अल्मोड़ा से तकरीबन 75 किलोमीटर की दूरी पर है विश्वप्रसिद्ध देवीधुरा का मंदिर यहां प्राचीन काल से बग्वाल खेली जाती है |

रक्षाबंधन के दिन यहां बग्वाल खेलने की प्रथा है  यहां फलों से और पत्थरों से एक दूसरे को मारा जाता है  यह मंदिर चंपावत में स्थित है  |

लाखों लोगों की मौजूदगी में होने वाली बग्वाल में 4 खामों चम्याल, गहरवाल, लमगड़िया और वालिग के अलावा सात थोकों के योद्धा फरों के साथ हिस्सा लेते हैं |

रक्षाबंधन पर्व पर यहां देश ही नहीं विदेश से भी दर्शक इस बग्वाल को देखने के लिए आते हैं |

इनकी टोलियाँ ढोल, नगाड़ो के साथ किंरगाल की बनी हुई छतरी जिसे छन्तोली कहते हैं, सहित अपने-अपने गाँवों से भारी उल्लास के साथ देवी मंदिर के प्रांगण में पहुँचती हैं ।

सिर पर कपड़ा बाँध हाथों में लट्ठ तथा फूलों से सजा फर्रा-छन्तोली लेकर मंदिर के सामने परिक्रमा करते हैं । इसमें बच्चे, बूढ़े, जवान सभी बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते हैं ।

देवीधुरा में वाराही देवी मंदिर के प्रांगण में प्रतिवर्ष रक्षावन्धन के अवसर पर श्रावणी पूर्णिमा को पत्थरों की वर्षा का एक विशाल मेला जुटता है ।

बताया जाता है कि यहां पहले नर बलि दी जाती थी  जब गांव की एक बुजुर्ग महिला के बेटे की बारी आई, तो उस महिला ने देवी मां की तपस्या की देवी ने महिला को बताया कि नर बलि न देकर एक व्यक्ति के बराबर रक्त होना चाहिए |

तबसे लेकर अभी तक इस बग्वाल में लोग फलों और पत्थरों से खेलते हैं जब तक लोगों को चोट नहीं लग जाती और उनके खून नहीं निकल जाता, तब तक बग्वाल खेली जाती है |

वैसे देवीधुरा का वैसर्गिक सौन्दर्य भी मोहित करने वाला है, इसीलिए भी बगवाल को देखने दूर-दूर से सैलानी देवीधुरा पहँचते हैं ।