मन को अच्छा लगने वाली – मसूरी

मसूरी आज न जाने अपने भीतर कितनी यादों को समेटती हुई विकास के द्वार पर खड़ी है। आज भी कई किस्से कहानियों, लोमहर्षक किस्सों के मध्य सजी – संवरी यह पर्वतों की रानी मसूरी धीरे – धीरे अपना रूप परिवर्तित कर रही है । कैसे बसी, किसने बसायी – इस पर भी लोगों के बहुत विवाद हैं।

मसूरी का जन्म सन् 1822 के लगभग माना जाता है। एक कहानी के अनुसार देहरादून के जिलाधीश मिस्टर जान शोर एवं कैप्टेन यंग ने इसे बसाया, कहते हैं वे बहुत अच्छे शिकारी थे और इस शिकार की तलाश में मसूरी झील वे राजपुर के रास्ते झड़ीपानी तक आये और यहां के दृश्य को देखकर वह मुग्ध हो गये। उन्होंने यहां पर एक सुंदर पर्यटक नगर आरामघर बनाने की सोची, ताकि फौज के अफसर छुट्टी के समय यहां रह कर आराम कर सकें। सबसे पहले केमल बैक रोड पर एक हंटिंग हट बनायी गयी। तत्पश्चात कैप्टन यंग ने अपने गांव के नाम मलिंगार पर फौजियों के लिए आरामघर बनाया जो मसूरी की पहली बिल्डिंग है।

लेकिन एक अन्य मत के अनुसार एक अंगरेज यात्री हाथी पांव के रास्ते सन् 1814  में आए, कुछ लोग हाथीपांव के समीप बना पहला भवन एब्बे कॉटेज को मानते हैं जान एवरेस्ट, मैकिनेन तथा अन्य संभ्रात लोग इस क्षेत्र में रहते थे। लेकिन इस ओर पानी की कमी होने के कारण लोग नहीं बसे तथा लोगों ने मसूरी के दूसरे छोर लंढौर हिल्स की तरफ बसना प्रारंभ किया, आज यह क्षेत्र पुरानी मसूरी है। इसका अपना एक अलग इतिहास है, एक अलग संस्कृति, जिसकी जीवंतता आज भी बांज एवं देवदारों की घनी छांओ के मध्य जीवित है।

मसूरी का यह नाम कैसे पड़ा? इस बारे में भी भिन्न – भिन्न विचार हैं। कुछ का कहना है – मन को अच्छी लगने वाली ‘मनसूरी ‘ आज भी कई लोग इसे मन्सूरी के नाम से जानते हैं। लेकिन हिमालय की गोद में बसी यह सौंदर्य नगरी यूं तो कई मायनों में सुंदर और आकर्षक इसे मन्सूर कुछ लोगों का मत है कि मसूरी में पहले मन्सूर नामक झाड़ियां थीं -जो आज प्राय गुम हो गयी हैं । जिसे वन विभाग मसूरी में पुनः उगाने की चेष्टा कर रहा है। कुछ लोग मन्सूर नामक डाकू से करते हैं जो दून घाटी में डकैतियां करता -नाम चाहे कुछ भी रहा हो लेकिन मसूरी टिहरी का हिस्सा था -जिसे महाराजा सुदर्शन शाह ने मात्र रु 5400. में स्कीनर परिवार को बेच दिया था।

मसूरी की खूबसूरती पर कई लेखकों ने अपनी कलम उठायी और कई विद्वान तो पहीं के होकर रह गये। मेकनिन, स्कीनर गैंजर, जार्ज एवरेस्ट, विल्सन फोर्ड आदि मसूरी भायी। वहीं राहुल सांकृत्यायन नागार्जुन, कन्हैया लाल मिश्र, प्रभाकर सत्यकेतु विद्यालंकार आदि इतिहास पुरुषों इसके सौंदर्य को निखारा। आज भी मसूरी रस्किन बांड सहित  हिंदी के कई लब्ध प्रतिष्ठित साहित्यकार और कलाकार निवास कर रहे हैं। अंगरेजी के प्रख्यात लेखक रस्किन बांड का कहना है कि मसूरी मुझे प्रिय है। इसके बिना मैं जिंदा भी नहीं रह सकता हूं।

हिमालय की गोद में बसी यह यह सुंदर नगरी कई मायनों में सुंदर और आकर्षक रही है। लेकिन आज के बदलते परिवेश में यहां आधुनिक पाश्चात्य संस्कृति का रंग भरा है। वहां बढ़ती भोगवादी प्रवृति नगर का स्वरुप बदल रही है। सुरम्य मनोहारी वातावरण के लिए ख्यातिप्राप्त है मसूरी आज भीड़भाड़ और प्रदूषण की नगरी बनती जा रही है। मसूरी की अतुलनीय सुंदरता पर रीझकर कई अंगरेज यहां बसे और उन्होंने यहां के बांज, बड़े – बड़े दूरी कई बुरांस एवं देवदार की घनी छांव में रहकर नैसर्गिक सुंदरता का आनंद लिया था। आज विभिन्न व्यापारिक गतिविधियो  में फसकर रह जाने के बाद भी मसूरी का अपना अलग ही स्थान है – यहाँ का अपना विशिष्ट आभामंडल सभी को अपनी और आकर्षित करता है।

वैल्स की राजकुमारी ने तो इसकी सुंदरता  पर मुग्ध होकर इसे ‘पर्वतों की रानी‘ Queen of hills’ नाम दिया था। मसूरी के आसपास अनेकों पर्यटक स्थल है – लालटिब्बा, कम्पनी बाग़, भट्टाफॉल, नाग मंदिर, मसूरी झील, बौद्ध मंदिर सहित अनेकों स्थल है जो सैलानियों को मन्त्र मुग्ध कर देते है। और यहाँ ठहरने और भोजन के लिए समुचित व्यवस्था है।

गर्मियों के मौसम में यहाँ पर्यटकों की अत्यधिक आवाजाही होती है। उत्तरा पीडिया के पाठकों के लिए सलाह है – कि सप्ताहांत, अथवा लम्बी छुट्टियों के दिनों में (त्योहारों) के मसूरी आने से बचें, क्योकिं इस समय सामान्य दिनों कि अपेक्षा कई गुना सैलानी होते है। अगर सप्ताहांत में उत्तरखंड में छुट्टियाँ बितानी हो तो उत्तरखंड में किसी लेस नोन डेस्टिनेशन में जा सकते है, जिनकी जानकारी आप – पर्यटन लिंक पर क्लिक कर ले सकते है।

Related posts

Binsar: Unveiling the Himalayan Splendor in Uttarakhand’s Hidden Gem

New Tehri: Where Adventure Meets Serenity

Mussoorie