“माता–पिता की मूरत है गुरू, इस कलयुग में भगवान की सूरत है गुरू”
शिक्षक समाज के निर्माणकर्ता है, वही समाज के मार्गदर्शक होते हैं। गुरु का स्थान माता–पिता से भी ऊंचा होता है। बच्चा परिवार में जन्म लेता है, लेकिन गुरु ही उसका मार्गदर्शन कर उसके उज्जवल भविष्य की नींव तैयार करते हैं। शिक्षक सिर्फ वही नहीं होता, जो हमें स्कूल-कॉलेजों में पढ़ाया करते हैं, शिक्षक वह हर व्यक्ति है, जिससे हमें जीवन में कुछ नया सीखने को मिलता है।
भारत में शिक्षक दिवस मनाने की शुरुआत 5 सितंबर 1962 से हुई। तब से प्रत्येक वर्ष 5 सितंबर को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है। शिक्षक दिवस पूर्व राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन की जयंती के मौके पर मनाया जाता है। डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का देश की शिक्षा में बहुत बड़ा योगदान रहा है।
डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन
डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन भारत के पहले उप–राष्ट्रपति दूसरे राष्ट्रपति, बेहतरीन शिक्षक, महान निर्देशक और स्कॉलर थे। 1954 में उन्हें भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया था। डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन को 27 बार नोबेल पुरस्कार के लिए नामित किया गया।
1962 में जब डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने राष्ट्रपति का पद ग्रहण किया था। उसी वर्ष उन्होंने अपने छात्रों से, उनके जन्मदिन को शिक्षक दिवस के रूप में मनाने की इच्छा जताई थी। तब से इस दिन को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है।
शिक्षकों का जीवन में योगदान हम कुछ इस तरह समझ सकते हैं, जैसे एक कुम्हार मिट्टी के बर्तन को दिशा देता है, वैसे ही शिक्षक हमारे जीवन को दिशा देने के साथ-साथ हमें सफल बनाते हैं। गुरु शिष्य के लिए प्रेरणा स्रोत होता हैं, जो शिष्य को हमेशा जिंदगी में हर परिस्थिति में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता है। जिंदगी में कामयाब तो हर कोई होना चाहता है, लेकिन कामयाब होने के लिए गुरु का मार्गदर्शन करना जरूरी है।
इस दिन हर कोई अपने-अपने तरीके से, अपनी जिंदगी में शिक्षकों के योगदान और मार्गदर्शन के लिए उन्हें आभार जताता है।
मैं आप सभी को शिक्षक दिवस की बहुत–बहुत शुभकामनाएं देता हूं। शिक्षक हमारे जीवन में प्रकाश स्तंभ होते हैं। गुरु हर परिस्थितियों में अपना समय देकर, हमारे जीवन को संवारते हैं, और हमें सही दिशा में मार्गदर्शन करते हैं। शिक्षकों का राष्ट्र निर्माण में बहुत बड़ा योगदान रहता है।
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