चंद्रशिला के शिखर तक पहुंचने के दो प्रमुख रास्ते है। सबसे पहले रास्ते से आप चोपता से तुंगनाथ होते हुए चंद्रशिला के शिखर तक पहुँच सकते है। चंद्रशिला के शिखर तक पहुँचने का यह सबसे छोटा ट्रेक है जो कि मात्र 5.5 किलोमीटर का है। सर्दियों के मौसम में बहुत ज्यादा बर्फबारी की वजह से यह ट्रेक बंद हो जाता है। चंद्रशिला तक जाने वाला यह ट्रेक तुंगनाथ चंद्रशिला ट्रेक ( Tunganath Chandrashila Trek) के नाम से प्रसिद्ध है।
चंद्रशिला तक जाने वाला दूसरा ट्रेक देवरियाताल चंद्रशिला ट्रेक (Deoriatal Chandrashila Trek) के नाम से प्रसिद्ध है। देवरियाताल चंद्रशिला ट्रेक की कुल दूरी 27 किलोमीटर है जो कि उखीमठ से 12 किलोमीटर की दूरी पर स्थित सरी गाँव से शुरू होता है।
संदकफू ट्रेक, दार्जिलिंग (Sandakphu Trek, Darjeeling)
दार्जिलिंग में सैंडकैफू ट्रेक सबसे ऊंचे और सबसे बड़े ट्रेकों में से एक है, जो एक छोटे से पर्यटक शहर माने भंजंग से शुरू होता है, जिसे सैंडकैफू के प्रवेश द्वार के रूप में भी जाना जाता है।
दुनिया भर के ट्रेकर्स इस ट्रेक के लिए बहुत दीवाने है क्योंकि पश्चिम बंगाल की सबसे ऊंची चोटी संदकफू पर पहुंचकर आप दुनिया की पांच सबसे ऊंची चोटियों में से चार का शानदार नजारा देख सकते हैं।
ऐसा कहा जाता है कि ट्रैकिंग का सबसे अच्छा दृश्य कंचेंदज़ोंगा पर्वत से दिखता है। आप कार से या ट्रैकिंग करते हुए इस चोटी के शिखर तक पहुंच सकते हैं।
इस ट्रेक का पूरा मार्ग काफी साहसी और खूबसूरत है क्योंकि घास घास के मैदानों से होकर गुजरता है, जो घने जंगलों से घिरा है,और सिंगालीला राष्ट्रीय उद्यान जो रमणीय रोडोडेंड्रोन और विदेशी लाल पांडा की किस्मों का घर है। यह एक जबरदस्त मजेदार और साहसिक अनुभव है।
मणिबंजन से शुरू होने वाली इस पहाड़ी का रास्ता करीब 51 किमी लंबा और खूबसूरत है। यहां हिमालयन कोबरा लिली की बहुतायत के कारण संदकफू को “जहरीले पौधों के पहाड़” के रूप में भी जाना जाता है। शिखर तक पहुंचने से पहले ट्रेक कई अलग-अलग इलाकों से होकर गुजरता है, जिनमें चुनौतीपूर्ण घाटियां, रोडोडेंड्रोन, मैगनोलियास के साथ बनी जमीनों के हरे-भरे मैदान हैं।
उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले के गोविन्द बल्लभ पंत राष्ट्रीय उद्यान में स्थित हर की दून ट्रेक, उत्तराखडं के सबसे सुन्दर ट्रेक्स में एक माना जाता है। हर की दून हिमालय पर्वत में स्थित एक बहुत ही सुन्दर घाटी हैं। हर की दून का शाब्दिक अर्थ हिंदू धर्म में हर का मतलब होता है देवता और दून का मतलब होता है घाटी। सरल शब्दों में कहा जाए तो हर की दून का मतलब देवताओ की घाटी (Velly of Gods)। स्थानीय लोगों में ऐसी मान्यता है की इस स्थान पर देवता निवास करते है इसलिए को हर की दून कहा जाता है।
हर की दून का इतिहास महाभारत काल के समय का माना जाता है। स्थानीय लोगों का मानना है कि महाभारत का युद्ध समाप्त होने के बाद पांडव इस स्थान से स्वर्ग गए थे। कहा जाता है युधिष्ठिर हर की दून के पास स्थित स्वर्गारोहिणी पर्वत से वह सशरीर स्वर्ग गए थे।
इसके अलावा हर की दून के आस पास रहने वाले दुर्योधन की पूजा करते है। यहाँ रहने वाले स्थानीय निवासियों के अनुसार दुर्योधन एक बहुत अच्छे शासक थे। इसलिए हर की दून के पास स्थित ओसला गांव में दुर्योधन का प्राचीन मंदिर भी बना हुआ है। इन सब के अलावा भी हर की दून के आस पास के गाँव में महाभारत काल से जुड़े हुए घटनाक्रम का प्रभाव भी देखने को मिलता है।
हर की दून ट्रेक हिमालय की स्वर्गारोहिणी पर्वत श्रृंखला की तलहटी में स्थित सुन्दर घाटी की यात्रा करते है। इसी वजह से हर की दून का ट्रेक एक आसान श्रेणी का ट्रेक माना जाता है। हर की दून ट्रेक के दौरान उत्तराखंड के कुछ ऐसे गाँव से होकर गुजरते है जिन्हे आधुनिकता आज भी नहीं छू पाई है। आज भी इन गाँव में रहने वाले लोग पुराने तौर-तरीकों से ही अपना जीवन यापन करना पसंद करते है। और अपने आपको जितना हो सके उतना ज्यादा प्रकृति के नजदीक रखने की कोशिश करते है। इन सब के अलावा हर की दून के आसपास रहने वाले लोग यहाँ ट्रेक करने आने वाले लोगो का दिल खोल कर स्वागत करते है।
इस ट्रैक को पूरा करने में सामान्य रूप से 7-8 दिन का समय लग सकता है। हर मौसम के समय हर की दून ट्रेक में आपको यहाँ की अलग-अलग खूबसूरती देखने को मिलेगी। इसलिए साल के किसी भी महीने में यहाँ ट्रेकिंग का आनंद लिया जा सकता हैं। लेकिन फिर भी मौनसून के समय यहाँ ट्रेकिंग से बचना चाहिए क्योंकि पहाड़ों में अक्सर इस मौसम में भूस्खलन का खतरा बना रहता है।
हर की दून प्राकृतिक रूप से बहुत सुंदर घाटी है इसको देख कर लगता है कि मानो ईश्वर ने अपने हाथों से इस जगह का निर्माण किया है। प्राकृतिक सुंदरता के अलावा हर की दून से हिमालय की कुछ प्रमुख पर्वत श्रृंखलाओं स्वर्गारोहिणी, बन्दरपुच्छ और काला नाग (ब्लैक पीक) आदि के दृश्य दिखाई देते हैं।
हर की दून ट्रेक के पहले दिन आपको देहरादून से 190 किलोमीटर की दुरी पर स्थित साँकरी गाँव तक पहुँचना है। बस द्वारा देहरादून से साँकरी पहुंचने में आपको 8-10 घंटे का समय लगेगा। दूसरे दिन के ट्रेक साँकरी से सीमा गांव जिसकी दूरी 26 किलोमीटर है, पहुंचना होता है। जिसमें 12 किलोमीटर ड्राइव के बाद आपको सीमा गाँव तक पहुँचने के लिए 14 किलोमीटर का ट्रैक पैदल करके पहुंचा जाता है।
अगले दिन सुबह जल्दी सीमा गाँव से 12 किलोमीटर दूर हर की दून की तक का रास्ता तय करना होता है। इस 12 किलोमीटर को 2 भागों में बांट सकते है। सीमा गाँव से 06 किलोमीटर की दूरी पर स्थित कलकती धार हर की दून ट्रेक का पहला स्टॉप है। कलकती धार से स्वर्गारोहिणी और बन्दरपुच्छ जैसी पर्वतमालाएं साफ दिखाई देने लग जाती हैं। कलकती धार से हर की दून ट्रेक के पूरे दृश्य ही बदल जाते है। कलकती धार से 06 किलोमीटर का ट्रैक करने के बाद स्वर्गारोहिणी पर्वत की तलहटी में स्थित हर की दून जैसी खूबसूरत जगह पर पहुँच जाते है।