घटता भूमिगत जल स्तर आखिर क्यों???

क्या आपने कभी सोचा है की भूमि का जल स्तर लगातार कम क्यों होता जा रहा है, अब बारिश तो हर साल लगभग समान रूप से ही होती है, शहरों में तो जलभराव की समस्याएं हर बारिश में उत्पन्न हो जाती हैं, परंतु भूमिगत जल हर वर्ष कम होता जा रहा है आखिर ऐसा क्यों होता है।

यह तो आप सभी लोग जानते हैं की विश्व की जनसंख्या प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है परंतु सोचने वाली बात यह है की पानी तो सीमित है ना पानी को उत्पन्न किया जा रहा है ना ही इसे पूर्णतया नष्ट किया जा सकता है, हां इसे प्रदूषित और अलग-अलग प्रकार में बदला जरूर जा सकता है। जनसंख्या के हिसाब से देखें तो पृथ्वी पर उपस्थित एक तिहाई भाग पर पानी से कोई कमी नहीं होनी चाहिए थी परंतु अब ऐसा नहीं रहा।

आप सभी लोग जानते हैं की समुद्र का पानी उपयोग लायक कम ही होता है, पर आज की स्थिति पर बात करें तो समुद्री जलस्तर लगातार बढ़ रहा है तथा भूमि का जल स्तर लगातार कम हो रहा है पिछले कुछ सालों की बात करें तो यह देखने में आया है की भारत के कुछ महानगरों में पानी की बहुत ज्यादा समस्याएं उत्पन्न हो गई है। पिछले वर्ष चेन्नई में तो भूमि का जल स्तर लगभग समाप्त ही हो चुका था।

वैसे तो जलस्तर कम होने के बहुत सारे कारण हैं परंतु आज हम एक ऐसे कारण की बात करेंगे जिस पर लोगों का ध्यान कम ही जाता है।
जल चक्र की बात करें तो समुद्र से उठा हुआ जल भाप के रूप में बादल बनाता है तथा वह बादल बरस कर भूमि को फिर से जल देते हैं।
बारिश से मिला यह जल जब भूमि पर पड़ता है तो यह भूमि के सूक्ष्म छिदौ् द्वारा सोख लिया जाता है, तथा मिट्टी के अंदर जाकर भूमिगत जल स्तर को बढ़ाता है यह एक प्राकृतिक चक्र है।

अब हम आज के समय की बात करें तो हम कहीं ना कहीं भूमि का जल स्तर को बनाने वाले कारको को बाधित कर रहे हैं।


ऐसा कैसे होता है आइए मैं आपको समझाता हूंआपने देखा होगा की भूमिगत जल की समस्या है अधिकतर शहरों में उत्पन्न होती हैं क्योंकि वहां बहुत ज्यादा औद्योगिक गतिविधियां है, जनसंख्या अधिक है, तालाबोंं की संख्या लगभग समाप्त हो चुकी है, निर्माण कार्य तेजी से हो रहा है, आंगन टाइल्स के बने हुए हैं, अधिक मात्रा में सीमेंटेड तथा डामरीकृत सड़कें, छोटी-छोटी नालियां तथा सीवर है जो पूर्णतया सीमेंट से बने हुए हैं क्योंकि जिनका मुंह एक बड़ी नहर में खुलता है और वह नहर भी पूर्णतया ऐसे मेटेरियल से बनी हुई है जिससे कि पानी रिस नहीं सकता। यह नहर शहर से बाहर जाकर किसी नदी में मिलती है और वह नदी उस पानी को ले जाकर एक बड़े समुद्र में छोड़ देती है।


जब भी बरसात हुई तो पानी छत – आंगन पर गिरा जिसको हमने पाइप लाइन के द्वारा नालियों में छोड़ दिया, वहीं सड़कों के किनारे बनी हुई नालिया सड़कों का पानी लेकर आ गई अपना नालिया लबालब भर चुकी है जोकि उस पानी को ले जाकर किसी सीवर लाइन में भेज देती हैं तथा सीवर लाइन से यह पानी नदी तथा उसके बाद समुद्र में पहुंच गया।

अब समुद्र को भरपूर मात्रा से भी अधिक मात्रा में पानी मिल चुका है परंतु उस जमीन को नहीं मिला जिसे मिलना अति आवश्यकता था क्योंकि जो जल भूमि पर पड़ता है उसी से भूमि के जल स्तर में सुधार होता है। अब समुद्र की बात करें उसके पास बहुत अधिक मात्रा में जल पहुंच चुका था जिसका वह एक सीमित सीमा में ही वाष्पीकरण कर सकता है। अधिक मात्रा में जल उपस्थित होने पर समुद्र पर अतिरिक्त बोझ पड़ेगा जिससे समुद्र तटीय क्षेत्र डूबने की आशंका रहती है।

इन सब कारणों के बावजूद भी जल का कुछ हिस्सा भूमि के अंदर पहुंच जाता है परंतु यह काफी नहीं है क्योंकि हम अनेक यंत्रों द्वारा बहुत अधिक मात्रा में भूमिगत जल को बाहर खींच लेते हैं।

उम्मीद करता हूं आपको यह आर्टिकल पसंद आया होगा।

धन्यवाद


उत्तरापीडिया के अपडेट पाने के लिए फ़ेसबुक पेज से जुड़ें।

Related posts

Black Friday ब्लैक फ़्राइडे कहाँ से और कैसे शुरू हुआ!

Binsar: Unveiling the Himalayan Splendor in Uttarakhand’s Hidden Gem

Uttarakhand: Discover 50 Captivating Reasons to Visit