क्या है करवाचौथ की असली कहानी

by कुमार
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करवाचौथ की कथा

एक साहूकार के 7 पुत्र और एक पुत्री थी, एक बार कार्तिक मॉस की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को साहूकार की पत्नी सहित सातों बहुओं और बेटी ने करवाचौथ का व्रत रखा, जब साहूकार के बेटे भोजन करने बैठे तब उन्होंने अपनी बहन से खाने को कहा, तब बहन बोली भाई अभी चाँद नहीं निकला है, चाँद निकलने पर उसे अर्घ देकर ही मैं भोजन करुँगी।

साहूकार के बेटे अपनी बहन से बहुत प्यार करते थे वो अपनी बहन को भूख से व्याकुल नहीं देख पाए और शहर के पास की पहाड़ी पर एक दीपक जला कर चलनी की ओट मैं रख दिया और बहन से बोले देखो बहन चाँद निकल आया है, अब तुम अर्घ देकर भोजन कर लो।

साहूकार की बेटी ने अपनी भाभियों से कहा की देखो चाँद निकल आया है, आप भी अर्घ देकर भोजन कर लो नन्द की बात सुन कर भाभियाँ बोली बाईसा ये तो आपका चाँद निकला है, हमारा चाँद आने में अभी समय है. भूख से व्याकुल वो चाँद को अर्घ देकर भोजन करने बैठ गयी। जैसे ही पहला गास खाया उसे छींक आ गई, दूसरा गास कहते ही उसमे बाल निकल आया और तीसरा गास अभी खाने वाली थी की उसके ससुराल से बुलावा आ गया की पति बीमार है और जिस भी हालत में हो तुरंत ससुराल पहुँचे!

विदा करने के लिए माँ ने जब बक्से से कपडे निकले तो काले कपडे मिले, दूसरी बार कपडे निकल तो सफ़ेद कपडे मिले और तीसरी बार जब फिर बक्से मैं हाथ दिया तो फिर काले कपडे मिलें. बेटी बोली माँ तुम ये सब रहने दो, मैं जाती हूँ
माँ घबराकर बेटी से बोली रास्ते मैं जो भी छोटा बड़ा मिले सबके पैर पड़ती जाना, जो भी बूढ़ सुहागन होने का आशीर्वाद दे वहीं अपने पल्ले में गांठ बांध लेना बेटी बोली ठीक है और वो अपने ससुराल को चल दी..रस्ते मैं उसे जो भी मिला वो सबके पाँव छुते गयी, सबने सुखी रहो.. पीहर का सुख देखो.. ख़ुश रहो.. ये आशीर्वाद दिया!

ऐसे ही वो अपने ससुराल पहुँच गयी ससुराल के दरवाजे पर छोटी नन्द खेल रही थी जब उसके पाँव छुए तो उसने आशीर्वाद दिया सदा सौभाग्यवती रहो, पुत्रवती हो.. ये सुनते ही साहूकार की लड़की ने अपने पल्ले से गांठ बांध ली! घर मैं अंदर गई तो उसने देखा की उसका पति मरा हुआ जमीं पर लेटा है और उसे ले जाने की तयारी हो रही है, वो बहुत रोइ, बहुत चिल्लाई जैसे ही उसे ले जाने लगे वो रोती चिल्लाती बोली मैं इन्हे लेजाने नहीं दूंगी।
फिर भी जब कोई न माना तो बोली मैं भी साथ मैं जाउंगी, नहीं मानी तो सब बोले ले चलो साथ वो भी साथ-साथ शमशान मैं चली गयी जब उसके पति के अंतिम संस्कार का समय आया तो बोली मैं इन्हे नहीं जलने दूंगी, सब बोले पहले तो पति को खा गयी अब उसकी मिटटी भी खराब कर रही है लेकिन वो नहीं मानी और अपने पति को लेकर बैठ गयी।
गाँव के और परिवार के सभी बड़े लोगों ने ये निर्णय लिया की इसे यहाँ रहने दो इसके लिए एक झोपडी बनवा दो, वो वहाँ अपने पति को लेकर रहने लगी अपने पति की साफ़ सफाई करती और उसके पास बैठी रहती उसकी छोटी नन्द दिन मैं दो बार आकर उसे खाना दे जाती थी और वह हर चौथ का व्रत करती थी।

चाँद को अर्घ देती जोत देखती और जब चौथ माता यह कहती हुई आती की करवो ले..करवो ले..भाइयों की प्यारी करवो ले, घणी बुखारों करवो ले.. तो वह चौथ माता से अपने पति के प्राण मांगती पर चौथ माता उसे ये कहती हमसे बड़ी चौथ माता आएगी तब उनसे अपने पति के प्राण मांगना ऐसे एक एक करके सभी चौथ माता आयीं और यही कहे कर चली गयीं , अश्विन की चौथ माता बोली तुझसे कार्तिक की चौथ माता नाराज हैं , वो ही तेरा सुहाग लौटाएंगी जब कार्तिक की सबसे बड़ी चौथ करवाचौथ आयी तो उसने अपनी छोटी नन्द से सोलह श्रृंघार का और सुहाग का सामान मंगवाया और करवे मंगवाए, सास ने सोचा पागल हो गयी है।

जो मांगती है दे आओ साहूकार की बेटी ने करवाचौथ का व्रत रखा चाँद निकलने पर अर्घ दिया चौथ माता की जोत करी, जब चौथ माता प्रकट हुई और बोली करवो ले करवो ले भाइयों की प्यारी करवो ले दिन में चाँद उगने वाली करवों ले घणी बुखारी करवो ले तब साहूकार की लड़की ने माता के पैर पकड़ लिए और बोली माता मेरा सुहाग वापस करो।

चौथ माता बोली तू तो बड़ी भूखी है, सात भाइयों की प्यारी बहन है, तुझे सुहाग से क्या काम साहूकार की लड़की बोली नहीं माता मैं आपके पैर तब तक नहीं छोडूंगी जब तक आप मेरा सुहाग वापस नहीं करती, चौथ माता ने सुहाग का सारा सामान माँगा तो उसने एक-एक कर सोलह श्रृंगार का सारा सामान चौथ माता को दे दिया, चौथ माता ने अपनी आंखों से काजल निकला नाखूनों से मेहँदी निकली मांग से सिन्दूर निकला और चिटकी ऊँगली का छींटा दिया उसका पति जीवीत हो गया और चौथ माता जाते जाते उसकी झोपडी में लात मार गयी जिससे उसकी झोपडी महल बन गयी और उसका पति जीवित हो गया।

जब छोटी नन्द खाना लेकर आयी तो देखा भाभी की झोपडी की जगह तो महल खड़ा है, वो नन्द को देखते ही दौड़ी-दौड़ी उसके पास आयी और बोली देखो बाईसा आपका भाई वापस आ गया है, घर जाओ और सासु जी से कहो की गाजे-बाजे के साथ हमे लेने आएं छोटी नन्द, माँ के पास जा कर बोली माँ माँ भाई जिन्दा हो गया!

तो सास ने कहा तेरा भी उस भाबी के साथ साथ दिमाग ख़राब हो गया है नन्द बोली नहीं माँ मैंने देखा है भाई सुच , में जिंदा हो गया है भाभी ने गाजे बाजे के साथ बुलाया है सभी घर वाले गाजे बाजे के साथ अपने बेटे को लेने पहुँचे बेटे को जिंदा देख क्र सास बहु के पैर चुने लगी और बहु सास के पैर चुने लगी और वो बोली देखो माता जी आपका बेटा वापस आ गया और सास बोली मैंने तो साल भर पहले ही इसे भेज दिया था वो तू ही थी जिसके भाग्य से ये वापस आया है।

हे चौथ माता जैसे साहूकार की बेटी के साथ हुआ ऐसा किसी के साथ न हो सभी को खुशाल जीवन प्राप्त हो बोलो चौथ माता की जय



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