Home Miscellaneous अल्मोड़ा की बाल मिठाई

अल्मोड़ा की बाल मिठाई

by Gaurav Kapil

यूं तो मिठाई का नाम सुनते ही मुंह में पानी आना लाजमी बात है,अनेक प्रकार की सुंदर तथा रसीली मिठाइयां बाजार में आसानी से उपलब्ध है, परंतु कुछ मिठाइयां किसी विशेष क्षेत्र के लिए एक पहचान बनकर उभर जाती हैं।

आगरा का पेठा, बंगाल का रसगुल्ला, मथुरा का पेड़ा या बनारस की रबड़ी, कुछ ऐसी ही पहचान है – अल्मोड़ा की बाल मिठाई की।

अल्मोड़ा शहर की बात हो और बाल मिठाई का जिक्र ना आए ऐसा कम ही होता है, तो आज हम बात करेंगे इसी बाल मिठाई की इसका इतिहास तथा इसको बनाने की विधि और स्वाद की।

इतिहास की बात करें तो बाल मिठाई को जनमानस तक पहुंचाने का श्रेय अल्मोड़ा शहर को ही जाता है, सर्वप्रथम 19वीं शताब्दी में श्री लाला जोगा साह द्वारा इसे बनाया गया, इन्होंने आसपास के क्षेत्रों से खोया (मावा) एकत्र करके एक नई प्रकार की मिठाई बनाई जिसे आज बाल मिठाई के नाम से जाना जाता हैं।


सन 1895 से लाला शाह जी की एक मिठाई की दुकान लाला बाजार में हुआ करती थी, जो आज भी अस्तित्व में है।


बाद में इसी स्वाद को आगे बढ़ाते हुए श्री खीम सिंह रौतेला जी ने इस मिठाई को बनाना शुरू किया और माल रोड पर अपनी दुकान स्थापित की यह दुकान भी लगभग एक शताब्दी पुरानी है, गजब के स्वाद से भरपूर है बाल मिठाई।

अंग्रेजी शासन काल में ही यह प्रसिद्ध हो चुकी थी, क्रिसमस या अन्य अंग्रेजी त्योहारों पर इसे स्वीट डिश के तौर पर इस्तेमाल किया जाता था।

इसका स्वाद तथा प्रतिष्ठा सिर्फ अल्मोड़ा या उत्तराखंड राज्य तक ही सीमित नहीं है, यह तो देश के विभिन्न राज्यों मैं भी पहचानी जाती है।

अल्मोड़ा की तरफ आने वाले पर्यटक इसे बड़े चाव से खाते हैं तथा अपने गृह राज्यों तक ले जाना भी नहीं भूलते।
बाल मिठाई के साथ साथ सिंगोड़ी भी एक लोकप्रिय मिठाई है, सिंगोड़ी का उदय भी अल्मोड़ा जिले से ही हुआ है , हालांकि यह पहाड़ के अन्य जिलों में भी बनाई जाती है, परंतु अल्मोड़ा जैसा स्वाद कहीं नहीं मिल पाता।


बाल मिठाई की बात करें तो यहां मावे से बनाई जाती है, जिसे एक निश्चित तापमान पर भूरे होने तक गर्म किया जाता है,और फिर इसे 5 घंटे तक लगभग ठंडा होने के लिए छोड़ दिया जाता है, जिसके बाद इसमें में खसखस के दाने लगा दिए जाते हैं, और एक निश्चित आकार में काट दिया जाता है।

और सिंगोड़ी की बात करें,तो इसमें मावे को गर्म करके उसमें बादाम आदि मिलाकर मालू के पत्ते पर लपेट दिया जाता है।

singodi

khim singh mohan singh

 

खीम सिंह मोहन सिंह जी की दुकान को इतनी ख्याति प्राप्त है, कि मिठाई लेने के लिए लंबी-लंबी कतारें तक लगानी पड़ जाती है, इतने लंबे समय तक वही पुराना स्वाद तथा वही पुरानी तकनीक है, जो बाल मिठाई तथा सिंगोड़ी बनाने में प्रयुक्त की जाती हैं। अगर आप भी मिठाई खाने के शौकीन है तो अल्मोड़ा की बाल मिठाई का स्वाद लेना ना भूलें।

धन्यवाद

अल्मोड़ा नगर के वीडियो टूर के लिए देखे यह विडियो ?

 


उत्तरापीडिया के अपडेट पाने के लिए फ़ेसबुक पेज से जुड़ें।

You may also like

Leave a Comment

-
00:00
00:00
Update Required Flash plugin
-
00:00
00:00