हिमालय के रहस्यमयी स्थान

Mysterious places of the Himalayas: भारत प्राकृतिक सुंदरता से परिपूर्ण देश है। हर तरह का मौसम देखने को मिलता है। ऐसा लगता है मानो हर एक बारीकी को देखते हुए भारत देश को बनाया गया हो। माथे पर हिमालय का मुकुट और तीनों और अरब , बंगाल और हिन्द महासागर का पानी हमारे देश को बहुत ही ज्यादा आकर्षक बनाता हैं |

हिमालय पर्वत कई मायनों में भारत के लिए एक विशेष महत्व रखता है। हिमालय को पर्वतराज यानि पर्वतों का राजा भी कहते हैं। कालिदास तो हिमालय को पृथ्वी का मानदंड मानते हैं।

हिमालय एक पर्वत तन्त्र है। इसमें मुख्य रूप से तीन समानांतर श्रेणियां- महान हिमालय, मध्य हिमालय और शिवालिक से मिलकर बना है जो पश्चिम से पूर्व की ओर एक चाप की आकृति में लगभग 2400 कि॰मी॰ की लम्बाई में फैली हैं। इन तीन मुख्य श्रेणियों के आलावा चौथी और सबसे उत्तरी श्रेणी को परा हिमालय या ट्रांस हिमालय कहा जाता है जिसमें कराकोरम तथा कैलाश श्रेणियाँ शामिल है। हिमालय पर्वत 7 देशों  पाकिस्तान,अफगानिस्तान, भारत, नेपाल, भूटान, चीन, म्यांमार की सीमाओं में फैला है।

हिमालय अपने आप में कई रहस्य छिपाए बैठ है। कई वेदों, पुराणों और उप-निषदों, पौराणिक गाथाएँ हैं जो हमें हिमालय के बारे में बातें बताती हैं। इन्ही से हिन्दू धर्म में हिमालय की महत्वता का पता चलता है।

सदियों से हिमालय की गुफाओं में ऋषि-मुनियों का वास रहा है और वे यहाँ समाधिस्थ होकर तपस्या करते हैं। हिमालय आध्यात्म चेतना का ध्रुव केंद्र है। उत्तराखंड को “हिमालयानाम् नगाधिराजः पर्वतः” का हृदय कहा जाता है। ईश्वर अपने सारे ऐश्वर्य-खूबसूरती के साथ वहाँ विद्यमान है।

हिमालय अनेक रत्नों का जन्मदाता है इसकी पर्वत-श्रंखलाओं में जीवन औषधियाँ उत्पन्न होती हैं। हिमालय को पृथ्वी में रहकर भी स्वर्ग कहा जाता है।

हिमालय को कई देवी देवताओं का निवास स्थान मन जाता है। हिमालय की महानता आपको इसके ऊँचाई से ही पता चल जाएगा। कई मुनि-ऋषि यहाँ हजारों वर्षों से तपस्या कर रहें हैं। यहाँ आकर हर एक इंसान के मन में पवित्रता भर जाता हैं। इसके अलावा हिन्दुत्व में हिमालय को मोक्ष प्राप्ति का द्वार भी कहा गया है।

हिन्दू धर्म के चार प्रमुख तीर्थ गंगोत्री, यमुनोत्री, केदारनाथ, बद्रीनाथ चारों हिमालय श्रेणियों में ही हैं। साथ ही, भगवान शिव का कैलाश पर्वत भी इसी हिमालय में हैं। हिन्दू धर्म की पवित्र नदिया गंगा, यमुना आदि सभी इसी हिमालय पर्वत से निकलती हैं।

हिमालय को तपोभूमि कहा जाता है। कहा जाता है की हिमालय की वह स्थान है जहां से आप मोक्ष्य के मार्ग में जा सकते हैं। यहाँ देवी देवताओं के रहने के कई साक्ष्य भी मिलते हैं जिनमें से एक कैलाश मानसरोवर है। जो भगवान शिव के निवास कैलाश के पास स्थित है, यह हिन्दुओं के लिए बहुत ही पूज्य माना गया हैं। ऐसा माना जाता है की इस सरोवर के अंदर डुबकी लगाने के बाद आपके सारे कष्ट और कुकर्म हर लिए जाते हैं।

सिखों का पवित्र तीर्थ स्थल हेमकुंड साहिब भी हिमालय में स्थित है। यह तीर्थ स्थल गुरु गोविंद जी की तपो भूमि के रूप में परिचित हैं।

हिमालय पर्वत हमेशा से योगीओं , साधकों और संतों की कर्म भूमि रहा है। आदि गुरु शंकराचार्य, स्वामी विवेकानन्द आदि कई महान व्यक्तित्व हिमालय को अपना कर्म व तपोभूमि के रूप में पसंद करते थे। इसके अलावा लोकप्रिय वनस्पति वैज्ञानिक जगदीश चन्द्र वशू जी भी हिमालय की महानता से काफी ज्यादा प्रेरित हुए थे। स्वामी विवेकानन्द जी ने अपना एक खुद का आश्रम इसी हिमालय के एक श्रेणी में उत्तराखंड के अल्मोड़ा में स्थापित किया था।

हिमालय पर्वत के बारे में जितने रहस्य सामने आए शायद ही यहाँ के सारे रहस्यों तक हम पहुँच पाए। इन्ही में से कुछ रहस्य निम्न हैं।

गुरुडौंगमर झील (Gurudongmar Lake) :-

हिमालय की कंचंझंगा पर्वत शृंखला में स्थित यह झील अपने आप में ही एक अजूबा हैं | इस झील को तीस्ता नदी का उद्गम स्थल भी माना गया हैं।कहा जाता है कि किसी जमाने में झील के आस-पास का इलाका काफी ज्यादा सूखा रहता था और पूरे वर्ष झील ठंड से जमी हुई रहती थी। जमी हुई झील के कारण आस-पास के लोगों को पीने व अन्य कामों के लिए पानी ठीक रूप से मिल नहीं पाता था। परंतु अगर इस झील को गौर से देखें तो, इस झील के अंदर एक निर्धारित स्थान पर सर्दियों के दौरान भी एक ऐसी जगह है जहां का पानी कभी भी नहीं जमता है। लोगों का कहना है की बौद्ध धर्म के गुरु “पद्मसंभा” जी ने अपने तपो बल से इस जगह को लोगों के सुविधा हेतु पिघला दिया था।

टाइगर नेस्ट मोनेस्ट्री (Tiger Nest Monastery) :-

हिमालय पर्वत शृंखला में कई सारे बुद्ध धर्म पीठ देखने को मिलते हैं| इन्हीं बुद्ध पीठों में सबसे प्रमुख बुद्ध पीठ “टाइगर नेस्ट मोनास्ट्री” है। यह मोनास्ट्री भूटान के एक तीखी पर्वत के किनारे मौजूद हैं। देखने मे सुंदर और प्राकृतिक रूप से एक जोखिम भरी जगह पर होने के बाद भी यह मोनास्ट्री काफी सारे पर्यटकों को आकर्षित करता हैं।

भूटान की लोककथाओं के अनुसार इसी मठ की जगह पर 8वीं सदी में भगवान पद्मंसभव ने तपस्या की थी। पहाडी की कगार पर बनी एक गुफा में रहने वाले राक्षस को मारने के लिए भगवान पद्मसंभव एक बाघिन पर बैठ तिब्बत से यहां उड़कर आए थे। यहां आने के बाद उन्होंने राक्षस को हराया और इसी गुफा में तीन साल, तीन महीने, तीन सप्ताह, तीन दिन और तीन घंटे तक तपस्या की । भगवान पद्मसंभव बाघिन पर बैठ कर यहां आए थे इसी कारण इस मठ को टाइगर नेस्ट भी बुलाया जाता है। भगवान पद्मसंभव को स्थानीय भाषा में गुरू रिम्पोचे की कहा जाता है।

ज्ञानगंज (Gyan Ganj) :-

ज्ञानगंज हिमालय के सुदूर इलाके में बसा है। यह जगह बाहरी जन सभ्यता से जुड़ा हुआ नहीं है और यहाँ बाहर से कोई भी व्यक्ति नहीं आ सकता। इस जगह को ढूँढने के लिए कई बार पर्वतारोहीओं ने कोशिश की, परंतु वह लोग इसे ढूँढने में सफल न हो सके।

भारत और चीन के बौद्ध संत इस जगह को बहुत ही पवित्र मानते हैं। इस के अलावा कई गुरुओं का मानना है की इस जगह पर सिर्फ एक सिद्ध योगी या साधक जा सकता हैं। यह जगह सिर्फ एक स्थान ही नहीं हैं, यह एक उच्च आयामी स्थल हैं। इसलिए यहाँ जो भी जाता है वह मोक्ष प्राप्ति कर के ही रहता है।

कोंगका ला दर्रा (Kongka La)

हिमालय की गोद में बसा कोंगका ला दर्रा, लद्दाख में स्थित है। इस जगह पर जाना बेहद मुश्किल है क्योंकि यह दर्रा बर्फ से ढ़की है। 1962 में भारत-चीन युद्ध के बाद एक सहमति की दोनों देशों के सैनिक इस जगह पर मार्च नहीं कर सकते हैं, बल्कि दूर से ही इसकी निगरानी कर सकते हैं। उस समय से यह जगह वीरान है।

इस बारे में स्थानीय लोगों का कहना है कि कुछ सिद्ध पुरुष कोंगका ला दर्रा पर जाते हैं। जहां उन्हें उड़न तश्तरी देखने को मिलता है। अगर कोई व्यक्ति उड़न तश्तरी देखना चाहता है तो कोंगका ला दर्रा में इसे देख सकता है क्योंकि इस जगह पर हर महीने एलियंस आते हैं। लोगों की आवाजाही कम होने की वजह से एलियंस अपनी उड़न तस्तरी लेकर कोंगका ला दर्रा आते-जाते रहते हैं। विज्ञान अब तक उड़न तश्तरी की पहेली को सुलझा नहीं पाया है। इसलिए कोंगका ला दर्रा में एलियंस के आने का रहस्य अब भी बरकरार है।

गंगखर पुनसुम (Gangkhar Puensum)

जानकारों की मानें तो यह दुनिया में सबसे ऊंचा पर्वत है और आज तक इस पर्वत शिखर पर कोई पहुंच नहीं पाया है। दुनिया में यह इकलौता पर्वत है, जिसकी चोटी पर कोई नहीं चढ़ सका है। यह पर्वत भूटान में है। इस पर्वत पर अर्धमानव यति रहता है। कई बार पर्वतारोहियों सहित स्थानीय लोगों ने भी यति देखने का दावा किया है। तिब्बत के लोग इससे डरते हैं और इसकी पूजा भी करते हैं। वहीं, तिब्बती लोग ऊंचे पहाड़ों को भगवान मानते हैं। इसी कारण लोगो को “गंगखर पुनसुम” की चोटी पर जाने की अनुमति नहीं है।

 

 

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