ये उन दिनों की बात है जब मैं अपना हाई स्कूल कर रहा था,वो शहर आज भी भुलाये नहीं भूलता और उसकी यादें भी आज भी जब हम पुराने दोस्त साथ होते है तो उसका ज़िकर और वो पल जो सिर्फ उसके और मेरे थे निकल ही आते है,उसका वो मैथ्स की कोचिंग में मेरे बगल में बैठना और मुस्कुरा कर एक झिझक के साथ मुझसे पूछना की एक्स्ट्रा पेन है क्या..?
और मेरा उसके कहते ही ये जवाब देना की हाँ..हाँ.. क्यों नहीं तुम्हारे लिए ही तो लाता हूं मैं फिर उसका मुस्कुरा कर मेरी और देखना आज भी बहुत याद आता है… फिर एक दिन की वो बारिश जिसने पूरी समीकरण ही बदल दी और हमारी दोस्ती कब इतनी गहरी हो गयी की साथ में आना साथ में जाना शुरू हो गया! फिर पता चला की वो तो मेरे घर से कुछ दुरी में ही रहती थी….और ये दुरी उससे मिलने से पहले बहुत दूर हुआ करती थी पर अब जैसे की ये दुरी कुछ मिनट की ही रह गयी हो! वो बिलकुल अपने नाम जैसी थी!
वो बड़े सयाने कह गए है न की जैसा नाम वैसा काम उसका नाम बबली और थी वो पूरी पगली कुछ अनोखा था उसमे दिन बीतते गए और दोस्ती और गहरी होती गयी वो 24 घंटों में से 2 घंटे साथ में होना जैसे पूरा दिन बना देता था !
पर वो कहते है न होता वही है जो किस्मत को मंजूर हो फिर मेरा परिवार हल्द्वानी में आ बसा हम यही रहने लगे धीरे धीरे बातों का सिलसिला कम होते-होते थम सा गया …और आज पुरे 12 सालों बाद हमे ऊपर वाले ने आज फिर मिलाया पर मैं तो वक़्त के साथ चलने की होड़ में खुद को कुछ भुला सा ही बैठा था, घर से ऑफिस, ऑफिस से घर मानो यही मेरी दुनिया हो लेकिन उसकी एक झलक ने मेरी दुनिया मैं जैसे उथल-पुथल मचा दी हो। मैं चाह कर भी उससे कहे नहीं पा रहा था की बहुत मिस किया तुम्हें। कहुँ भी तो कैसे वो अपनी ज़िन्दगी में बहुत खुश जो नज़र आ रही थी, मानो उस पर वक़्त का कोई असर पड़ा ही नहीं मानो उसकी उम्र बढ़ी ही नहीं आज भी वही कद काटी वही मुस्कान कैशा की कुछ समय पहले कुछ हिम्मत कर बैठता तो शयद हम दोनों कुछ करीब तो होते, बड़ी हिम्मत करके फिर उसके सामने जाने की कोशिश कर ही रहा था, अचानक से उसे न जाने किसका कॉल आया और वो वहाँ से अचानक ही चली गयी ना मैं उसका हाल पूछ पाया और ना अपना हाल बता पाया। बस इतनी सी थी मेरी कहानी!
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