भारत की आखिरी चाय की दुकान – माणा

by Popcorn Trip
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बद्रीनाथ धाम से लगभग तीन किमी आगे समुद्रतल से 3,111 मीटर की उचाई पर बसा, गुप्त गंगा और अलकनंदा के संगम पर, भारत-तिब्बत सीमा से लगा है – भारत का अंतिम गाँव माणा। बद्रीनाथ जी के दर्शन करने वाले श्रद्धालु इस गांव की खूबसूरती का आनंद उठाने भी यहाँ आते हैं। भारत की उत्तरी सीमा पर स्थित इस गाँव के आसपास कई दर्शनीय स्थल हैं, जिनमें हैं – व्यास गुफा, गणेश गुफा, सरस्वती मन्दिर, भीम पुल, वसुधारा आदि मुख्य हैं।

माणा गाँव की जानकारी देता  विडियो देखें  ?

माणा में कड़ाके की सर्दी पड़ती है। यह एक छोटा सा गांव है, जहां के लोग मई से लेकर अक्तूबर तक इस गांव में रहते हैं, इसके बाद गांव को छोड़कर कहीं और चले जाते हैं क्योंकि बाकी समय यह गांव बर्फ से ढका होता है। सर्दियां शुरु होने से पहले यहां रहने वाले अधिकतर ग्रामीण नीचे स्थित चमोली जिले के गाँवों में अपना बसेरा करते हैं। आपको जानकर हैरत होगी कि यहां का एकमात्र इंटर कॉलेज छह महीने माणा में और छह महीने चमोली में चलाया जाता है। अप्रैल-मई में जब यहाँ बर्फ पिघलती है, तब यहां की हरियाली देखने लायक होती है। यहाँ की मिट्टी आलू की खेती के लिए सबसे अच्छी मानी जाती है। जौ जिससे आटा बनता है, यहाँ होने वाली प्रमुख फसलों में हैं। हिमालय क्षेत्र में मिलने वाली अचूक जड़ी-बूटियों के लिए भी माणा गाँव बहुत प्रसिद्ध है।

इनके अलावा यहां भोजपत्र भी बड़ी संख्या में पाए जाते हैं, जिन पर हमारे महापुरुषों ने अपने ग्रंथों की रचना की थी।

खेत जोतने के लिए यहां के लोग पशु-पालन भी करते हैं। पहले भेड़-बकरियाँ काफी संख्या में पाली जाती थीं लेकिन जाड़ों में उन्हें निचले क्षेत्रों में ले जाने वाली परेशानी को देखते हुए उनकी संख्या काफी कम हो गई है।

ज्यादातर घर दो मंजिलों पर बने हुए हैं और इन्हें बनाने में लकड़ी का ज्यादा प्रयोग हुआ है। छत पत्थर के पटालों की बनी है। इन घरों की खूबी ये है कि इस तरह के मकान भूकम्प के झटकों को आसानी से झेल लेते हैं। इन मकानों में ऊपर की मंज़िल में घर के लोग रहते हैं जबकि नीचे पशुओं को रखा जाता है।

इस गांव में एक ऊंची पहाड़ी पर बहुत ही सुन्दर गुफा है, ऐसी मान्यता है कि व्यास जी इसी गुफा में रहते थे। वर्तमान में इस गुफा में व्यास जी का मंदिर बना हुआ है। व्यास गुफा में व्यास जी के साथ उनके पुत्र शुकदेव जी और वल्लभाचार्य की प्रतिमा है। इनके साथ ही भगवान विष्णु की भी एक प्राचीन प्रतिमा है। व्यास गुफा के बारे में कहा जाता है कि यहीं पर वेदव्यास ने पुराणों की रचना की थी और वेदों को चार भागों में बाँटा था। यहाँ के बारे में ऐसी मान्यता है कि गणेश जी ने वेद व्यास के मुख से निकली वाणी को ग्रन्थों में लिपिबद्ध किया था।

वेदव्यास जी ने जब महाभारत महाकाव्य की रचना शुरू की तब उन्होंने न सिर्फ गणेश जी का स्मरण किया, बल्कि गणेश जी को इस बात के लिए भी तैयार कर लिया कि आप महाभारत खुद अपने हाथ से लिखें। गणेश जी ने कहा कि मैं महाभारत लिख तो दूंगा लेकिन आप लगातार कथा बताते रहना होगा अन्यथा यदि आपकी कथा रुकी तो मेरी लेखनी तो रुकेगी ही साथ ही मैं लेखन का कार्य भी छोड़ दूंगा। फिर आपकी कथा पूर्ण हो या अधूरी। तदनुसार व्यास जी ने भी नियम का पालन किया। पहले महाभारत का नाम जय गाथा था। कहा जाता है कि यहां स्थित गुफा में रहकर वेदव्यास जी ने सभी पुराणों की रचना भी की थी। व्यास गुफा को बाहर से देखकर ऐसा लगता है मानो कई ग्रंथ एक दूसरे के ऊपर रखे हुए हैं। इसलिए इसे व्यास पोथी भी कहते हैं।

अंतिम छोर पर व्यास गुफा के पास एक बहुत ही सुंदर बोर्ड लगा है. “भारत की आखिरी चाय की दुकान”। जी हां, इस बोर्ड पर यही लिखा हुआ है। इसे देखकर हर सैलानी और तीर्थयात्री इस दुकान में चाय पीने के लिए जरूर रुकते हैं। इस दुकान में आपको साधारण चाय से लेकर माणा में पी जाने वाली नमकीन गरम चाय, वन तुलसी की चाय आदि भी मिल जाएंगी।

इसके पास ही है भीमपुल। कहा जाता है कि जब पांडव स्वर्ग को जा रहे थे तो उन्होंने इस स्थान पर सरस्वती नदी से जाने के लिए रास्ता मांगा, लेकिन सरस्वती ने उनकी बात को अनसुना कर दिया और मार्ग नहीं दिया। ऐसे में महाबली भीम ने दो बड़ी शिलाएं उठाकर इसके ऊपर रख दीं, जिससे इस पुल का निर्माण हुआ। पांडव तो आगे चले गए और आज तक यह पुल मौजूद है। यह भी एक रोचक बात है कि सरस्वती नदी यहीं पर दिखती है, इससे कुछ दूरी पर यह नदी अलकनंदा में समाहित हो जाती है। इस बारे में भी कई मान्यताएं हैं,
जिनमें से एक यह है कि महाबली भीम ने नाराज होकर गदा से भूमि पर प्रहार किया, जिससे यह नदी पाताल लोक चली गई।
दूसरी मान्यतता यह है कि, जब गणेश जी वेदों की रचना कर रहे थे, तो सरस्वती नदी अपने पूरे वेग से बह रही थी और बहुत शोर कर रही थी। आज भी भीम पुल के पास यह नदी बहुत ज्यादा शोर करती है। गणेश जी ने सरस्वती जी से कहा कि शोर कम करें, मेरे कार्य में व्यवधान पड़ रहा है, लेकिन सरस्वती जी नहीं मानीं। इस बात से नाराज होकर गणेश जी ने इन्हें श्राप दिया कि आज के बाद इससे आगे तुम किसी को नहीं दिखोगी।

वसुधारा- माणा से लगभग 5 किमी की दूरी पर बसुधारा प्रपात है यहां पर जलधारा 500 फीट की ऊंचाई से गिरती है। कहा जाता है यहां अष्ट वसुओं ने तपस्या की थी।कहते हैं की जिसके ऊपर इसकी बूंदें पड़ जायें उसके समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं।

सतोपंथ (स्वर्गारोहिणी)– इस स्थान से राजा युधिष्ठिर ने सदेह स्वर्ग को प्रस्थान किया था। इसे धन के देवता कुबेर का भी निवास स्थान माना जाता है। यहां पर सतोपंथ झील है जो बदरीनाथ धाम से 24 किमी. दूर है। यहीं से अलकनंदा नदी का उद्गम होता है।

आशा है आपको यह जानकारी पसंद आई होगी, धन्यवाद। बद्रीनाथ धाम की जानकारी देता विडियो देखें ?


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