भारत को जरूरत है उत्तराखंड में सीमाई पर्यटन को बढ़ावा देने की

चीन भारत की दो जगहों लद्दाख और अरुणांचल पर अपना हस्तक्षेप करता ही है लेकिन एक महत्वपूर्ण जगह उत्तराखंड भी है जिसके चमोली व उत्तरकाशी को भी वह अपनी भूमि बताता है। इसलिए भारत के लिए यह बॉर्डर एरिया भी बहुत महत्वपूर्ण है। पिछली सरकारों ने चाहे वह राज्य की हो या केंद्र की इन क्षेत्रों को अनदेखा किया है।

पलायन आयोग की रिपोर्ट की अनुसार चीन बॉर्डर से लगने वाले लगभग 16 गांव पूर्ण रूप से खाली हो चुके है, अब इन गाँवों में एक भी परिवार नहीं रहता। यही हाल पूरे पहाड़ी इलाको का है ,अंदर ही अंदर सारे गाँव खोकले होते जा रहे है। यदि ये गाँव खाली ही रहते है तो वह दिन दूर नहीं जब चीन इन जगहों पर भी कैंप लगाकर इनको अपना कहना शुरू कर दे ।

इन गांवो के खाली होने का कारण रोजगार का ना होना और गाँवों में सड़के मूलभूत जरूरतों का ना होना है। जब लोग कठिन जीवन जीने पर मजबूर हो जाये वह अपने लिए अलग पनाह ढूँढने ही लगते है।

बॉर्डर के गाँवों का खाली होना राष्ट्रीय सुरक्षा की दृस्टि से भी सही स्थिति नहीं है जिस क्षेत्र में आबादी होती है वहा के लोग भी सीमा के  पहरेदार होते है उन्हें दुश्मन देश की सेनिको की एक-एक मूवमेंट का पता होता है,कारगिल की युद्ध की समय गाँव की चरवाहों ने ही भारतीय सेना को पाकिस्तान के सेनिको द्वारा ऊँची पहाड़ियों को कैप्चर कर लेने के बारे में बताया था ।

उत्तरखंड चीन व नेपाल के साथ लगभग 350 km की सीमा बनाता है, इन इलाको में सेना के द्वारा हर वक़्त पेट्रोलिंग करना बहुत कठिन है इसलिए केंद्र सरकार इन जगहों पर पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए पुराने नियमों में बदलाव कर रही है क्योंकि तब के नियमा अनुसार ये सीमाई इलाके पर्यटन के लिए प्रतिबंधित थे।

केंद्र सरकार इन सीमाई गाँवों को पर्यटन की दृस्टि से विकसित करने के लिए एक योजना (BOUDER VILLAGE THE SECOND LINE OF DEFENCE ) पर कार्य कर रही है । इस योजना से इन गाँवों को दोबारा विकसित करके यहां पर पर्यटन को बढ़ावा दिया जायेगा। जिससे यहां रहने वाले लोग दोबारा अपने गाँवों में आकर यही पर अपनी आजीविका चलाकर देश की सुरक्षा का कार्य भी कर पायंगे।

 

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