ठेका -जहाँ न अमीरी गरीबी, न जात-पात, न भेद भाव :-)

by Rajesh Budhalakoti
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wine shop

मित्रो फ़ायदे हो चाहे हजारो लाखो का  नुकसान हो पर राजमार्गो के ठेके बन्द होने से एक शून्य तो अवश्य व्याप्त हो गया है। एक सुनसानी का आलम, न कोई हलचल न कोई रौनक, एक उदासी सी छा गयी है।

पहले मुखानी चौराहे से अपने कठघरिया के लिये चलते थे तो गाड़ियों की चे-पे के बीच ऊँचा पुल के बाद नमन मॉल से पहले की रोड का हिस्सा आते ही ऐसा लगता था कि यहाँ पर जीवन है, कोई मेला चल रहा है, उत्सव का सा माहोल है।

ये कोई एक दिन नहीं वरन साल भर बस गाँधी जयन्ती, पन्द्रह अगस्त छोड़ कर बारहों मास चलता था। लोग थके हो, जल्दी मे हो, इत्मिनान से, किसी भी मूड मे आते नोट के साथ खिड्की मे हाथ डालते, पव्वा, अद्धा, बोतल प्राप्त कर खुशी के भाव के साथ नजदीक मे उपलब्ध सर्वोतम चखना जो अंडे, मछली, नमकीन से लेकर पास वाले ठेले की चाऊमीन, मोमो अपनी अपनी जेबानुसार खरीदते और शुरु हो जाता सोम रस सेवन।

यहाँ पर यह बताना जरुरी है कि चखने पर कितना खर्च किया जायेगा, ये शराबी की मनोदशा पर निर्भर करता है कोई शराब से ज्यादा पैसा चखने पर खरचता है तो कोई शराब पर अधिक चखने पर कम खर्च करता है। कोई कोई तो पूरी की पूरी बोतल, नमक, नीबू के साथ पी जाते है। किसी को एक पेग के लिये मुर्गे की एक टांग चाहिए।

जनाब पोस्ट ओफ़िस, बैंक की भीड़ देखी, रेलवे और बस स्टेशन की भीड़ भी हमने देखी लेकिन जितना अनुशाशन और सुव्यवस्था ठेके पे देखा कही और नही पाया। छोटा हो बडा हो अमीर हो गरीब हो सब एक लाईन मे – नोट लिये खडे मिलेंगे, चाहे कार वाला हो या साईकल वाला सब एक कतार मे न कोई छोटा न कोई बडा। पहले से ही तय क्या लेना है, रम विस्की या बीयर, पव्वा, अद्धा या बोतल ठीक उतने पैसे हाथ मे लिये निर्विकार भाव से बारी का इंतजार और बोतल हाथ मे आने पर सम्पूर्ण संतुष्टि का भाव मानो मन मांगी मुराद पूरी हो गयी हो।

अब होती है मनोयोग से अर्चना ग्लास मे डाल पीने से पहले कुछ छीटे संसार के पालक को अर्पण कर, आँखें मूंद हाथों जोड, बुद्बुदा के पीने से पहले प्रर्थना कर, कोई धीरे धीरे कोई एक सांस मे श्रद्वानुसार सेवन प्रारम्भ करता है।

एक पेग दो पेग उसके बाद जनाब इन्सान का मूड बदल जाता है जीने का अन्दाज बदल जाता है, अपने शराबी मित्र के प्रति उसका प्रेम, अपने ग्लास से उसे एक पेग पीलाकर त्याग, उसके लिये सारी दुनिया से टकरा जाने का वादा, उसे अपने सगे भाई से बडा दर्जा देकर कुछ भी मांग लेने का आग्रह और पूरा करने का वादा, आपको कहा मिलेगा।

कोई बहुत खुश तो कोई दुखी किसी को बचपन मे बिछुड़ी प्रेमिका की याद, तो कोई कसम खाते मिलेगा कि बस आज के बाद दारू बन्द, दारू पीऊंगा तो एक बड़ी सी कस, जनाब क्या बताऊँ कि  जीवन का कौन सा रंग यहा पर नही मिलता था।  कोई गुस्सैल अमिताभ बच्चन, तो कोई दीन हीन सन्जीव कुमार। कोई खुशी मे पीता था तो कोई गम मे, कोई इंतजार मे तो कोई जुदाई मे और कोई तो बगेर किसी कारण पीते नजर आते थे।

कुछ उदास आशिक जीने के लिये पीते भी नजर आते थे।  धर्म जात पात का कोई बन्धन नही, सारे शराबी भाइ एक साथ ,एक ही ठेके से मदिरा पान करते हुए।

खैर जनाब हमारी प्रदेश सरकार ने इनका दुख दर्द समझा और अपने सबसे योग्य अफ़सरो को इस कार्य पर लगाया कि रास्ते निकाले जा सके, ताकि ठेको की पुरानी रौनक वापस लौटे और शराबी भाईयो के चेहरे खिल सकें। हर गली और मोहल्ले, मन्दिर और मस्जिद, स्कूल या विद्यालय के पास एक ठेका हो, ताकी शराबी चाहे जहा भी हो आराम से पी सके और दूसरे का चैन हराम कर जी सके…

और हाँ, अब तो सुना राशन की दुकानो पर भी मिला करेगी….


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