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भुलक्कड पति (कविता)

by Rajesh Budhalakoti

हमेशा भूल कर देता हू मैं।
बाजार से सामान लाना हो,
या पूर्णमासी की पूजा का प्रसाद, प्रियजनों तक पहुचाना हो,
हमेशा भूल कर देता हूँ मैं।

तुम्हारी दी गयी लिस्ट का जरुरी सामान याद नहीं रहता,
उस लिस्ट को घर पर ही कहीं भूल जाता हूँ,
मन माना सामान खरीद घर जब पहुचता हूँ,
एक चाय की हसरत लिये बैठ जाता हूँ,
और खूब डांट खाता हूँ,
हमेशा भूल कर देता हू मैं, हमेशा भूल जाता हूँ मैं।

साल मे जब तुम्हारा जन्मदिन आता है,
या हमारे गठ बन्धन का दिन दुहराता है,
साडी या कोई उपहार का मौसम,
तुम्हारी आशाओ मे कल्पनाओ मे गोते लगाता है
वो दिन भूल जाता हूँ मै,
बहुत डाँट खाता हूँ मैं।
हमेशा भूल कर देता हूँ मैं, हमेशा भूल जाता हूँ मैं।

तुम्हारे मायके वाले रिश्तेदारों को जब खाने पे आना हो,
मटर पनीर से आगे मेरी सलाह का जब न बड़ पाना हो,
अपने मित्रो की सोमरस दावत में,
चिकन के व्यन्जन चाव से बनवाना हो,
तुम्हारा इस बात को लेकर हड्कम्प मचाना हो,
हमेशा भूल जाता हूँ मैं, हमेशा भूल कर देता हूँ मैं।

नयी साड़ी पहन कर जब तुम्हे शादी मे जाना हो,
या किसी मित्रो की महफ़िल मे जगमगाना हो,
मेरा तारीफ़ के चन्द लफ़्ज न बोल पाना हो,
नयी साड़ी पुरानी समझ उलझन मे आना हो,
तुम्हारा सात दिन गुस्से  मे मुझको बैगन खिलाना हो,
हमेशा भूल कर देता हूँ मैं, हमेशा भूल जाता हूँ मैं।

जब कभी जीवन की राहों मे घबरा जाता हूँ मैं,
सब तरफ़ घनघोर अन्धेरा पाता हूँ मैं,
क्या करू किस ओर बढना है समझ नही पाता हूँ मैं,
तुम्हारा हाथ कान्धे पे अपने सदा पाता हूँ मैं,
सोचता हू तुम साथ हो तो क्यो घबराता हूँ मैं,
हमेशा भूल कर देता हूँ मैं, हमेशा भूल जाता हूँ मैं।

सारे मेरे जैसे भुलक्कड पतियों को समर्पित। ✍️


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