Home Miscellaneous लॉकडाउन में ढील देने का अर्थ

लॉकडाउन में ढील देने का अर्थ

by Sunaina Sharma

यह तो हम सभी जानते हैं की लॉकडाउन से लोगों को कौन-कौन सी परेशानियां हुई है। जब मामले कम थे तो हमने लॉकडाउन का पूर्णतया पालन किया, लेकिन अब कोरोना के मामले ज्यादा है तो हम बेपरवाह हो गए हैं, जिससे मामले दिन पर दिन बढ़ते जा रहे हैं। लोगों को यह समझना चाहिए कि लॉकडाउन अर्थव्यवस्था की स्थिति को सुधारने के लिए खोला गया है। लॉक डाउन खोलने का यह तर्क तो बिल्कुल नहीं निकाल सकते हम कि अब मामले कम हो रहे हैं और स्थिति सामान्य है।

आज 96000 से भी ज्यादा मामले भारत में आए और हमारा देश कोरोना के बढ़ते मामलों के लिए दुनिया भर में दूसरे स्थान पर है, पहले नंबर पर अमेरिका है। लोगों की बेपरवाही और लॉकडाउन को लेकर लोगों की सोच में यदि अंतर नहीं आया तो कोरोना के बढ़ते मामलों की वजह से कुछ दिनों में भारत प्रथम स्थान पर भी आ सकता है, और यह बेहद डरावना है।

मेरा मानना है कि हम अर्थव्यवस्था को लंबे समय तक लॉकडाउन के जरिए प्रगति से रोक कर नहीं रख सकते, वह भी ऐसी स्थिति में जब भारत में मंदी का दौर हो, विकास दर दिन पर दिन घटती जा रही हो।

लेकिन जो चीजें हमारे कंट्रोल में है जो हम कर सकते हैं, बाहर जाते समय मास्क लगा सकते हैं, इसके लिए कोई आपसे धन नहीं लेगा, इससे आपके स्वास्थ्य की ही रक्षा होगी, और अब तो मास्क सबके बजट में भी है, तब इसे लगाने में हिचकिचाहट कैसी?

मैं जब भी अपनी बालकनी में खड़े होकर देखती हूं तो कई लोग मुझे बिना मास्क के घूमते हुए नजर आ जाते हैं। फिर सोचती हूं कि क्या इन लोगों को अपनी जिंदगी और अपने परिवार से कोई मोह नहीं है!

आजकल तो अस्पताल में भी जाने से मन में भय बना रहता है कि हम जिस बीमारी को ठीक कराने के लिए जा रहे हैं वह ठीक हो ना हो लेकिन कहीं हम कोरोना संक्रमित ना हो जाए।

पिछले कुछ दिनों की ही बात है, जब मुझे स्वास्थ्य संबंधी कारणवश सरकारी अस्पताल जाना पड़ा, तब वहां एंट्री करते ही पार्किंग शुल्क के लिए पर्ची काटने वाले एक जनाब आ गए, जिनके चेहरे पर मास्क तो था लेकिन वह नाक-मुंह दोनों से नीचे लटका था और वह अपने हाथों से सबके साथ नोटों का आदान प्रदान कर रहे थे, न जाने किन किन हाथों से उन्होंने पैसे लिए और दिए होंगे। लेकिन हमें गाड़ी पार्किंग करनी थी तो हमें भी इस पैसे के लेनदेन में शामिल होना पड़ा। लेकिन मन में भय भी था कोरोना संक्रमित होने का, करते भी क्या हम बिना पर्ची कटाए अंदर नहीं जा सकते थे।

पर्ची कटवा कर अस्पताल के अंदर प्रवेश करने के लिए लोगों की लंबी लाइन लगी थी अपने विशेषज्ञ डॉक्टर से मिलने के लिए लोग अपनी बीमारियों का इलाज कराने तो आए थे, लेकिन उन्हें कोरोना का कोई भय नहीं था। लाइन में बेतरतीब एक के ऊपर एक चढ़कर ऐसे चिपक कर खड़े थे जैसे मानो कि कोरोना कुछ है ही नहीं। अस्पताल के परिसर में बाहर पुलिस भी खड़ी थी लेकिन कोई व्यवस्था नहीं थी। यह सब देख कर हम तो घबरा गए और बिना इलाज करवाएं उल्टे पांव घर वापस आ गए और अगले दिन कि सुबह अखबार उठाकर देखा तो अखबार में फ्रंट पेज पर छपा था कि सरकारी अस्पताल में 23 कोरोना संक्रमित पाए गए। अखबार में छपी खबर पढ़कर हमें भी भय इसीलिए हुआ कि कहीं हम भी तो नहीं! लेकिन भगवान की कृपा थी कि हम सही सलामत है।

उसके बाद एक घटना और घटित हुई हमारे साथ परिवार में सब ने राय मशवरा किया की रात के डिनर में हम मटर पनीर खाएंगे, अब मटर पनीर बनाने के लिए पनीर बाजार से लाना पड़ता, हम पनीर लाने के लिए शहर के सबसे बड़े डेरी पर गए। वहां भी स्थिति बहुत भयावह थी पनीर काटकर देने वाला शख्स ही सबसे नोटों का लेन-देन कर रहा था और उसी हाथों से पनीर भी काट कर दे रहा था। यहां पर बात हमारे और हमारे परिवार के सदस्यों के स्वास्थ्य की थी। हमें वह पनीर लेने की हिम्मत नहीं थी, लेकिन घरवालों की मंशा थी मटर पनीर खाने की, तो हमने पनीर वाले भैया से कहा भैया तराजू और हाथ धोकर पनीर दोगे तभी लेंगे अन्यथा नहीं लेंगे और पनीर वाले भैया की थोड़ी डांट भी लगाई उनकी लापरवाही को लेकर अंततः रात में सबने मटर पनीर खाया।

समझ नहीं आता कि कोरोना ने हमारा मजाक बनाया है या हमने कोरोना का? बेहतर हो कि हम कोरोना का मजाक ना बनाएं, हमें इसे गंभीरता पूर्वक लेना चाहिए। मास्क लगाना, सब्जियों को धोकर इस्तेमाल करना, हाथ हमेशा कुछ समय पर साबुन से धोते रहना एवं सैनिटाइजर इस्तेमाल करना, भीड़भाड़ से बच कर रहना, यह कोई बड़े काम नहीं है हर कोई इसे आसानी से कर सकता है और आप भी कर सकते हैं। अपना ख्याल रखिए और अपने परिवार का भी।

You may also like

Leave a Comment

-
00:00
00:00
Update Required Flash plugin
-
00:00
00:00