श्री बद्रीनाथ धाम, उत्तराखंड

Badrinath Dham

श्री बद्रीनाथ धाम, उत्तराखंड के चार धाम में सम्मिलित होने के साथ साथ देश के चार धामों में भी एक है। श्री बद्रीनाथ उत्तराखंड के चमोली जिले में, चमोली से करीब 100 किलोमीटर की दुरी पर अलकनंदा नदी के किनारे स्थित है। यह 2000 वर्ष से भी पुराना तीर्थस्थल है।

बद्रीनाथ मंदिर से जुडी जानकारियाँ

समुद्र तल से 3300 मीटर की ऊंचाई पर  बद्रीनाथ धाम हिन्दुओं और ईश्वर पर आस्था रखने वालों के लिए एक बड़ा तीर्थ स्थल है। भगवान बद्रीनाथ या बद्रीनारायण – भगवान श्री विष्णु जी के अवतार हैं। बद्रीनाथ मंदिर के कपाट प्रतिवर्ष अप्रैल के अंत या मई के प्रथम पक्ष में तीर्थयात्रिओं के दर्शन के लिए खोल दिए जाते हैं। कपाट के खुलने साथ ही यहाँ बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं का यहाँ पहुंचना शुरू हो जाता है।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जब गंगा नदी धरती पर अवतरित हुई, तो यह 12 धाराओं में बंट गई। इस स्थान पर मौजूद धारा अलकनंदा के नाम से विख्यात हुई और यह स्थान बदरीनाथ, भगवान विष्णु का वास बना। भगवान विष्णु की प्रतिमा वाले वर्तमान मंदिर के बारे में मान्यता कि आदि गुरु शंकराचार्य, ने आठवीं शताब्दी में इसका निर्माण कराया था।  

दर्शनार्थी अलकनंदा नदी पर पर  बने पुल को पार कर, श्री बद्रीनाथ मंदिर के दर्शन करते हैं। पुल के निकट पूजन सामग्री की दुकानें हैं। मदिर में वनतुलसी की माला, चने की कच्ची दाल, गिरी का गोला और मिश्री आदि का प्रसाद चढ़ाया जाता है।

मंदिर के ठीक नीचे तप्तकुंड यानी गर्मजल का कुंड हैं। इस कुंड में प्राकृतिक रूप से गर्म जल भूमि में काफी अधिक गहराई से आता है। श्रद्धालु तप्तकुण्ड में स्नान कर मंदिर दर्शन को जाते हैं, महिलाओं और पुरुषों के स्नान के लिए अलग स्थान हैं। तप्त कुंड के जल में गंधक के साथ अन्य खनिज का मिश्रण वाला जल एकत्रित है। ऐसा माना जाता है कि इस जल में कई औषधीय गुण हैं जो कई  त्वचा सम्बन्धी रोगो को  दूर करता है। तप्तकुण्ड में साबुन/ शैम्पू का इस्तेमाल वर्जित है  – तीर्थयात्री यहाँ डुबकी लगाते हैं। अधिक भीड़ अथवा अन्य कारणों से डुबकी न लगा पाने वाले तीर्थयात्री – तप्तकुण्ड का जल अपने ऊपर छिड़क लेते हैं।

तप्तकुण्ड और बद्रीनाथ मंदिर के बीच में,  श्री आदिकेदारेश्वर मन्दिर है। श्री आदिकेदारेश्वर मन्दिर है वही स्थान है जहां पहले केदारनाथ जी प्रतिस्थापित थे। इसका वर्णन स्कन्द पुराण में है जो श्रद्धालु केदारनाथ नहीं जा सकते हैं वे यहां दर्शन लाभ लेते हैं।

बद्रीनाथ के बारे में और बद्रीनाथ का इतिहास 

पौराणिक कथाओं और यहाँ की लोक कथाओं के अनुसार यहाँ नीलकंठ पर्वत के समीप भगवान विष्णु ने बाल रूप में अवतरण किया। यह स्थान पहले शिव भूमि (केदार भूमि) के रूप में व्यवस्थित था। भगवान विष्णुजी अपने ध्यानयोग हेतु स्थान खोज रहे थे और उन्हें अलकनंदा नदी के समीप यह स्थान बहुत भा गया। 

उन्होंने वर्तमान चरणपादुका स्थल पर (नीलकंठ पर्वत के समीप) ऋषि गंगा और अलकनंदा नदी के संगम के समीप बाल रूप में अवतरण किया और क्रंदन करने लगे। उनका रुदन सुन कर माता पार्वती का हृदय द्रवित हो उठा। फिर माता पार्वती और शिवजी स्वयं उस बालक के समीप उपस्थित हो गए। माता ने पूछा कि बालक तुम्हें क्या चहिये? तो बालक ने ध्यानयोग करने हेतु वह स्थान मांग लिया। इस तरह से रूप बदल कर भगवान विष्णु ने शिव-पार्वती से यह स्थान अपने ध्यानयोग हेतु प्राप्त कर लिया। यही पवित्र स्थान आज बदरीविशाल के नाम से सर्वविदित है।

Kedarnath & Badrinath Dham

बदरीनाथ नाम की कथा

जब भगवान विष्णु योगध्यान मुद्रा में तपस्या में लीन थे, शीत ऋतु में बहुत अधिक हिमपात होने लगा। भगवान विष्णु हिम में पूरी तरह डूब चुके थे। उनकी इस दशा को देख कर माता लक्ष्मी का हृदय द्रवित हो उठा, और उन्होंने स्वयं भगवान विष्णु के समीप खड़े हो कर एक बेर (बदरी) के वृक्ष का रूप ले लिया और समस्त हिम को अपने ऊपर सहने लगी। माता लक्ष्मीजी भगवान विष्णु को धूप, वर्षा और हिम से बचाने की कठोर तपस्या में जुट गयीं। कई वर्षों बाद जब भगवान विष्णु ने अपना तप पूर्ण किया तो देखा कि लक्ष्मीजी हिम से ढकी पड़ी हैं। तो उन्होंने माता लक्ष्मी के तप को देख कर कहा कि – हे देवी! तुमने भी मेरे ही बराबर तप  किया है सो आज से इस धाम पर मुझे तुम्हारे ही साथ पूजा जायेगा और क्योंकि तुमने मेरी रक्षा बदरी वृक्ष के रूप में की है सो आज से मुझे बदरी के नाथ-बदरीनाथ के नाम से जाना जायेगा। इस तरह से भगवान विष्णु का  नाम बदरीनाथ पड़ा।

बद्रीनाथ धाम के बारे में एक और कथा कहती है कि नर और नारायण; धरम के दो पुत्र थे, जो अपने आश्रम की स्थापना की कामना करते थे,और विशाल हिमालय पर्वतों के बीच कुछ सौहार्दपूर्ण स्थान पर अपने धार्मिक आधार का विस्तार करना चाहते थे। नर और नारायण वास्तव में दो आधुनिक हिमालय पर्वत श्रृंखलाओं के लिए पौराणिक नाम हैं।
कहा जाता है कि, जब वे अपने आश्रम के लिए एक उपयुक्त जगह की तलाश का कर रहे थे तो, उन्होंने पंच बद्री की अन्य चार स्थलों पर ध्यान दिया अर्थात् ब्रिधा बद्री, ध्यान बद्री,  योग बद्री और भविष्य बद्री। अंत में अलकनंदा नदी के पीछे गर्म और ठंडा वसंत मिला और इसे बद्री विशाल का नाम दिया गया| इसी तरह बद्रीनाथ धाम अस्तित्व में आया।

बद्रीनाथ बद्रीनाथ जिसे विशाल बद्री केनाम से भी जाना जाता है के अलावा उत्तराखंड में चार अन्य बद्री भी विद्यमान हैं, जो योगध्यान बद्री, भविष्य बद्री, वृद्ध बद्री और आदि बद्री हैं।

बदरीधाम कैसे पहुचे 
बदरीधाम तक आप देश के किसी भी हिस्से से हरिद्वार, ऋषिकेश होते हुए पहुच सकते हैं, इसके सबसे करीबी रेलवे स्टेशन गढवाल में ऋषिकेश है और हवाई अड्डा जॉली ग्रांट जो की देहरादून के निकट स्थित है। यहाँ के लिए हरिद्वार ऋषिकुल मैदान से और ऋषिकेश में चंद्रभागा बस स्टैंड से यातायात के साधन जैसे बस या टैक्सी इत्यादि मिल जाते हैं। 
देहरादून  से  बद्रीनाथ  की  दुरी  335 किलोमीटर , हरिद्वार से  315 km और ऋषिकेश से 295 किलोमीटर और नयी दिल्ली से लगभग  526 किमी0।
उत्तराखंड  के  कुमाऊँ  क्षेत्र  से, नजदीकी  रेलवे  स्टेशन  काठगोदाम है। सड़क मार्ग के अलावा हवाई मार्ग से भी बदरीनाथ आया जा सकता है, जिसके लिये देहरादून, हरिद्वार, एवं गौचर से चार्टेड हेलीकाप्टर सेवायें चलती हैं।

बद्री धाम के कपाट खुलने का समय/ कब आयें  – 

श्री बद्रीनाथ धाम और यहाँ पहुंचने का मार्ग वर्ष में लगभग छह महीने नवम्बर से अप्रैल तक बर्फ से ढका रहता है, इसलिए शेष छह माह ही तीर्थयात्रियों के लिए खुलता हैं… और शीतकाल में बर्फ़बारी के चलते  बदरीधाम के कपाट बंद होने के बाद बद्री नारायण जी की पूजा, नरसिंह  मंदिर जोशीमठ में होती है।
आशा है, बद्रीनाथ धाम की यह जानकारी देता लेख आपको पसंद आया होगा, बद्रीनाथ धाम पर बना विडियो देखने के लिए नीचे दिये लिंक पर क्लिक करें।

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