राजा हरुहीत की कहानी

उत्तराखंड की लोक कथाए और गीत यहाँ के विरासत का स्मरण कराते है, उत्तराखंड में अनेकों प्रसिद्ध लोक कहानियों में से एक लोककथा राजा हरुहीत की है। राजा हरुहीत कूमाऊँ की संस्कृति और आस्था के प्रतीक हैं। न्याय के लिए गुहार करने वाले लोगों का विश्वास है कि राजा हरुहीत सही न्याय करते हैं और लोग राजा जी के दर्शन के लिये दूर-दूर से आते हैं।

राजा हरुहीत का मंदिर दो सदी से अधिक पुराना है, इस मंदिर में राजा समर सिंह और राजा हरुहीत को भगवान के रूप में पूजा जाता है। ऐसा कहा जाता है कि जो यहां सच्चे मन से कामना करता है, उसकी मनोकामना पूरी होती है।

मंदिर तक कैसे पहुंचा जाये

दिल्ली से रामनगर (जिम कॉर्बेट) जो कि 270 किमी के आसपास है, वहाँ से सीधे मुहान की ओर जाते हैं और फिर पौड़ी-मरचुला रोड की ओर प्रस्थान करते हैं और उस राजमार्ग पर पहले यू-टर्न (लगभग 9 किमी के बाद) लेने के बाद गाँव हरडा मौलेखी की ओर बढ़ेंगे।

गाँव हरडा दिल्ली से लगभग 300 किमी दूर है। उसके बाद 14 किमी की ट्रेकिंग के बाद राजा हरुहीत मंदिर जाएंगे।

लोककथा

समर सिंह हीत उत्तराखंड कुमाऊँ के गुजड़कोट तल्ला सल्ट (अल्मोड़ा) के राजा थे। जिनके सात पुत्र और उनकी सात पत्नियाँ थी, भारी सम्पति होने के कारण उनके सातों पुत्रों में अंहकार आ गया, वह अपनी इच्छा अनुसार कार्य करने लग गए, उन्होंने निर्दोष लोगों को लूटना और उन्हें परेशान करना शुरू कर दिया। इसलिए लोगों ने इसके सारे खेत बंजर पड़ जाये, और सात पुत्रों को मरने के लिए और उनकी स्त्रियों को बाँझ होने के लिए शाप दे दिया, भगवान ने उनकी बात सुनी और सभी सात पुत्र मर गए और उनके पिता समर सिंह की सदमे में मृत्यु हो गई।

हरुहीत सम्राट समर सिंह के आठवे संतान थे। राजा समर सिंह और उनके सात पुत्रों के मृत्यु के समय हरुहीत छः महीने  के अपनी माँ की कोख में थे। राजा समर सिंह के मृत्यु उपरान्त राजा को मिलने वाली रकम बंद हो गई थी, और राजकोष भी पूरी तरह खाली हो चुका था। उस समय हरूहीत की माँ और सात भाभियाँ बड़े ही दुखदायी दिन काट रहे थे।

एक दिन जब वो सभी बालको के साथ चोर सिपाई का खेल खेल रहे थे, तब उन्हें खेल-खेल में अपने बीते हुये समय के बारे में पता चला। तब उन्होंने अपनी माँ से बोला “माँ आप मुझे सच – सच बताना की मेरे सातों भाई की मृत्यु कैसे हुई और क्या मेरे पिता राजा थे ? अगर माँ आप मुझे सच नहीं बताओगे तो में राम गंगा में आपने प्राण त्याग दूँगा ” पुत्र की यहाँ बात सुन कर माँ के आँखों में आंसू आ गए। तब उसने सारी बात हरूहीत को बताई, माँ की बात सुन कर हरूहीत के गुस्से का ठिकाना नहीं रहा  हरूहीत ने अपनी तलवार उठाई और अपने घोड़े पर सवार होकर गांव की तरफ चला गया। और उसने वहाँ जा कर गांव वालो को ललकारा की यदि मेरे 14 साल से बंजर पड़े खेत को तुमने आबाद नहीं किया तो तुम सब मेरे हाथो से मारे जाओंगे, और चौदह साल की रकम एक साथ वसूल कर जमा कर जायें। हरूहीत की पुकार सुन पूरे इलाके में खलबली मच गई और एक दिन में ही सब कुछ चौदह वर्ष पहले की भांति कामकाज चलने लगा। हरूहीत की जिंदगी में हर तरफ़ ख़ुशहाली आने लगी थी, हरूहीत के खेत आबाद हो गए थे।

हरूहीत यह देख कर बहुत खुश हो गया था उसने गांव के लोगो का धन्यवाद किया और बोलै की तुमने आज मेरी लाज़ रख ली अब कोई सुन्दर कन्या देख कर मेरा विवाह करा दो, क्योकि हरूहीत के घर में बूढ़ी माँ और भाभियों की देखभाल के लिए कोई नहीं था। दुश्मनों ने इसका फायदा उठाने की सोची और यह बात उसकी सात भाभियों को बता दी कि अगर राजा हरूहीत शादी करेगा तो उसकी पत्नी राज करेगी और तुम्हें गुलाम माना जाएगा। और  उसकी रानी उन सभी को महल से निकाल देगी, उकसावे में सभी सात भाभियों ने हरूहीत को गालियां देना शुरू कर दिया। और वह घर छोड़कर दो भाई भैसियों के घर चले गई। जब वो दो भाई भैसियों के घर पहुंचे तो उन्होंने हरूहीत के बारे में सारी कहानी बताई, हरूहीत रात भर अपनी भाभियो के घर से चले जाने के कारण परेशान होकर गांव के सभी लोगो से अपनी भाभियो के बारे में पूछने लगा तब किसी ने बताया की उसकी भाभियाँ चाँदीखेत में दो भाईयों के पास है।

जब हरुहित वहाँ अपनी भाभियों को लेने पहुँचा तो दो भाईयों और हरूहीत के बीच युद्ध हुआ, जिसमे दो भाइयों ने हरूहीत को मार दिया, हरूहीत अपनी माँ के सपनो में आया और उसने अपनी माँ को बताया “माँ भाभियों के चक्कर में दो भाइयों के हाथो चाँदीखेत मैं मारा गया हूँ”। तब हरूहीत की माँ ने अपने इष्ट देवता को पुकार लगाई की “अगर होगा तू मेरा सच में इष्ट देवता तो मेरे हरु को ज़िंदा करके घर लाएगा”। तब माँ की पुकार सुन कर इष्ट देवता ने हरूहीत को पुनः जीवित कर दिया, हरूहीत ने अपनी तलवार उठाई और दो भाइयों को मार दिया और अपनी भाभियों को घर वापिस लेकर आ गया।

हरूहीत की शादी की बात सुनकर उसकी भाभियों ने भोट की राजकुमारी जिसका नाम मालू रौतेली था उसे विवाह करने की चाल रची क्योंकि वह जानती थी की भोट में काला जादू होता है। अगर हरूहीत वहाँ गया तो कभी वापिस नहीं आएगा हरूहीत ने उनकी बात मान ली और अपनी इष्ट देवता के मंदिर में गुहार लगाई  ” हेय इष्ट देवता अगर मैं भोट की राजकुमारी मालू रौतेली को बियाह के लेकर आ गया तो तुझे सात जोड़ी बकरे और हिनाओ ( घंटी ) और बाघनाथ में सोने का कलश चढ़ाऊँगा ” जो आज भी लोद के बागेश्वर मंदिर में स्थित है।

हरूहीत ने अपनी तलवार और घोड़े में सवार हो कर भोट की तरफ प्रस्थान किया जब हरूहीत भोट पहुँचा तो उसे मालू रौतेली देवी मंदिर में मिली जब उन्होंने एक दूसरे को देखा तब दोनों मोहित हो जाते है, मालू रौतेली ने अपना परिचय देते हुए कहा में मालू रौतेली कालू शोत की बेटी हूँ, फिर मालू रौतेली हरूहीत से पूछती है “तुम कौन हो और कहा से आये हो और क्या तुम्हारा नाम है” हरूहीत अपना परिचय देते हुए  बताते है की “मैं हरसिंह हित तल्ला सेल्टा अल्मोड़ा का राजा हूँ और मैं तेरे लिए यहाँ आया हूँ” जब हरूहीत मालू रौतेली के मन में बस गए तब उसने अपने भोट के जादू से हरूहीत को मक्खी बना कर अपने पास रख लिया और घोड़े को भावरा बना कर उड़ा दिया, और बाद में हरूहीत को इंसान बना दिया और दक्षिण दिशा की तरफ जाने को माना कर दिया।

एक दिन हरूहीत दक्षिण दिशा की तरफ का दरवाजा खोलते है, तब मालू रौतेली की सात बहनो की नज़र हरूहीत पर पड़ती है और वो हरूहीत से शादी करने का प्रस्ताव उसके आगे रखती है लेकिन हरूहीत शादी के लिए इंकार कर देते है तब गंगला ने काला जादू से हरूहीत को मार कर बक्से में बंद करके ज़मीन में दबा दिया। हरूहीत रात को मालू रौतेली के सपनो में आते है मालू को अपने मृतिक शरीर के बारे में बताते है, की तेरी सात बहनो ने मुझे मार कर इस जगह दबा रखा है। फिर मालू ने हरूहीत को अपने जादू से जिन्दा किया, मालू और हरु की प्रेम की खबर कालू शोत के पास पहुंची हरूहीत और कालू शोत के बीच घमासान युद्ध हुआ जिसमे कालू शोत की सेना हार गयी और हरूहीत मालू रौतेली को अपने साथ अपने देश लेकर आ गए।

हरूहीत ने अपनी माँ से मालू रौतेली को मिलाया तब हरूहीत की माँ मालू रौतेली को देख कर खुश हो गई यह बात उसकी भाभियो को पता चली की हरूहीत मालू रौतेली को बियाह कर ले आया है। तो उन्होंने मालू को मारने का षड्यंत्र रचा, एक दिन हरूहीत अपनी बकरियों के साथ भाभर गया, हरूहीत की भाभियों ने कहा की “मालू रौतेली तुझे मछली दिखाएंगे” और उसको नदी की तरफ बुलाया गया मालू रौतेली बड़ी खुश हुई और नदी की तरफ दौड़ गई सातों भाभियों ने उसे नदी में धक्का देकर उसकी हत्या कर दी। हरूहीत के सपनो में आकर मालू ने बताया की “तुम्हारी भाभियों ने राम गंगा नदी में धक्का दे कर मुझे मार दिया है” मालू शाही की मौत से राजा पूरी तरह जीवन के सार से खिन्न हो जाते हैं और सातो भाभियों को दण्ड देते हुए हिन्दू रिवाज के साथ अग्नि को समर्पित कर देते हैं। आगे माँ से आग्रह करते है कि वह अपने सांस को रोक कर प्रभू के चरणों में अपने प्राण रख दे। माँ के मृत्यु के साथ माँ की अन्तेष्टि करने के बाद राजा हरूहीत दो चिता लगाकर मालू संग खुद और अपने हमदर्द घोड़े को भी अग्नि को समर्पित कर देते है। राजा जी के मंदिर से एक सुरंग है जो की मंदिर से अन्दर ही अन्दर निकलते हुई हँसीडुग (जो के रामगंगा नदी पर है) पर मलती है! राजा जी के ज़माने मैं वहा से उनके लिये पानी लाया जाता था, और राजा जी का परिवार वही नहाया करता था, एक दिन राजा की रानी (मालू रोतेली) ने वहा पर नहा कर अपनी घागेरी (पेटीकोट) सुखाने के लिये एक पत्थर पर रखा तो वहा पर घागेरी की छाप आ गयी जो आज भी है, बड़ी मात्र मैं लोग उसे देखने के लिये बड़ी दूर – दूर से आते है।

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