कुछ लोग ऐसे होते हैं जो शोरगुल से बचकर लक्ष्य साधते हैं और उनका काम समय आने पर बोलने लगता है। जिले के गरुड़ तहसील के अमस्यारी गांव निवासी बसंत बल्लभ जोशी भी कुछ ऐसा ही कर रहे हैं। उन्होंने गांव की करीब 58 हेक्टेयर बंजर भूमि में जंगल लगाने का सपना देखा। सपने को साकार करने के लिए दिन-रात जुटे रहे। करीब दस वर्ष की मेहनत के बाद अब सफलता भी मिलने लगी है।
पर्यावरण संरक्षण और सवंर्धन के लिए जहां सरकार लोगों को जागरूक कर रही है। वहीं कुछ लोग घर-परिवार की जिम्मेदारी निभाने के बाद वनों को संरक्षित करने में जुटे हुए हैं। जिले के लिए अमस्यारी गांव निवासी बसंत बल्लभ जोशी का नाम भी उन लोगों में शुमार होता है। उन्हें लोग वृक्ष प्रेमी के नाम से भी संबोधित करते हैं। बसंत ने सिद्धगांव नामक स्थान पर पिछले 50 साल से बंजर पड़ी भूमि को हरा-भरा करने में अपनी पूरी ताकत झोंक दी। उसका नतीजा भी बेहतर दिखाई देने लगा है। 1970 में सिद्धगांव में लोग खेती करते थे। संयुक्त खाते की भूमि होने के कारण किसानों ने इसे छोड़ दिया। बसंत ने गांव वालों की आमराय के बाद 1994 से इस भूमि में बांज, फंल्याट, उतीस, देवदार, चीड़, तेजपत्ता हरण, आंवला और चारापत्ती प्रजाति के पौधरोपण शुरू किया। 2010 तक पौध पेड़ बनने लगे और वर्तमान में सिद्धगांव की बंजर भूमि हरी-भरी हो गई है।
वन संरक्षण के लिए मिला सम्मान
2019 में तत्कालीन वन संरक्षक जयराज, तत्कालीन वन सचिव आनंद वर्धन ने 26 जनवरी की पावन बेला पर उन्हें वन संरक्षण के लिए किए जा रहे काम को लेकर प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया। 2011 में तत्कालीन मुख्यमंत्री रमेश चंद्र पोखरियाल, 2015 में तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत ने भी उन्हें वनों के सरंक्षण और संवर्धन के लिए प्रशस्ति पत्र प्रदान किया।
1994 से वन संरक्षण और संवर्धन के लिए काम कर रहा हूं। लगभग 58 हेक्टेयर भूमि में 30 हजार पौधे रोपे, जिसमें काफल, तेजपत्ता, हरण, उतीस, बांज, आंवला और चारपत्ती प्रजाति शामिल है। इसबीच सिद्धगांव में बुरांश खिलने लगा है और चारों तरफ हरियाली है।
-वृक्ष प्रेमी बसंत बल्लभ जोशी
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वनों के संरक्षण और संवर्धन के लिए बसंत बेहतर कार्य कर रहे हैं। उनके बनाए जंगल का वह स्वयं निरीक्षण करेंगे। पूर्व में उन्हें वन विभाग ने भी प्रशस्ति पत्र प्रदान किया है। वनों को बचाने वाले लोगों को हरसंभव मदद की जाएगी।
-बीएस शाही, प्रभागीय वनाधिकारी, बागेश्वर।