जन्माष्टमी स्पेशल – माँ दुनागिरि मंदिर

कृष्ण जन्माष्टमी त्यौहार, भगवान विष्णु के आठवें अवतार श्री कृष्ण के अवतरण दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह हिंदू धर्म की वैष्णव परंपरा से संबंधित है। श्री कृष्ण जन्माष्टमी के दिन उत्तराखंड के सबसे प्रसिद्ध व प्राचीन सिद्ध शक्तिपीठो में से एक माँ दुनागिरि के मंदिर में मेले का आयोजन किया जाता है। दूर दूर से श्रद्धालु यहां पर माता के दर्शनों को पहुंचते हैं। इस मंदिर का बहुत ही पौराणिक महत्व है। ऐसा कहा जाता है कि त्रेतायुग में रामायण युद्ध में जब लक्ष्मण को मेघनाथ के द्वारा शक्ति लगी थी। तब सुशेन वैद्य ने हनुमान जी से द्रोणाचल नाम के पर्वत से संजीवनी बूटी लाने को कहा था। हनुमान जी पूरा द्रोणाचंल पर्वत उठाकर ले जा रहे थे, तब भटकोट पर्वत पर तपस्या कर रहे प्रभू श्री राम के भ्राता भरत ने हनुमान जी को कोई मायावी समझकर उन पर बाण चलाया था जिस कारण हनुमान जी मूर्छित होकर भूमि पर जा गिरे और उस समय यहाँ पर पर्वत का एक छोटा सा टुकड़ा गिरा और फिर उसके बाद इस स्थान में दूनागिरी का मंदिर बनाया गया। उसी समय से यहां पर कई प्रकार की जड़ी बूटिया अब भी पायी जाती है। कत्यूरी शासक सुधारदेव ने 1318 ईसवी में मंदिर निर्माण कर दुर्गा मूर्ति स्थापित की। देवी के मंदिर के पहले भगवान हनुमान, श्री गणेश व भैरव जी के मंदिर है। हिमालय गजीटेरियन के लेखक ईटी एटकिशंन के अनुसार मंदिर होने का प्रमाण सन् 1181 शिलालेखों में मिलता है।

देवी पुराण के अनुसार अज्ञातवास के दौरान पांडवों ने युद्ध में विजय तथा द्रोपदी के सतीत्व की रक्षा के लिए दूनागिरी की दुर्गा रुप में पूजा की। स्कंदपुराण के मानसखंड द्रोणाद्रिमहात्म्य में दूनागिरी को महामाया, हरिप्रिया, दुर्गा के अनूप विशेषणों के अतिरिक्त वह्च्मिति के रुप में प्रदर्शित किया गया है।

कैसे पहुंचे –
मंदिर तक पहुंचने के लिए सड़क मार्ग
रानीखेत – द्वाराहाट – दुनागिरि
मंदिर से रानीखेत की दूरी लगभग ५० किमी है।

देखें मंदिर की जानकारी देता विडियो 👇

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