करें पूर्णागिरी धाम टनकपुर के दर्शन

जय माँ पूर्णागिरी 

उत्तराखंड में चम्पावत जिले में टनकपुर के निकट, नेपाल की सीमा से लगा – सुप्रसिद्ध पूर्णागिरी देवी का मंदिर 5,500 फीट ऊँचे अनपूर्ण पर्वत के शिखर में स्थित है।  माँ पूर्णागिरी को पुन्यगिरी देवी के नाम से भी जाना जाता हैं- पुण्य प्रदान करने वाली देवी, मंदिर तक का रास्ता अत्यंत मनोरम – प्राकर्तिक सुन्दरता से आच्छादित हैं. 

टनकपुर रेल और सड़क मार्ग से अच्छी तरह कनेक्टेड हैं। दिल्ली से मंदिर की दुरी सड़क मार्ग से लगभग 330 किलोमीटर है। वही मंदिर की दुरी टनकपुर रेलवे स्टेशन और बस स्टॉप से करीब 20 किलोमीटर है। ट्रेन से हल्द्वानी, लालकुआं या रुद्रपुर पहुच कर, और वहां से टनकपुर के लिए नियमित अन्तराल में चलने वाली बस अथवा टैक्सी द्वारा टनकपुर पंहुचा जा सकता हैं।

टूनियास तक वाहन द्वारा पहुंचा जा सकता है, और वाहन पार्क कर आप मंदिर तक पैदल मार्ग द्वारा लगभग 3 किलोमीटर की दूरी तय कर पहुँच सकते हैं। टूनियास से ही प्रसाद सामग्री की दुकाने और धर्मशालाएँ मिलनी शुरू हो जाती हैं। पूरा रास्ता टाइल्स और सीमेंट का बना हुआ है। मंदिर को जाने के मार्ग में आपको अनेक देवी देवताओं के आकर्षक मूर्तियाँ दिखते रहती हैं।

नवरात्रियों, त्योहारों के समय इस मार्ग में श्रद्धालुओं की काफी भीड़ देखने को मिलती है। और साथ ही आपको पूरे मार्ग में, मार्ग के दोनों ओर, पूजन सामग्री हेतु दुकाने लगातार मिलते रहती हैं। यहाँ से आप अपनी पसंद और रुचि के अनुसार यहाँ के स्मृति सहेजने हेतु कई तरह के तस्वीरे, मूर्तियाँ, मालाएँ, चुड़ियाँ, कंगन, खिलौने आदि खरीद सकते हैं, इस तरह की यहाँ कई दुकाने उपलब्ध हैं।

मार्ग में एक मंदिर जो झूठे के मंदिर के नाम से जाना जाता है भी स्थित है, इस मंदिर की जानकारी देता विडियो आपको इस लेख के आखिरी भाग में मिल जाएगा

मंदिर को जाते रास्ते में आपको विश्राम, चाय नाश्ते, पूजन सामग्री, हेतु आपको लगातार दुकाने, धर्मशालाएँ मिलते रहती हैं। साथ ही थकान, धूप या बारिश से बचने हेतु भी आप इन दुकानों में रुक सकते हैं। यहाँ किसी भी धर्मशाला में आपने रुकना हो तो, इनमें कोई चार्ज नहीं लगता, साथ ही आपको स्नान आदि की सुविधा भी इनमे मिल जाती है, बस condition ये है कि आपने मंदिर के लिए प्रसाद भी उसी धर्मशाला से लेना होता है। पूर्णागिरी धाम छेत्र में पॉलिथीन, धूम्रपान या किसी भी तरह का नशा प्रतिबंधित है।

पूर्णागिरी के मुख्य मंदिर से 1 किलोमीटर नीचे रामबाड़ा स्थित काली मंदिर स्थित है। मुख्य मंदिर के दर्शन करने के बाद इस मंदिर के दर्शन किए जाते हैं। यही पर श्रद्धालु अपने हाथ मुंह धो या स्नान आदि कर जूते चप्पल उतार, मंदिर के दर्शन के लिए जाते हैं। मंदिर में प्रतिदिन प्रातः और साँयकालीन आरती होती है

माँ के दरबार में पंहुच, सभी श्रद्धालु अपनी थकान और समस्त परेशानियों को भूल माँ के दर्शन कर प्रफुल्लित होते हैं। इस द्वार से अंदर अपने लाये हुए पूजन सामग्री को इस द्वार से पुजारी को देकर अपने लिए मनोकामना पूर्ति हेतु माँ से विनती करते हैं। और पुजारी द्वारा उनके नाम, आदि जानकर संक्षिप्त पाठ भी कराया जाता है।

उप्पर माँ के दर्शन के बाद, श्रद्धालु महाकाली मंदिर के भी दर्शन करते हैं, माँ को गोला अर्पण किया जाता है, और गोले का एक भाग मंदिर में और बचा हिस्सा प्रसाद स्वरूप स्वयं ग्रहण करते हैं।

मंदिर दर्शन के बाद श्रद्धालु यहाँ के किसी भी रैस्टौरेंट आदि से माँ के प्रसाद स्वरूप चाय, नाश्ता, भोजन इत्यादि ग्रहण कर, माँ के प्रति कृतज्ञ होते है। 

माँ के दर्शन कर अब हम मुड़ चले वापस नीचे को, सड़क के पास, उसी मार्ग से जिस से कल यहाँ उप्पर आए थे। कुछ बेहद दिलचस्प नजारों को अपनी आंखो में कैद किए। और झूठे के मंदिर से हमने आज दूसरा मार्ग लिया, नीचे जाने का। और सड़क से कुछ पहले दर्शन किए भैरव मंदिर के। जिनके लिए प्रसाद आदि यही स्थित दुकानों में उपलब्ध हो जाता है। 

पूर्णागिरी मंदिर में वर्षभर श्रदालु देश के सभी प्रान्तों के साथ नेपाल से भी आते हैं।

नेपाल यात्रा पर बना विडियो देखें ?

पूर्णागिरी मंदिर में होली के बाद 3 महीने मेले का आयोजन होता हैं, इस समय श्रद्धालुओं का आगमन बड़ी संख्या में हता हैं, साथ ही नवरात्री के अवसर पर भी काफी संख्या में माँ के दर्शनार्थी यहाँ आते हैं, और यात्रियों की गाड़ियाँ ठुलिगाड़ नाम की जगह में पार्क होती हैं, इससे आगे मोटरबल रोड संकरी हैं, इसलिए यहाँ से आगे पांच किलोमीटर की दुरी पर – टुन्यास तक शटल सेवा चलती हैं, अथवा बहुत ज्यादा आवाजाही होने अथवा रोड में landslide होने पर पर ठुलीगाड़ से आगे की दुरी पैदल तय की जाती है।

 

इस पूरी यात्रा पर बना विडियो देखें ?


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