ़ते गए और जब हम बर्फ़ीले रास्ते के बहुत नजदीक पहुँचे तो वहां पर पता चला कि यहां से अब 8 किलोमीटर ही सफर रह गया है। बर्फ को काटकर बनाये गए उस रास्ते में हर कदम बहुत आत्मविश्वास से रखना पड़ता है क्योंकि हल्की सी फ़िसलन आपको हज़ारो फ़ीट नीचे ला सकती है।
अगर आप यहां जायें तो सूने पड़े पहाड़ों पर अपने चाहने वालों को जोर से नाम लेकर जरूर पुकारें। ये पहाड़ आपकी इस पुकार को आपके चाहने वालों तक बहुत तेज आबाज़ में पहुंचाएंगे जो कि अपने आप में एक अदभुत अनुभव होगा।
हम लगभग 7 घंटे में बाबा के आंगन में पहुँच गए थे और भोजन ग्रहण करने के बाद रात गुजारने के लिए एक छोटी सी झोंपडी किराये पर ले ली। तापमान माइनस में कितना था ये तो पता नहीं लेकिन ठंड जोरदार थी 2-2 रजाई और एक कम्बल ओढ़ने के बाद भी ठंडा ही महसूस हो रहा था। लेकिन भोलेनाथ के आशीर्वाद से हम सुबह 5 बजे उठे और ठीकठाक थे। गर्म पानी का जुगाड़ कर के हम लोग नहा धो कर तैयार हो गए और मंदिर में दर्शन के लिए लंबी कतार न बन जाये इसलिये थोड़ी जल्दबाजी दिखाते हुए बाबा के दर्शन करने के लिए आ गए।
वैसे तो हर धार्मिक स्थल पर एक अलग ही तरह के पॉजिटिव वाइब्स होते हैं लेकिन यहां कुछ ज्यादा ही थे। मंदिर के अंदर फोटोग्राफी मना है इसलिए मोबाइल स्विच ऑफ करा दिए गए और हम लोग बाबा के दर्शन कर के मंदिर के बाहर आ गए जहाँ सब लोग फोटोशूट करने में लगे थे। हर कोई उन लम्हों को कैद कर लेना चाहता था। फोटोशूट करते करते हमारी नज़र मंदिर के पीछे पड़ी एक विशालकाय चट्टान पर पड़ी ये वो ही चट्टान थी जिसने जून 2013 में आई त्रासदी से मंदिर की रक्षा की थी। उस समय लाखों लोग भोलेनाथ के गुस्से का शिकार हो गए थे और यहाँ बनाई गई बहुमंजिला इमारतें कागज़ की तरह ढह गयीं थीं फिर भी मंदिर का कोई छोटा सा हिस्सा भी टूटकर अलग नहीं हो सका था इससे ज्यादा और क्या किसी शक्ति का सबूत हो सकता है। यहां मैंने एक जेसीबी को भी देखा था जिसे देखकर आश्चर्य हुआ औऱ सोचा कि शायद हेलिकॉप्टर से लाई गई होगी लेकिन बाद में किसी ने बताया कि लगभग 90 भोलेभक्तों को उनके प्रसाद स्वरूप रम पिलाई गयी और वो लोग इसे उठाकर यहां तक लेके आये हैं इस बात पर मुझे बिल्कुल भी आश्चर्य नहीं हुआ और इस पवित्र धाम के प्रति लोगों की आस्था को देखकर बाबा को बारम्बार प्रणाम किया।
हे भोले अपने भक्तों का खयाल राखिये?