कटारमल सूर्य मन्दिर

सभी की इच्छा होती है कि वो अपने जिंदगी से कुछ फुर्सत के पल निकाल, कुछ वक़्त अपने साथ बिताये, तो आज आप जानेंगे ऐसे ही प्रकर्ति के बीचो बीच स्ठित ऐसी स्थान के बारे में जो शांत और खुबसूरत तो है ही, साथ ही जहाँ आसानी से पहुंचा भी जा सकता है। हिन्दू धर्म की यही खासियत हैं कि इसमे प्रकर्ति के हर रूप को पूजा जाता है, चाहे वो जल हो, अग्नि हो, वायु हो, अन्न हो, भूमि हो या फिर सूर्य।  तो इन्ही में से एक सूर्य को समर्पित विभिन्न मंदिर भारत के कई राज्यों में हैं – जैसे उड़ीसा स्थित कोणार्क सूर्य मंदिर के अलावा मध्य प्रदेश, गुजरात, कश्मीर, बिहार, असम, तमिलनाडु, राजस्थान आदि सहित उत्तराखंड राज्य स्थित कटारमल सूर्य मंदिर प्रमुख हैं। इस लेख में आप जानेंगे, उत्तराखंड स्थित कटारमल सूर्य मंदिर के बारे में सम्पूर्ण जानकारी।

परिचय 

कटारमल सूर्य मंदिर, भारत के उत्तरी राज्य उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले से लगभग 16 किलोमीटर की दुरी अल्मोड़ा रानीखेत मार्ग पर एक ऊँची पहाड़ी पर बसे गाँव अधेली सुनार में स्थित है। कटारमल सूर्य मंदिर कुमांऊॅं के विशालतम ऊँचे मन्दिरों में से एक है।  पूरब की ओर रुख वाला यह मंदिर कुमाऊं क्षेत्र का सबसे बड़ा और सबसे ऊंचा मंदिर है। समुद्र तल से लगभग 2,116 मीटर (6,942 ft) की ऊंचाई पर स्थित है यह भव्य सूर्य मंदिर।

इस मंदिर का सामने वाला हिस्सा पूर्व की ओर है। इसका निर्माण इस प्रकार करवाया गया है कि सूर्य की पहली किरण मंदिर में रखे शिवलिंग पर पड़ती है।

 अल्मोड़ा रानीखेत मार्ग में कोसी से लगभग ४ किलोमीटर की दुरी पर कटारमल सूर्य मंदिर के लिए ३ किलोमीटर का एक अलग मार्ग जाता है 

मंदिर से पूर्व ही सड़क पर मंदिर के लिए एक गेट बना हुआ है, गेट के समीप ही कुछ वाहनों की पार्किंग के लिए स्थान और कुछ चाय नाश्ते आदि की दुकाने है। मंदिर को जाते हुए मार्ग में कहीं सीढ़ियाँ तो कही पर हल्की चढाई लेता हुआ तिरछा रास्ता है। जहाँ से लगभग छह – सात सौ मीटर की दुरी तय कर मंदिर तक पंहुचा जा सकता है। जाने का मार्ग भी काफी अच्छा है, जिसमे पत्थर बीछे हुए हैं। एक और हलकी पहाड़ी और नीचे की और रेलिंग लगी है। इस मार्ग से चलते हुए आपको कटारमल और अधेली सुनार गाँव और आस पास के ग्रामीण छेत्रों जैसे कोसी, हवालबाग आदि गाँव का दृश्य दिखाई देता है। साथ ही मार्ग में आपको पारंपरिक शैली से बने हुए पहाड़ी घर भी दिखते हैं और ऐसे ही खुबसूरत दृश्यों को देखते हुए आप कब मंदिर के समीप पहुच जाते हैं, पता ही नहीं चलता। मंदिर की सीढ़ियों से उप्पर चढ़ मंदिर प्रागण में पहुच आपको दिव्य अनुभूति होती और मंदिर के भव्यता का अहसास होता है। मंदिर से सामने मंदिर से कोसी, हवालबाग आदि के ओर और आस पास की घाटियों का दृश्यवाली अत्यंत मनमोहक लगती है।

मंदिर के सामने लगी शिलाओं पर आप मंदिर के बारे में संक्षिप्तजानकारी पढ़ सकते हैं, और मंदिर समूह के छोटे छोटे अलग अलग मंदिरों के मैप प्लान देख सकते हैं। कटारमल सूर्य मंदिर एक विशाल चबूतरे पर स्थित है, जिस्में मुख्य मंदिर के साथ अन्य छोटे छोटे मंदिर जिनकी संख्या ४४ है निर्मित हैं। इन मंदिरों के अन्दर फ़िलहाल मूर्तियाँ नहीं हैं। इस मंदिर का मुख पूर्व दिशा की तरफ है।

इतिहास

लगभग 9वी से  ११ वी शताब्दी के मध्य, कत्युरी शासन काल में बना इस सूर्य मंदिर के बारे में मान्यता है कि इसका निर्माण एक रात में कराया गया था। कत्युरी शासक कटारमल देव द्वारा इस मंदिर का निर्माण हुआ। इस मंदिर का मुख्य भवन का शिखर खंडित है, जिसके पीछे ये वजह बताई जाती हैं कि मंदिर निर्माण के अंतिम चरण में सूर्योदय होने लगा था। जिससे मंदिर का निर्माण कार्य रोक दिया गया, और ये हिस्सा अधुरा ही रह गया, जिसे आज भी देखा जा सकता हैं। हालाँकि एक अन्य मान्यता के अनुसार परवर्ती काल में रखरखाव आदि के अभाव में मुख्य मन्दिर के बुर्ज का कुछ भाग ढह गया।

मुख्य मन्दिर के आस-पास 45 छोटे-बड़े मन्दिरों का समूह भी बेजोड़ है। मन्दिर परिसर में स्थित विष्णु जी, शिव जी , पार्वती जी , गणेश जी , लक्ष्मीनारायण, नृसिंह, कार्तिकेय आदि अन्य देवी-देवताओं को समर्पित क़रीब 44 अन्य मन्दिरों भी स्थित हैं।  यह मंदिर “बड़ादित्य सूर्य मंदिर” के नाम से भी जाना जाता है। ऎसा कहा जाता है कि देवी-देवता यहां भगवान सूर्य की आराधना करते थे।

प्रचलित कथा :-  इस मंदिर से प्रचलित एक कथा  यह भी है कि उत्तराखंड के शांत हिमालय पर्वत श्रृंखलाओं में ऋषि मुनि सदैव अपनी तपस्या में लीन रहते थे। लेकिन असुर समय-समय पर उन पर अत्याचार कर उनकी तपस्या भंग कर देते थे। एक बार एक असुर के अत्याचार से परेशान होकर दूनागिरी पर्वत ,कषाय पर्वत तथा कंजार पर्वत रहने वाले ऋषि मुनियों ने कोसी नदी के तट पर आकर भगवान सूर्य की आराधना की। उनकी कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर सूर्य देव ने उन्हें दर्शन दिए तथा उन्हें असुरों के अत्याचार से भय मुक्त किया। साथ ही साथ सूर्य देव ने अपने तेज को एक वटशिला पर स्थापित कर दिया। तभी से भगवान सूर्यदेव यहां पर वट की लकड़ी से बनी मूर्ति पर विराजमान है। आगे चलकर इसी जगह पर राजा कटारमल ने भगवान सूर्य के भव्य मंदिर का निर्माण किया। जिसे कटारमल सूर्य मंदिर कहा गया।

मंदिर अपने आप में वास्तुकला का एक बेहतरीन नमूना है और यहां की पत्थरों से बनी दीवारों पर बेहद जटिल और खुबसूरत नक्काशी की गई है। इस मंदिर की निर्माण शैली कौसानी के समीप स्थित बैजनाथ मंदिर समूह, जागेश्वर मंदिर समूह आदि मंदिरों से मिलती जुलती हैं, जिन मंदिरों का निर्माण भी कत्युरी शासको ने ही कराया था। 

एक बार यहां से देवी की मूर्ति चोरी हो गई थी। जिससे इसके ऐतिहासिक महत्व को मद्देनजर रखते हुए मंदिर की मुख्य भवन की अस्ट धातु की मुर्ति और नक्काशीयुक्त दरवाजे को दिल्ली स्थित राष्ट्रीय संग्रहालय (National Museum) Delhi के व अन्य मूर्तियों को उत्तरप्रदेश के राजकीय संग्रहालय में रख दिया गया था, जिन्हें भी यहाँ वापस लाया जाना प्रस्तावित है। इस मंदिर के ऐतिहासिक महत्व को देखते हुए, भारतीय पुरातत्त्व विभाग’ द्वारा इस मन्दिर को “संरक्षित स्मारक” घोषित किया जा चुका है। इसीलिए अब इस मंदिर की देखरेख तथा इसकी सुरक्षा की जिम्मेदारी भारतीय पुरातत्व विभाग ने ले ली है। 

कैसे पहुचे!

Kausani

कटारमल मंदिर के नजदीकी रेलवे स्टेशन काठगोदाम यहाँ से लगभग  105 किलोमीटर की दुरी पर स्थित है। नजदीकी हवाई अड्डा पंतनगर 135 किलोमीटर की दुरी पर है। जिला मुख्यालय अल्मोड़ा से लगभग १६ किलोमीटर, रानीखेत से 30 किलोमीटर, कौसानी से 42 किलोमीटर है। 

कटारमल मंदिर के सबसे नजदीक का क़स्बा मंदिर से लगभग 4.5 किलोमीटर की दुरी पर कोसी है। और पैदल मार्ग द्वारा लगभग २ किलोमीटर की दुरी पर है। 

 

 

Where to stay

रात्रि विश्राम के लिए नजदीक स्थल कोसी में रात्रि विश्राम के लिये आपको होटल मिल जायेंगे, जिसकी दुरी यहाँ से लगभग ५ किलोमीटर है. इसके अतिरिक्त अल्मोड़ा, रानीखेत, कौसानी आदि में भी आप ठहर सकते हैं।

Chitai Temple

 

 

 

 

 

 

 

Nearby attractions

आस पास के पर्यटक आकर्षण के केंद्र चितई गोलू देवता मंदिर, कसार देवी मंदिर, जागेश्वर धाम, रानीखेत, कौसानी, कोसी नदी आदि हैं। यहाँ आप कोसी से ट्रैकिंग कर के भी पहुच सकते हैं और same day वापसी भी कर सकते हैं।

उपसंहार

सूर्य उत्तरायण के अवसर पर जनवरी/ फ़रवरी के मध्य उगते सूर्य की किरणें मुख्य मंदिर के भीतर सूर्य की मूर्ति पर पड़ती हैं, जो कि इंद्रधनुष के रूप में दिखती हैं। आने वाले दिनों में यहाँ मंदिर में आने वाले भक्तों को इस दृश्य को लेजर तकनीक के माध्यम से दिखाया जाना भी प्रस्तावित है। ये लागु होने पर यहाँ यहाँ लाइट एंड साउंड इफ़ेक्ट की लेजर तकनीक द्वारा इसका दृश्यांकन आने वाले श्रद्धालुवों को दिखाया जायेगा।

प्रकृति की खुबसूरत बादियों के बीच बसा यह मंदिर पर्यटकों का मन बरबस ही मोह लेता है। यह हमारे महान संस्कृति को तो दिखाता ही है साथ में उत्तराखंड के राजाओं के गौरवशाली इतिहास का भी बखान खुद-ब-खुद करता है। स्थानीय लोग व दूर-दूर से पर्यटक यहा पर भगवान सूर्य देव के दर्शन करने के लिए तथा उनका आशीर्बाद लेने के लिए पूरे वर्ष भर आते रहते है।

ऐसा कहा जाता है कि इनके सम्मुख श्रद्धा, प्रेम व भक्तिपूर्वक मांगी गई हर इच्छा पूर्ण होती है. इसलिये श्रद्धालुओं का आवागमन वर्ष भर इस मंदिर में लगा रहता है, भक्तों का मानना है कि इस मंदिर के दर्शन

मात्र से ही हृदय में छाया अंधकार स्वतः ही दूर होने लगता है और उनके दुःख, रोग, शोक आदि सब मिट जाते हैं और मनुष्य प्रफुल्लित मन से अपने घर लौटता है।

उम्मीद है कटारमल मंदिर से जुडी जानकारी आपको पसंद आई होगी। इस website में आप उत्तरखंड के कई अन्य पर्यटक स्थलों और धार्मिक स्थलों से जुड़ें लेख और videos देख सकते हैं। फिर जल्द ही मुलाकात होगी, एक और स्थान से जुडी जानकारी देते लेख के साथ।

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