कोरोना का रोना – किराया दोगुना

कोरोना, सन् 2020 की इस वैश्विक महामारी ने सभी देशों का ऐसा रोना किया है कि मुश्किल ही है कि पृथ्वी का कोई मानवयुक्त कोना इसकी चपेट में आने से बचा हो।

हमारे देश में भले ही इसने अपने कदम थोड़ी देर से रखें हो, लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं है कि देर से आकर भी कोरोना ने देश को दुरुस्त नहीं छोड़ा है।

कोरोना की शुरुआती दस्तक ने ही प्रवासी मजदूरों की जो दुर्दशा की है वो किसी से छिपी नहीं है। जहां तक प्रशासन का सवाल है तो वो कोरोना के निर्मम प्रहार के समक्ष हर पहलू पर असहाय और दिशाहीन ही नज़र आया है। जो कभी 1 दिन के जनता कर्फ्यू से 21 दिन के सम्पूर्ण lock-down के बीच ही कहीं घूम रहा है। अभी भी सप्ताहांत 2 दिवसीय lock-down का उद्देश्य और परिणाम जनता को समझाने के आसपास भी नहीं है, इसका अंत कब और किस रूप में होगा इसकी भी रूपरेखा अभी तैयार नहीं की गई है।

फिर भी किसी तरह लुढ़कती, लड़खड़ाती प्रशासन व्यवस्था जहां निसंदेह आम जनता की मुसीबतों को कम करने का प्रयास करती प्रतीत हो रही है, वहीं उत्तराखंड सरकार मानो कोरोना से होड़ लगा के बैठी है कि आम जनता का जीवन ज्यादा मुश्किल कौन‌ करेगा।

उत्तराखंड में बेरोजगारी का परचम तो पहले से ही लहरा रहा था, कोरोना ने आकर उत्तराखंड सरकार के बाकी धागे भी खोल दिए हैं और प्रशासन घुटने पर आ गया है।

Public transport किसी भी प्रशासन की रीढ़ की हड्डी होता है। कोरोना की स्थिति और यातायात की महत्ता को देखते हुए, जहां बाकी राज्य जनता को सहुलियत देते दिख रहे हैं वहीं उत्तराखंड सरकार इस पहलू पर भी आम जनता के शोषण से बाज़ नहीं आई है।

बेरोजगारी ने जहां एक तरफ पहले ही जनता के हौसले पस्त कर रखे हैं वहीं सड़क यातायात का किराया दोगुना कर देने का उत्तराखंड प्रशासन का आदेश जनता के जलते ज़ख्मों पर नमक-मिर्च के लेप से कम नहीं है।

आधी सवारी के साथ दोगुना किराया करने का प्रशासन का निर्णय एक बार को सही भी लगता यदि ज़मीनी हकीकत भी कथित आदेश के समान ही क्रियान्वित हो रही होती।

बात अगर उत्तराखंड रोड़वेज की बसों की की जाये तो ये निर्णय पूर्णोचित और आदेशानुसार क्रियान्वित होता प्रतीत होता है, जिसमें बसे आधी सवारी के साथ चल रही है और किराया दोगुना किया गया है। लेकिन जैसे ही बात निजी बस संचालकों की आती है तो प्रशासन का अलग ही चेहरा देखने को मिलता है।

बात है उत्तराखंड के दो जिलों – नैनीताल और ऊधम सिंह नगर को मिलाने वाले राजमार्ग की, जो काशीपुर- बाजपुर – हल्द्वानी रूट से होकर जाता है। दरअसल इस रुट पर रोडवेज बसों की संख्या गंजे के सिर पर बाल के बराबर है, इसलिए इस रूट का यातायात मुख्यत निजी बस संचालकों पर ही निर्भर करता है।

वैसे तो निजी बस संचालकों के मनमाने किराये से लोग पहले भी परेशान थे, लेकिन किसी ने ये नहीं सोचा होगा कि कोरोना की इस विकट विपत्ति में भी ये लोग यात्रियों की जेब पर डाका डालने से बाज़ नहीं आयेंगे।

Social distancing की समस्त शर्तों व नियमों की धज्जियां उड़ाती ये बसें दिन भर में बिना रोक टोक दर्जनों चक्कर लगाती नजर आ जाती हैं। इन बस संचालकों ने प्रशासन के समस्त निर्देशो में से बस एक ही निर्देश पूर्ण ईमानदारी से माना है, वो है यात्रियों से दोगुना किराया वसूलना

चौंकाने वाली बात तो यह है कि इस रूट पर दर्जनों पुलिस चौकियां, वन चौकियां और चैक पोस्ट पड़ते हैं, जहां से ये बसें बिना रोक टोक यात्रियों से खचाखच रफ्तार भरती हूई चलती रहती हैं। ऐसे में जब प्रशासन खुली आंखों से अंधा होने का ढोंग कर रहा हो तो यात्री किनसे उम्मीद लगाए।

मजबूरी में पिस रही आम जनता के पास इस भयंकर महामारी के बीच महंगाई, बेरोजगारी और भुखमरी का ज़हर रोजाना पीते रहने के अलावा और कोई चारा नज़र नहीं आता। उत्तराखंड प्रशासन कुछ ठोस कदम उठाएगा और आम जनता को कुछ राहत मिलेगी, ये उम्मीद तो शायद उत्तराखंड की जनता ने इस प्रशासन से पहले ही छोड़ दी है।

राम भरोसे चल रहे हमारे उत्तराखंड का कुछ उद्धार हो

हे प्रभु राम! अब आप ही कुछ कर सकें तो कृपा करें।।


(उत्तरापीडिया के अपडेट पाने के लिए फेसबुक ग्रुप से जुड़ें! आप हमें फ़ेसबुक, ट्विटर और यूट्यूब पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं।)

Related posts

उत्तराखण्ड को मिली वन्दे भारत एक्सप्रेस सुपर फ़ास्ट ट्रेन

Uttarakhand: Discover 50 Captivating Reasons to Visit

Discovering the Mystical Rudranath