ओम पर्वत का रहस्य

ओम पर्वत om mountain उत्तराखंड

ओम पर्वत 6191 मीटर की ऊंचाई पर हिमालय पर्वत श्रृंखला के पहाड़ों में से एक है। यह पर्वत नाबीडागं से देखा जा सकता है। नाबीडांग से कुट्टी गांव होते हुए आप छोटा कैलाश, आदि कैलाश, बाबा कैलाश जोकि जोंगलिंगकोंग के नाम से प्रचलित है, जा सकते हैं। दूसरी तरफ लिपुलेख दर्रा होते हुए हम तिब्बत में स्थिति कैलाश मानसरोवर भी जा सकते हैं। एक प्रकार से यह स्थान कैलाश और आदि कैलाश के बीच में स्थित है। ये स्थान नेपाल – तिब्बत सीमा के पास में स्थित है जो एक शानदार दृश्य प्रदान करता है। यहाँ आने वाले यात्री इस स्थान से अन्नपुर्णा की विशाल चोटियों को भी देख सकते हैं। यह स्थान धारचूला के निकट है।

इस पहाड़ पर बर्फ के बीच ‘ओम’ या ‘ऊँ’ शब्द का आकार दिखता है। इसी कारण इस स्थान का नाम ओम पर्वत पड़ा। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, हिमालय पर कुल 8 प्राकृतिक ओम की आकृतियां बनी हुई हैं। इनमें से अब तक केवल ओम पर्वत की ही आकृति के बारे में पता चल सका है। ये चोटी हिन्दू धर्म के अलावा बौद्ध और जैन धर्म में भी विशेष धार्मिक महत्व रखती है। इस पर्वत के दूसरी तरफ पार्वती मुहर नाम का एक पहाड़ है। जो इसी नाम के एक दर्रे से जुड़ा हुआ है। ओम् पर्वत को लेकर भारत और नेपाल के बीच सीमा विवाद है। दोनों देश इस पर्वत के पास सीमा रेखा को लेकर सहमत नहीं है, पर पहाड़ पर ‘ऊँ’ भारत की ओर दिखता है जबकि इसका पृष्ठ भाग नेपाल की ओर पड़ता है।

ओम पर्वत से आदि कैलाश की यात्रा लगभग 26 किलोमीटर है। ओम पर्वत नाभीदांग से दर्शनीय है। नाभि दांग से कुट्टी गांव होते हुए जौलीकांग जाने पर आदि कैलाश के दर्शन प्राप्त होते हैं। भारत से कैलाश-मानसरोवर की यात्रा पर जाने वाले यात्री लिपुलेख दर्रे के नीचे बने शिविर से इस पर्वत के दर्शन कर सकते हैं। कई यात्री ओम पर्वते के दर्शन के लिए नाभिधांग कैंप का रास्ता पकड़ते हैं।

कई पर्वतारोहियों के दल इस पर्वत की चोटी पर पहुंचने का प्रयास कर चुके हैं। इस संबन्ध में सबसे पहला ब्रिटिश और भारतीय पर्वतारोहियों के संयुक्त दल ने किया था। दल ने इस पर्वत की धार्मिक मान्यता का सम्मान करते हुए शिखर से 30 फीट पहले ही रुक जाने का फैसला किया था लेकिन मौसम खराब हो जाने की वजह से इस दल को चोटी से 660 फीट पहले ही लौट आना पड़ा। 8 अक्टूबर 2008 को एक दूसरे दल ने इस पर्वत के शिखर पर चढ़ने का प्रयास किया और शिखर के प्रति सम्मान दिखाते हुए ये दल चोटी से कुछ मीटर पहले ही लौट आया।

इस पर्वत में भगवान शिव जी का वास माना जाता है।

 

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