पिथौरागढ़ में घूमने की जगह

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पिथौरागढ़ जिला भारत के उत्तराखंड राज्य का सबसे पूर्वी हिमालयी जिला है। यह प्राकृतिक रूप से उच्च हिमालयी पहाड़ों, बर्फ से ढकी चोटियों, दर्रों, घाटियों, अल्पाइन घास के मैदानों, जंगलों, झरनों, बारहमासी नदियों, ग्लेशियरों और झरनों से घिरा हुआ है। क्षेत्र की वनस्पतियों और जीवों में समृद्ध पारिस्थितिक विविधता है। चंद साम्राज्य के उत्कर्ष काल में पिथौरागढ़ में कई मंदिर और किलों का निर्माण हुआ था। पिथौरागढ़ जिले की संपूर्ण उत्तरी और पूर्वी सीमाएं अंतरराष्ट्रीय हैं, यह भारत के उत्तर सीमा पर एक राजनीतिक रूप से संवेदनशील जिला है। तिब्बत से सटे अंतिम जिला होने के कारण, लिपुलख, कुंगिबििंगरी, लंपिया धुरा, लॉई धूरा, बेल्चा और केओ के पास तिब्बत के लिए खुले रूप में काफी महत्वपूर्ण सामरिक महत्व है।

पिथौरागढ़ में घूमने की जगह

1. मुनस्यारी

मुनस्‍यारी विशाल हिमालय की तलहटी पर स्थित उत्तराखंड का खूबसूरत हिल स्टेशन है। राज्य के पिथौरागढ़ जिले के अंतर्गत यह पहाड़ी गंतव्य अपने मनमोहक वातावरण के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध है। 2300 मीटर की ऊंचाई पर स्थित मुनस्‍यारी का अधिकांश भाग बर्फ की मोटी चादर से ढका रहता है। यहां की बर्फीली चोटियों की वजह से इस हिल स्टेशन को उत्तराखंड का ‘मिनी कश्मीर’ कहा जाता है। तिब्बत और नेपाल सीमा के करीब यह पहाड़ी शहर साहसिक ट्रैवलर्स के लिए किसी स्वर्ग से कम नहीं। इसके अलावा मुनस्‍यारी हिमालय वस्पतियों और वन्य जीवन के लिए भी काफी प्रसिद्ध है। इस खास लेख में जानिए मुनस्‍यारी के सबसे खूबसूरत स्थलों के बारे में जहां का प्लान आप इन गर्मियों के दौरान बना सकते हैं।

2. पाताल भुवनेश्वर

पाताल भुवनेश्वर गुफा मंदिर उत्तराखंड के पिथौरागढ़ में स्थित है जो अपने पौराणिक इतिहास को समेटे हुए है और पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। पर्यटकों के लिए यह गुफा घूमने के लिए एक मुख्य स्थल हुआ करता है। उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में स्थित पाताल भुवनेश्वर गुफा मंदिर। यह मंदिर रहस्य और सुंदरता का बेजोड़ मेल के रुप में जाना जाता है। समुद्र तल से 90 फीट नीचे इस मंदिर के अंदर प्रवेश करने के लिए बहुत ही संकीर्ण रास्तों से होकर गुजरना पड़ता है। स्कंद पुराण में भी इस मंदिर की महिमा का वर्णन है।

3. थल केदार मंदिर

थल केदार एक पहाड़ी पर स्थित पिथौरागढ़ के पास भगवान शिव का एक पवित्र मंदिर है। मंदिर पिथौरागढ़ शहर से 16 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। हर साल महा शिवरात्रि के अवसर पर, थल केदार में एक बड़ा मेला लगता है जो यहां बड़ी संख्या में भक्तों को आकर्षित करता है।

4. पिथौरागढ़ किला

पिथौरागढ़ किला पिथौरागढ़ शहर के मध्य में एक पहाड़ी की चोटी पर स्थित है। यह वर्ष 1789 में गोरखाओं द्वारा बनाया गया था। बाउलीकीगढ़ नामक इस किले का निर्माण 1791में गोरखा शासकों ने किया था। नगर के ऊंचे स्थान पर 6.5 नाली क्षेत्रफल वाली भूमि में निर्मित इस किले के चारों ओर अभेद्य दीवार का निर्माण किया गया था। इस दीवार में लंबी बंदूक चलाने के लिए 152 छिद्र बनाए गए हैं। यह छिद्र इस तरह से बनाए गए हैं कि बाहर से किले के भीतर किसी भी तरह का नुकसान नहीं पहुंचाया जा सकता। किले के मचानों में सैनिकों के बैठकर व लेटकर हथियार चलाने के लिए विशेष रूप से स्थान बने हैं। किले की लंबाई 88.5 मीटर और चौड़ाई 40 मीटर है। 8.9 फीट ऊंचाई वाली इस दीवार की चौड़ाई 5 फीट 4 इंच है। पत्थरों से निर्मित इस किले में गारे का प्रयोग किया गया है। किले में प्रवेश के लिए दो दरवाजे हैं। बताया जाता है कि इस किले में एक गोपनीय दरवाजा भी था, लेकिन अब यह कहीं नजर नहीं आता। किले के अंदर लगभग 15 कमरे हैं। किले का मुख्य भवन दो मंजिला है। भवन के मुख्य भाग में बने एक कमरे की बनावट नेपाल में बनने वाले भवनों से मेल खाती है।

5. कामाख्या मंदिर

उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले से 7 किलोमीटर दूर कुसौली गांव में मां कामाख्या देवी का मंदिर स्थित है। यह स्थान सुंदर चोटियों से घिरा हुआ है, जिसके कारण कुसौली में स्थित मां कामाख्या देवी के इस मंदिर की ख्याति दूर-दूर तक फैली है। यह केंद्र आध्यात्मिक शांति के साथ-साथ श्रद्धालुओं को प्रकृति से भी जोड़ता है। मदन मोहन शर्मा ने 1972 में देवी की 6 सिरों वाली मूर्ति को जयपुर से यहां लाकर कामाख्या मंदिर में इसकी स्थापना की थी। अद्भुत सौंदर्य से भरपूर देवी की मूर्ति के दर्शन दूर से ही किए जा सकते हैं। मंदिर में मकर संक्रांति, जन्माष्टमी, शिवरात्रि को विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। इस मंदिर की विशेषता है कि यह उत्तराखंड में कामाख्या देवी का एकमात्र मंदिर है. मंदिर में नवरात्रि पर 10 दिनों तक अखंड ज्योति जलाने के साथ-साथ विशेष पूजा की जाती है। साथ ही भजन-कीर्तन का आयोजन किया जाता है।

6. कपिलेश्वर महादेव मंदिर

कपिलेश्वर महादेव मंदिर टकौरा एवं टकारी गांवों के ऊपर “सोर घाटी” यानी “पिथौरागढ़ शहर “ में स्थित एक विख्यात मंदिर है। कपिलेश्वर महादेव मंदिर पिथौरागढ़ के ऐंचोली ग्राम के ऊपर एक रमणीक पहाड़ी पर स्थित है। 10 मीटर गहरी गुफा में स्थित यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। एक पौराणिक कहावत के अनुसार , इस स्थान पर भगवान विष्णु के अवतार महर्षि कपिल मुनि ने तपस्या की थी इसीलिए इसे “कपिलेश्वर” के नाम से जाना गया। इस गुफा के भीतर एक चट्टान पर शिव , सूर्य व शिवलिंग की आकृतियाँ मौजूद हैं । यह मंदिर शहर से केवल 3 किमी दूर है तथा यह मंदिर हिमालय पर्वतमाला का लुभावना दृश्य प्रस्तुत करता है।

7. ध्वज मंदिर

पिथौरागढ़ जिले के मुख्यालय से 20 किलोमीटर की दूरी पर सतराज नामक जगह से 4 किमी दूर हिमराज के गोद में स्थित ध्वज मंदिर पहाड़ की चोटी पर शिखर पर स्थित है। डीडीहाट मार्ग पर पिथौरागढ़ से 18 किमी. की दूरी पर टोटानौला नाम स्थल है। इस स्थल से 3 किमी. लम्बी कठिन चढ़ाई चढ़ने पर यह प्रसिद्ध मन्दिर स्थित है। ध्वज मंदिर पिथौरागढ़ के पास स्थित एक प्रसिद्ध मंदिर है। यह मंदिर समुद्री तल 2100 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है और शक्तिशाली हिमालय पर्वतमाला की बर्फ से ढंकी चोटियों का मनमोहक दृश्य प्रस्तुत करती है। यह मंदिर हिंदू भगवान शिव को समर्पित है और साथ ही साथ यह मंदिर देवी जयंती माता को समर्पित है जो स्थानीय लोगों द्वारा पूजी जाती हैं। मुख्य मंदिर से 200 फुट नीचे भगवान शिव का एक गुफा मंदिर स्थित है।

8. मोस्टमानु मंदिर

मोस्टा देवता का मंदिर उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले से 7Km की दूरी चंडाक में  है, मोस्टा देवता को सोर घाटी क्षेत्र में वर्षा के देवता के रूप में पूजा जाता है। हर साल भादव के महीने ऋषि पंचमी के दिन 3 दिन का मोस्टामानू मंदिर परिसर में एक मेले का आयोजन किया जाता है , मान्यता है कि मोस्टा देवता वर्षा के देवता है।

9. चांडक हिल

चंडाक पिथौरागढ़ शहर से 8 किमी की दूरी पर स्थित है। यह खूबसूरत पहाड़ी सोर घाटी के उत्तरी क्षेत्र में स्थित है।यहां पहुंचने के लिए कठिन चढ़ाई चढ़नी पड़ती है। यहां पर्यटक हैंग ग्लाइडिंग का आनंद ले सकते हैं। इसके अलावा, यहां मोस्टमानु मंदिर और एक मैग्नेसाइट खनन का कारखाना है। चंडाक हिल्स इन पिथौरागढ़ मे स्थित है।

10. भुरमुनी जलप्रपात

भुरमुनी जलप्रपात ने पिथौरागढ़ की सुन्दरता पर चार चाँद लगा दिए हैं। पहाड़ों में घने जंगलों के बीच झरने के रूप में गिरता हुआ पानी बहुत ही सुन्दर प्रतीत दिखाई दे रहा है। झरने तक पहुँचने के लिए मुख्य सड़क से लगभग 5 किलोमीटर घने जंगलों के बीच आपको कच्चे रास्ते से गुजरना पड़ेगा। इस कच्चे रास्ते पर लगभग 4 किलोमीटर तक आप अपने वाहन से जा सकते हैं किन्तु 1 किलोमीटर आपको पैदल ही जाना होगा जो थोडा सा खतरनाक है।