जब भी बात देवभूमि उत्तराखंड की आती है तो वहा के व्यंजनों को भी खूब पसंद किया जाता है फिर चाहे बात झंगुरे की खीर की हो या मंडुवे की रोटी और तिल की चटनी की या हो बात भांग की चटनी की..
उत्तराखंड का पारंपरिक खानपान गुणवत्ता और स्वास्थ्य की दृष्टि से बेहद लाभकारी माना गया है। भारत ही नहीं विदेशों में भी पहाड़ के मंडुवा, झंगोरा, काले भट, गहथ, तिल आदि अपनी मार्केट बना रहे हैं।
आयुर्वेदिक चिकित्सक बताते हैं कि पहाड़ी अनाज सेहत के लिए बेहद फायदेमंद हैं। मंडुवा मधुमेह की बीमारी में बेहद कारगर है। यह शरीर में चीनी की मात्रा नियंत्रित कर रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है।
झंगोरा पेट संबधी बीमारियों को दूर करता है। काले भट में प्रोटीन की प्रचुर मात्रा होती है। गहथ की दाल की तासीर गर्म होने के कारण यह गुर्दे की पथरी में बेहद फायदेमंद है।
मंडवे की रोटी
मंडवे की रोटी गढ़वाल में सबसे अधिक खाया जाने वाला प्रमुखता लिए..गढ़वाल के वोग अक्सर चूहले में मंडवे की मोटी-मोटी रोटी बनाते है और तिल या भांग की चटनी के साथ बड़े चाव से खाते है |
झंगुरे की खीर
झंगुरे की खीर चावल की खीर जैसी ही होती है अंतर ये होता है कि झंगुर महीन और बारीक दाने के रुप में होता है और आसानी से खाया जा सकता है। पहाड़ो में झंगुरे को चावल के जैसा पकाकर दाल-सब्जी के साथ भी खाया जाता है।
भांग की चटनी
आप अगर गढ़वाल में हैं और चाहे किसी भी तरह का भोजन कर रहे हैं। भांग की चटनी इसे और स्वादिष्ट बनाती है। इसका खट्टा-नमकीन-तीखा फ्लेवर सभी तरह के परांठे और मंडवे की रोटी के साथ जबरदस्त स्वाद देता है।
गहत के परांठे
सुबह के नाश्ते के लिए गहत की दाल के परांठे गढ़वाल में बहुत ही प्रसिद्ध हैं। तासीर से गर्म गहत पहाड़ी मौसम के लिहाज से भी लाभदायक है। भांग की चटनी के साथ इसका स्वाद और निखर जाता है।
लोग गहत की दाल को भूनकर भी खाना पसंद करते हैं। आमतौर पर इसके लिए मंडवे के आटे का इस्तेमाल होता है।