उत्तराखंड में भगवान शिव को समर्पित पांच केदार हैं जिन्हें पंच केदार के नाम से जाना जाता हैं। उन्हीं में से तीसरा केदार हैं तुंगनाथ मंदिर। इस मंदिर का निर्माण आज से हजारों वर्षों पूर्व महाभारत के समय में पांडवों के द्वारा किया गया था। तुंगनाथ मंदिर हिमालय की पहाड़ियों पर अलकनंदा व मंदाकिनी नदियों के बीच भगवान शिव का मंदिर है।
तुंगनाथ शिव मंदिर, चोपता, उत्तराखंड
तुंगनाथ मंदिर का इतिहास
महाभारत के भीषण युद्ध के बाद पांडवों ने गोत्र व ब्राह्मण हत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए भगवान शिव को प्रसन्न करने का निर्णय किया था। इसके बाद उन्होंने भगवान शिव को काशी से लेकर केदारनाथ तक ढूंढा लेकिन वो उन्हें नही मिले।
भगवान शिव सभी पांडवों से अत्यधिक क्रोधित थे। इसलिए वे उनसे छुपने के लिए एक बैल का रूप लेकर धरती में समाने आए लेकिन तभी भीम ने उन्हें देख लिया और बैल को पीछे से पकड़ लिया। तब उस बैल का पीछे वाला भाग वही रह गया और बाकि चार भाग चार अन्य जगहों पर निकले जिन्हें हम पंच केदार कहते हैं।
पंच केदार में तीसरा केदार तुंगनाथ
जब भीम ने महादेव के बैल रूप को पकड़ा तब उसकी भुजाएं यहाँ प्रकट हुई थी। बैल का पीछे वाला भाग केदारनाथ में रह गया था जबकि अन्य तीन भाग में मुख रुद्रनाथ में, नाभि मध्यमहेश्वर में तथा जटाएं कल्पेश्वर में प्रकट हुई थी। इन पांचों स्थानों पर पांडवों के द्वारा भगवान शिव को समर्पित मंदिरों का निर्माण किया गया था व शिवलिंग की स्थापना की गयी थी। इससे भगवान शिव ने प्रसन्न होकर उन्हें पाप मुक्त कर दिया था।
तुंगनाथ का अर्थ
तुंगनाथ का मतलब होता है पहाड़ो का भगवान जो कि भगवान शिव को कहा जाता है।
तुंगनाथ मंदिर का भूगोल
तुंगनाथ महादेव मंदिर उत्तराखंड राज्य के रुद्रप्रयाग जिले के अंतर्गत आता है। यहाँ पर चोपता नामक एक गाँव हैं। इसी गाँव के पास तुंगनाथ नामक पहाड़ी है। चोपता गाँव तक हम विभिन्न साधनों से पहुँच सकते हैं। उसके बाद यहाँ से तुंगनाथ पहाड़ी पर चढ़कर तुंगनाथ मंदिर तक पहुंचा जा सकता है।
तुंगनाथ पहाड़ी से तीन झरने निकलते हैं जिनसे अक्षकामिनी नदी का निर्माण होता है। साथ ही यह पहाड़ी प्रसिद्ध अलकनंदा व मंदाकिनी नदियों के बीच में स्थित है।
तुंगनाथ मंदिर की सरंचना
मंदिर का निर्माण बड़े-बड़े पत्थरों से किया गया है जिसके अंदर काले पत्थर से बना शिवलिंग स्थापित है। मंदिर के प्रवेश द्वार पर भगवान शिव की सवारी नंदी शिवलिंग की ओर मुख किये हुए है। मंदिर के अंदर शिवलिंग के आसपास काल भैरव, महर्षि व्यास व अष्टधातु से बनी मूर्तियाँ स्थापित की गयी हैं। इसके अलावा बाकि चार केदारों व पांडवों की नक्काशियां भी दीवार पर देखने को मिलेंगी।
तुंगनाथ मंदिर के दायीं ओर एक छोटा सा मंदिर है जहाँ भगवान गणेश की मूर्ति स्थापित है। गणेश मंदिर के दायीं ओर अन्य छोटे-छोटे पांच मंदिर भी हैं। एक तरह से तुंगनाथ मंदिर के आसपास कई छोटे-छोटे मंदिर हैं। मुख्य मंदिर के ऊपर एक लकड़ी का चबूतरा बना हुआ है जो चारों ओर से सोलह खिड़कियों के माध्यम से खुला हुआ है। इस चबूतरे के ऊपर मंदिर के शिखर को बड़े-बड़े पत्थरों की सहायता से ढका गया है।
तुंगनाथ ट्रेक
यहाँ आप अपने या सार्वजनिक साधनों से केवल चोपता गाँव तक ही पहुँच सकते हैं, इसलिए आगे की यात्रा पैदल चलकर ही करनी पड़ेगी। तुंगनाथ मंदिर का ट्रेक ज्यादा मुश्किल नही है क्योंकि इसे चट्टानों व पत्थरों को काटकर समतल बनाया गया है लेकिन कहीं-कहीं सीधी चढ़ाई आती है।
तुंगनाथ मंदिर के ट्रेक में आपको ज्यादा मुश्किल नही होगी। यदि आप रुक-रुक कर भी चले तो ज्यादा से ज्यादा यह ट्रेक 3 घंटे में पूरा हो जाएगा लेकिन सबसे मुख्य बात जो तुंगनाथ के ट्रेक को आकर्षक बनाती है, वह है यहाँ का मनोहर दृश्य।
तुंगनाथ मंदिर में पूजा अर्चना
आज से कई सदियों पहले जब आदि शंकराचार्य ने जन्म लिया था तब उनके आदेशानुसार बाकि चार केदारों में दक्षिण भारत के पंडित ही मुख्य पुजारी बने थे। यह परंपरा आज तक चली आ रही है लेकिन तुंगनाथ मंदिर के साथ ऐसा नही है। तुंगनाथ मंदिर के पुजारी वहां के स्थानीय ब्राह्मण होते हैं जो पास के ही गाँव मक्कूमठ के होते हैं। सर्दियों में जब तुंगनाथ मंदिर बंद हो जाता है तब मुख्य मूर्ति को वहां से उठाकर मक्कूमठ गाँव के मंदिर में ही स्थापित किया जाता है।
तुंगनाथ मंदिर का मौसम
यदि आप पहाड़ी इलाकों में नही रहते हैं तो यहाँ आपको हर समय सर्दी का ही अहसास होगा क्योंकि यहाँ की गर्मी मैदानी इलाकों के लिए सर्दी के बराबर ही है। यहाँ गर्मियों में अधिकतम तापमान 15 से 20 डिग्री तक पहुँचता है जबकि सर्दियों में तो यहाँ बर्फ जम जाती है और तापमान 5 से -10 डिग्री तक पहुँच जाता है। इसलिए आप जब भी यहाँ आये तब गर्म कपड़े साथ में लेकर आये।
तुंगनाथ मंदिर खुलने व बंद होने की तिथि
मंदिर आधिकारिक रूप से गर्मियों के मौसम में मार्च-अप्रैल के महीने में खुलता है और दीपावली तक खुला रहता है। दीपावली के बाद मंदिर में स्थित मुख्य मूर्ति को वहां से लाकर मक्कूमठ मंदिर में रख दिया जाता है जो कि यहाँ से 20 से 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इसके बाद मंदिर फरवरी के महीने तक बंद रहता है और मक्कूमठ में ही भगवान की पूजा-अर्चना की जाती है।
तुंगनाथ मंदिर में दर्शन करने का समय
यह मंदिर प्रातः काल 6 बजे आम भक्तों के लिए खुल जाता है और शाम में 7 बजे के आसपास मंदिर के कपाट बंद हो जाते हैं।
तुंगनाथ मंदिर कैसे पहुंचे
यहाँ पहुँचने के लिए आप उत्तराखंड राज्य के तीन बड़े शहरों हरिद्वार, ऋषिकेश या देहरादून कहीं भी आ जाये क्योंकि उससे आगे की यात्रा बस, टैक्सी या निजी वाहन से ही करनी पड़ेगी।
हवाई मार्ग से तुंगनाथ मंदिर कैसे जाए:
यदि आप हवाई जहाज से तुंगनाथ मंदिर आना चाहते हैं तो चोपता के सबसे नजदीकी हवाई अड्डा देहरादून का ग्रांट जॉली हवाई अड्डा है। वहां से बस या टैक्सी करके चोपता पहुँचना पड़ेगा।
रेल मार्ग से तुंगनाथ मंदिर कैसे जाए:
यदि आप सभी भारतीयों की पसंदीदा रेलगाड़ी से तुंगनाथ मंदिर आ रहे हैं तो सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन ऋषिकेश का है। यहाँ से फिर आपको बस या टैक्सी की सहायता से चोपता पहुंचना पड़ेगा।
सड़क मार्ग से तुंगनाथ मंदिर कैसे जाए:
वर्तमान समय में उत्तराखंड राज्य का लगभग हर शहर व कस्बा बसों के द्वारा सड़क मार्ग से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ हैं। हालाँकि कुछ जगहों पर बस सीधी नही जाती, इसलिए वहां से आपको बस बदलनी पड़ सकती हैं। आपको दिल्ली, चंडीगढ़, जयपुर इत्यादि से ऋषिकेश तक की सीधी बस आसानी से मिल जाएगी। फिर वहां से आप आगे के लिए स्थानीय बस या टैक्सी कर सकते हैं।
तुंगनाथ के आसपास दर्शनीय स्थल
चंद्रशिला पहाड़ी
जो लोग भी तुंगनाथ मंदिर घूमने जाते हैं वे चंद्रशिला पहाड़ी पर भी जरुर जाते हैं। यह तुंगनाथ मंदिर से लगभग 1 से 2 किलोमीटर ऊपर हैं जिसके लिए आपको एक से डेढ़ घंटे की चढ़ाई और करनी पड़ेगी। मान्यता हैं कि यहाँ भगवान श्रीराम ने रावण वध के बाद ब्रह्महत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए कुछ समय तक ध्यान किया था और भगवान शिव से क्षमा मांगी थी। यहाँ की पहाड़ी पर एक छोटा सा मंदिर भी है जहाँ से हिमालय की चोटियों को देखा जा सकता हैं।
देवरिया ताल
जब आप उखीमठ से चोपता जा रहे होते हैं तब बीच में सारी नामक एक गाँव आएगा। उस गाँव से 2 से 3 किलोमीटर की चढ़ाई पर देवरिया ताल आता है। यह एक सुंदर झील है जो चारों ओर से जंगलों से घिरी हुई है। इस झील के पानी में पहाड़ियों के प्रतिबिम्ब देखने में बहुत ही आकर्षक लगते हैं।
चोपता गाँव
चोपता गाँव अपने आप में ही एक घूमने लायक जगह है। यहाँ भी आप प्रकृति का आनंद ले सकते हैं और आसपास ट्रेक कर सकते हैं।
उखीमठ
यहाँ भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित कई मंदिर देखने को मिलेंगे।
कस्तूरी मृग अभयारण्य
इस अभयारण्य में कस्तूरी मृग मुख्य रूप से पाए जाते हैं, इसलिए इसका नाम कस्तूरी मृग अभयारण्य पड़ा। साथ ही इसमें अन्य दुर्लभ वन्य प्रजातियाँ भी पाई जाती हैं।