आत्मनिर्भरता के लिए चीन के साथ अच्छे संबंधों से भारत को है ये लाभ !

पश्चिमी देशों पर हमारी बढती निर्भरता को कम करने और शक्ति संतुलन बनाने के लिए हमें चीन के साथ अपने सम्बन्ध अच्छे बनाने हेतु सधी हुई पहल करनी चाहिए।

आज जहाँ –  गूगल, फेसबुक, ट्विटर, अमेज़न, इंस्टाग्राम, व्हाट्सएप, प्लेस्टोर, एप्पल स्टोर जैसी अमेरिकन कंपनीज, भारत के बाज़ार पर अपना प्रभाव स्थापित कर चुकी हैं। आम जीवन के लिए बेहद उपयोगी बन चुकी और हमारे दैनिक जीवन का हिस्सा बन चुकी ये वेबसाइटस अथवा एप्लीकेशन ही तय करती है कि – ऑनलाइन दुनिया में हमें क्या सर्च करना चाहिये, क्या खरीदना चाहिए, किन विचारों को सोचना चाहिए, क्या हमारे लिए अच्छा नहीं है… और किस कंटेंट को सर्च में ब्लाक करना है। किन टॉपिक्स को ट्रेंड करना चाहिए, पेड हो या आर्गेनिक, हम इससे बाहर कुछ नहीं कर सकते हैं। साथ ही अगर आप इनकी किसी बात से सहमत न हो तो कहीं शिकायत भी नहीं करते सकते, क्योकि सम्प्रेषण का माध्यम भी यही सब साइट्स है, जो  कभी भी आपका इन websites में खाता बंद करके आपकी आवाज़ को रोक सकती हैं।

हमारे कंप्यूटर, मोबाइल के ज्यादातर प्रोसेसर, ऑपरेटिंग सिस्टम, अनेकों अन्य उत्पाद और अत्याधुनिक हथियार, फाइटर प्लेन अधिकतर दुनिया के सबसे शक्तिशाली देश से आते हैं।

ऐसे में, मानसिक और वैचारिक रूप से पश्चिम में सफ़ेद चमड़ी के लोग कुछ कह दे तो, हमारे देश में कई लोग उसे अकाट्य तर्क मानकर उसे तुरंत स्वीकार कर लेते हैं। उनका हमारी किसी बात के लिए समर्थन हमारे लिए किसी सत्य की उपलब्धि सा होता है।

हम गर्व से कहते है – यह ब्रिटिश समय की इमारत है और इस बात के लिए भी गर्व करते कि उनकी भवन निर्माण तकनीक बहुत उन्नत थी, इतने साल बाद ये निर्माण आज भी टिके हैं। हालाकिं उनके आने से पूर्व भी भारत की निर्माण तकनीक उन्नत थी, कई प्राचीन भारतीय मंदिर सैकड़ों, हजारों वर्षों के बाद भी आज मजबूती से टिके हैं।

गोरे रंग की चमड़ी के पीछे हमारी मानसिकता इतनी प्रभावित है कि –  यहाँ लोग प्रकृति प्रदत रंग की जगह उनके जैसा कलर पाने के लिए लिए सौन्दर्य प्रसाधन पर करोड़ो – अरबों रुपया खर्च कर रहे हैं। क्या इसकी व्याख्या मिल सकती कि – रंग बदलने से मनुष्य के आन्तरिक गुण – स्वभाव – मस्तिष्क पर कैसे अंतर पड़ता है? हमारी फिल्मे और विज्ञापन भी इस रेसिस्म को बड़ा रही है, जो बार – बार प्रदर्शित करते है – कि कोई महिला अथवा पुरुष गौर वर्ण का है, तब ही सुन्दर माना जाएगा।

पश्चिम के मिली इस सोच का ही नतीजा है कि, हम अब दुनिया को उनके चश्मे से देखने लगे हैं। यहाँ तक कि हम अपने देश के पड़ोसी देशों से व्यवहार भी उनके अनुसार करने लगे हैं।

अगर हमें अपने देश में अपनी तकनीक विकसित करनी है, और शीघ्रता से आत्म निर्भर होना है, और अपनी मौलिक सोच विकसित करनी है तो हमारे पास चीन से सीखने के लिए बहुत कुछ है। साथ ही अपने इस पडोसी देश से अच्छे रिश्ते बनाकर शक्ति संतुलित कर सकते हैं। वैसे भी भारतीय संस्कृति में हम मानते है –  ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ – पूर्व विश्व ही एक परिवार है। अपनी इसी सोच के कारण भारतीय – पूरी दुनिया में है, सभी जगह परिवार की तरह रहते हैं।

अब जबकि लम्बे समय से चल रही भारत और चाइना के बीच सीमा पर चल रहा तनाव ख़त्म हो गया है। तो हमें चाइना के साथ संबंधों पर पुनः विचार करना चाहिए।

वर्तमान समय में चीन ही एक ऐसा ऐसा देश है – जिस पर पश्चिमी देश अपना नियंत्रण नहीं रख पा रहे। चीन के आगे उनकी नहीं चलती। इसलिए चीन विरोधी कई बाते हमें पश्चिमी मीडिया से सुनाई देती हैं, और हमारे देश का मीडिया उन्हें दोहराता है चाइना में दुनिया की सबसे बड़ी माने जाने वाली सोशल वेबसाइट, सर्च इंजन, चैट एप्लीकेशन प्रतिबंधित है, चाइना में उनका स्वयं का निर्मित सर्च इंजन है और सोशल साइट्स हैं।

यह अच्छा है भारत आत्म निर्भरता की ओर बढ़ रहा है। साथ ही हमें अपने पड़ोसियों से सम्बन्ध पश्चिम के नज़रिए से नहीं अपने दृष्टि कोण से परिभाषित करने चाहिये। पश्चिमी देशों की सीमाएं चीन से जुडी नहीं है, लेकिन हमारे देश की सीमाएं कई जगह से जुडी हैं। पड़ोसियों के तनावपूर्ण रिश्तों से हमारे कॉन्टिनेंट में हमेशा अशांति और असुरक्षा का माहौल रहेगा।

1962 में भारत की चाइना से युद्ध में हारा, और हमारे हिमालयी भू भाग का कुछ हिस्सा उनके नियत्रण में चला गया – हमारे सैनिकों के बलिदान और भूभाग के छिनने के कारण हमारी पिछली दो से तीन जनरेशन इस आत्म पीड़ा साथ जी रही है।

1947 से पूर्व 200 वर्षों तक अंग्रेजों ने भी भारत पर क्रूरता से राज्य किया था, आज हम उस बात को भुला कर अब ब्रिटेन को अपना मित्र राष्ट्र मानते है, उनका हम पर इतना गहरा प्रभाव है कि – हमारे देश में अग्रेजी बोलने वाले लोग अधिक ज्ञानी और विद्वान समझे जाते हैं, जबकि भाषा सिर्फ संवाद का माध्यम है, भाषा किसी वाहन की तरह है जो – उसमे बैठे सवार का IQ या चरित्र अथवा बौद्धिक स्तर नहीं बदल सकती।

जब ब्रिटेन से प्राप्त गुलामी इतनी असहय वेदना के बाद – आज की पीढ़ी में ब्रिटेन के लिए कोई बैर भाव नहीं है, तब फिर चीन – भारत युद्ध में हार की पीड़ा के दंश से क्यों भारतीय बाहर नहीं निकलते? क्या इसलिए कि वो हमारी ही तरह गहरी रंग की चमड़ी के हैं! आज के समय में युद्ध हुए तो इतने विध्वंसक होंगे कि पूरी सभ्यता ख़त्म हो जायगी, लेकिन आत्म विश्वास के साथ बातचीत ही एक ऐसा माध्यम है – जिससे विवादित विषयों का भी सम्मानजनक समाधान निकल सकता है।

कई लोग मानते है कि – चीन पर विश्वास नहीं किया जा सकता है। यह ठीक बात है, और करना भी नहीं चाहिए।  दुनिया के सम्बन्ध कूटनीति पर चलते है विश्वास पर नहीं। कुछ समय पूर्व  ब्रिटेन भी यूरोपीय समूह से अलग हुआ, दुनिया की सीमाए तो सदा से बदलती रही हैं। यो तो दुनिया में कोई भी देश आँख बंद कर किसी दुसरे देश पर विश्वास नहीं करता है, सभी अपना हित लाभ लेकर संबंधो को आगे बढ़ाते हैं, तो फिर चीन के साथ अतिरिक्त बैर का भाव लेकर क्या लाभ?

डोकलाम और गलवान विवाद में चीन और सारी दुनिया ने भारतीय इच्छाशक्ति और सामर्थ्य को देखा है। उन्होंने देखा कि आज भारत अपनी रक्षा के लिए  स्वयं जवाब देने में समर्थ है। चीन भले ही हमारे देश से आर्थिक रूप से मजबूत हो, लेकिन दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र और लोकमत के आधार पर गवर्नेंस में हमारे देश को दुनिया में बेमिसाल बनाता है।

भारत के जैसे अमेरिका, यूरोप, अफ्रीका और एशिया के अधिकांश देशो के साथ अच्छे कुटनीतिक सम्बन्ध हैं। इसी तरह आज आवश्यकता है- भारत के चीन के साथ कुटनीतिक सम्बन्ध सुदृढ़ हों,  जिससे हमारे देश का सभी के साथ शक्ति संतुलन बना रहे। भारत और चीन का देशों का इतिहास बौद्धिक और सांस्कृतिक आदान – प्रदान का रहा है।

मैंने कुछ वर्ष पूर्व जब पहली बार चीन की धरती में कदम रखा तो आशंकित था कि क्या किसी ह्रदयहीन देश में जा रहा हूँ! – जहाँ मनुष्यों के साथ न जाने कैसा अप्रिय व्यवहार किया जाता होगा, जब वहां पंहुचा कुछ महीने रहा तो मालूम हुआ कि वहां के लोग भी उतने ही आतिथ्य सत्कार और गर्मजोशी से भरे हैं– जितने हमारे अपने लोग, उनका सहयोग और जिन्दादिली ने मेरा भ्रम और आशंकाए दूर कर दी।  वो आई टी क्षेत्र में भारतीयों की उपलब्धि के रुप में और योग के जनक राष्ट्र के रूप में भारतीयों से प्रभावित होते हैं।

पूर्ण जानकारी के आभाव कई भारतीय मानते हैं कि चीन सिर्फ घटिया प्रोडक्टस बनता है। तो यह पूरा सच नहीं है। भारतीय व्यापारी जो उत्पाद आयात करते हैं, वो बहुत सस्ते मूल्य के होते हैं, इसलिए उनकी क्वालिटी भी उसी के अनुसार होती है। आम चीन के उत्पाद अच्छी गुणवत्ता के उत्पाद उपयोग में लाते हैं, साथ ही चाइना से यूरोप और अमेरिका को भी प्रोडक्ट्स एक्सपोर्ट होते हैं, और उनके द्वारा भुगतान किये गए मूल्य के अनुसार उनकी गुणवत्ता भी उच्च स्तरीय होती है।

किसी देश से आयात बंद कम करने का तरीका है – कि अपने ही देश में उससे बेहतर उत्पाद बना कर आत्मनिर्भर हुआ जाए, ना कि एक देश का सामान प्रतिबंधित कर किसी अन्य देश से वहीँ चीजें अधिक मूल्य पर मंगाई जाये। वैसे भी भारत आधिकारिक रूप से व्यापार समझोते में शामिल अन्य देशों के साथ व्यापार बंद नहीं कर सकता। हाँ कुछ उत्पाद अथवा सेवाओं पर सुरक्षा कारणों से प्रतिबन्ध अथवा उन पर आयात का शुल्क बड़ा सकता है।

चीन के साथ अच्छे सम्बन्ध रख हम अपने पडोसी आतंक फ़ैलाने वाले देश पर भी अधिक प्रभावी नियंत्रण रख पाएंगे।  तनाव के समय सम्बन्ध सुधारने पर चर्चा नहीं की जा सकती है लेकिन शांति काल में यह तैयारी की जा सकती है। हमारे दोनों देशों की आने वाली पीढ़ी के अच्छे भविष्य के लिए चीन के साथ अच्छे और सकारत्मक सम्बन्ध भारतीयों के लिए महत्वपूर्ण हो सकते हैं।

भारत दुनिया में सॉफ्टवेयर के क्षेत्र में विशेष उपलब्धि प्राप्त देश के रूप में जाना जाता है और चीन हार्डवेयर के क्षेत्र में। अच्छे सम्बन्ध होने पर चाइना और भारत को एक- दूसरे से सीखने को बहुत कुछ है।

लेखक के विचार अपने चीन यात्रा के अनुभव पर आधारित है।
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