भगत सिंह का बलिदान, लोकतंत्र के वर्तमान स्वरुप पे हो गया कुर्बान,
युवा पर लिख कर बेरोजगार, भाई भतीजावाद का बेख़ौफ़ कारोबार,
अमीर दिन रात चौगुनी उन्नति करे, गरीब फाके कर रोटी के जुगाड़ में मरे।
नेता पुस्त दर पुस्त के लिए जमा कर रहे,
गद्दी का आनंद ले सातों पीडीओ को तर रहे।
व्यवस्था क्या है, कहाँ है, किनके लिए है,
पैसा जहां है, वहाँ है, जहां नहीं, कुछ भी नहीं है।
कभी जाति, कभी धर्म, कभी रिश्ता काम आया,
सच्चा इंसान, लोक प्रतिनिधि न कभी बन पाया।
अब हमे चुप न ये सब कुछ सहना होगा,
और इस भीड़ तंत्र का स्वरुप बदलना होगा।
हर सर को छत , तन को कपड़ा, पेट खाली न रहे,
हर हाथ को काम मिले, कोई सवाली न रहे।
ये न सोचो कि, क्या होगा एक वोट से,
बदलो ज़माने की ये तस्वीर अपने वोट से।
नेक सच्चे जो हो वो ही बस आगे आयें,
बापू की राह चले जो वो ही मत पाए।
इस तरह देश की तस्वीर बदल जाएगी,
एक बार ठान लो तकदीर बदल जाएगी।
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