Uttarakhand : कुमाऊ के प्रवेश द्वार के बारे में कुछ रोचक बाते !

काठगोदाम (Kathgodam) उत्तराखंड राज्य के कुमाऊं मंडल के नैनीताल जिले में हल्द्वानी शहर से लगा हुआ नगर है। काठगोदाम (Kathgodam) इसे ऐतिहासिक तौर पर कुमाऊँ का प्रवेश द्वार (Gateway to Kumaun) कहा जाता है।

यह नगर पहाड़ के निचले हिस्से में बसा है, जंगलों से घिरे उत्तराखंड में लकड़ी के व्यापार के लिए बने काठ के गोदामों के कारण उसका नाम काठगोदाम पड़ गया था। लेकिन अब बड़ी बड़ी इमारतों तले काठ के गोदाम कही गुम हो चुके हैं।

काठगोदाम का इतिहास (History of Kathgodam) टिंबर किंग के नाम से मशहूर रहे दान सिंह बिष्ट उर्फ दान सिंह ‘मालदार’ ने कभी चौहान पाटा में लकड़ी के कई गोदाम बनाए थे। दान सिंह ‘मालदार’ मूल रूप से पिथौरागढ़ के वड्डा के रहने वाले थे। उनका लकड़ी का बड़ा कारोबार था।

दान सिंह बिष्ट उर्फ़ दान सिंह ‘मालदार’ (Dan Singh Maldar) उत्तराखण्ड के कुमाऊँ मंडल के अरबपति कारोबारी थे. ब्रिटिश भारत में उन्हें ‘भारत के टिम्बर किंग’ (Timber King of India) के नाम से भी जाना जाता था |

 काठगोदाम “कुमाऊ का प्रवेश द्वार (Gateway of Kumaun)” है और पूर्वोत्तर रैलीवे का अंतिम स्टेशन भी। जैसे गढ़वाल का द्वार कोटद्वार जो की पौड़ी गढ़वाल जिले में है।

काठगोदाम (Kathgodam) यहां से पहाड़ियां शुरू हो जाती हैं, इसलिए यह तीर्थ स्थलों और पर्यटन स्थलों को जाने बाले श्रद्धालुओं व सैलानियों के लिए सड़क मार्ग का प्रस्थान बिंदु भी है।

नैनीताल के निचले हिस्से में गौला (गार्गी /किच्छा) नदी के तट पर बसा काठगोदाम 1901 तक 375 की आबादी वाला छोटा-सा गांव हुआ करता था और इसके आसपास बड़े बड़े घने जंगल थे।

1884 में अंग्रेज ने हल्द्वानी में और फिर कुछ समय बाद काठगोदाम (Kathgodam) तक के लिए रेल लाइन बिछाईं। तब से इस जगह का व्यावसायिक महत्व काफी बढ़ गया है और अब यह अपने साफ़ स्वच्छ पर्यटन के लिए जाना जाता है।