क्या है महिषासुर की पूजा के पीछे का राज

by कुमार
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महिषासुर को आदिवासी अपना पूर्वज और भगवान क्यों मानते हैं ?

आईये आपको बताते हैं, कुछ अनसुनी बात क्या आप जानते हैं, एक ऐसा भी राज्य जहाँ लोग महिषासुर को अपना पूर्वज मानते हैं, वहाँ आज भी ज़िंदा हैं कईं असुर। वहाँ के लोग अपना पूर्वज /वंशज महिषासुर को बताते हैं, महिषासुर को पूजे जाने की खबर झारखंड के अलावा पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश के कई आदिवासी इलाकों से भी मिलती रहती है। अलबत्ता बंगाल के काशीपुर में महिषासुर शहादत दिवस का आयोजन बड़े पैमाने पर होता है।

महिषासुर शहादत दिवस

झारखंड की राजधानी रांची से करीब डेढ़ सौ किमी0 दूर गुमला जिले के सखुआपानी, जोभापाट आदि पहाड़ी इलाके में असुर बसते हैं। इंटर तक पढ़ी सुषमा कथाकार हैं और वे आदिवासी रीति, पंरपरा, संस्कृति को सहेजे रखने के अलावा असुरों के कल्याण व संरक्षण पर काम करती हैं, दरअसल महिषासुर को अपना पुरखा मानने वाले असुरों को इसका दुख है कि उनके पूर्वज को छल से मारा गया।

महिषासुर का शहादत दिवस झारखंड के सिंहभूम इलाके में भी मनाया जा रहा है, कई जगहों पर महिषासुर पूजे जाते रहे हैं!
महिषासुर को पूजे जाने की खबर झारखंड के अलावा पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश के कई आदिवासी इलाकों से भी मिलती रहती है, अलबत्ता अब बंगाल के काशीपुर में महिषासुर शहादत दिवस का आयोजन बड़े पैमाने पर होने लगा है!
सखुआपानी गुमला की सुषमा असुर कहती हैं, कि उनकी उम्मीदें बढ़ी है कि अब देश के कई हिस्सों में आदिवासी इकट्ठे होकर पुरखों को शिद्दत से याद कर रहे हैं!
झारखंड की राजधानी रांची से करीब डेढ़ सौ किलोमीटर दूर गुमला जिले के सखुआपानी, जोभापाट आदि पहाड़ी इलाके में असुर बसते हैं, इंटर तक पढ़ी सुषमा कथाकार हैं और वे आदिवासी रीति, पंरपरा, संस्कृति को सहेजे रखने के अलावा असुरों के कल्याण व संरक्षण पर काम करती हैं।

2011 की जनगणना के मुताबिक झारखंड में असुरों की आबादी महज 22 हजार 459 है, झारखंड जनजातीय शोध संस्थान के विशेषज्ञों का मानना है कि आदिम जनजातियों में असुर अति पिछड़ी श्रेणी में आते हैं, जिनकी अर्थव्यवस्था न्यूनतम स्तर पर है, असुरों में कम ही लोग पढ़े-लिखे हैं!
सुषमा असुर कहती हैं कि महिषासुर की याद में नवरात्र की शुरुआत के साथ दशहरा यानि दस दिनों तक वे लोग शोक मनाते हैं, इस दौरान किसी किस्म की रीति-रस्म या परपंरा का निर्वहन नहीं होता!
बड़े-बुजुर्गों के बताए गए नियमों के तहत उस रात एहतियात बरते जाते हैं, जब महिषासुर का वध हुआ था, मूर्ति पूजक नहीं हैं, लिहाजा महिषासुर को दिल में रखते हैं!
बकौल सुषमा किताबों में भी पढ़ा है कि देवताओं ने असुरों का संहार किया, जो हमारे पूर्वज थे, सुषमा का जोर इस बात पर है कि वह कोई युद्ध नहीं था!
वो बताती हैं कि महिषासुर का असली नाम हुडुर दुर्गा था, वह महिलाओं पर हथियार नहीं उठाते थे, इसलिए दुर्गा को आगे कर उनकी छल से हत्या कर दी गई!

लोगों को वाकिफ करने की चुनौती

इस असुर महिला के मुताबिक आने वाली पीढ़ी को पुरखों के द्वारा बताई गई बातों तथा परंपरा को सहेजे रखने के बारे में जानकारी देने की चुनौती है! कई युवा लिखने-पढ़ने को आगे बढ़े भी, पर पिछली कतार में रहने की वजह से जिंदगी की मुश्किलों के बीच ही वे उलझ जा रहे हैं, वे खुद भी कठिन राहों से गुजरती रही है!



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