क्योंकि बीता हुआ कल वापस नहीं आता- श्राद्ध स्पेशल स्टोरी

by Sunaina Sharma
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आज मैं आपको पित्र पक्ष और श्राद्ध से संबंधित कहानी बताऊंगी, जिसमें तीन किरदार हैं – पहला किरदार है अम्मा जी, जो बहुत बीमार है। चलने-फिरने की हालत में नहीं है, अपना कोई भी कार्य स्वयं कर पाने में असमर्थ है और दूसरा किरदार उस बीमार अम्मा जी  की बहू( मां जी) और तीसरा किरदार मां जी की बहू ( नई नवेली दुल्हन) का है, जो कुछ ही दिनों पहले शादी करके घर में आई है। मतलब यह कहानी तीन पीढ़ियों की बहुओं की है। आइए अब कहानी की शुरुआत करते हैं। –

एक आलीशान घर में एक बूढ़ी स्त्री बहुत बीमार है और वह चारपाई पर लेटी है, अपना कोई भी कार्य कर पाने में असमर्थ है, यहां तक कि वह अपने दैनिक जरूरी कार्य, नित्य क्रिया भी स्वयं से नहीं कर पाती है। बूढ़ी स्त्री को प्यास लगती है और क्योंकि वह बीमार है, अपने बिस्तर से उठ नहीं पाती है पानी पीने के लिए, इसलिए वह अपनी चारपाई के पास रखे गिलास से चारपाई को ठक-ठक करती है। वह यह प्रक्रिया कई बार करती है। लेकिन उस बूढ़ी स्त्री की बहू( मां जी) फोन पर किसी से बात करने मे व्यस्त होती है, तो रसोई घर में से नई नवेली बहू की आवाज आती है की मां जी….अम्मा जी को जाकर देख लीजिए, क्या चाहिए उन्हें? बहुत देर से बुला रही हैं। मैं खाना बना रही हूं व्यस्त हूं।

तब नई नवेली बहू की सासू मां (मां जी) बोलती है- ठीक है बहू जाती हूं।

(फोन पर बात करने वाला व्यक्ति यह बातें सुन रहा होता है)

फोन पर बात करने वाला व्यक्ति- क्या अभी अम्मा जी ठीक नहीं हुई है?

मां जी (फोन पर बात करते हुए)– अरे अम्मा जी कहां ठीक होने वाली है, बुढ़िया ना जीती है ना मरती है, पूरे घर के नाक में दम कर रखा है। ठीक है, मैं फोन रखती हूं, थोड़ी देर में बात करती हूं, बुढ़िया की बात सुनकर आती हूं।

(बुजुर्ग महिला अभी भी चारपाई पर गिलास से ठक ठक कर रही होती है।)

माां जी(सीढ़ियों सेे नीचे उतरते हुए)– अरे बुढ़िया आ गई मैं, क्या शोर मचा रखा है इतनी देर से।

Pic credit- dreamstime.com

(बुढ़िया ठक ठक करना बंद कर देती हैं, और किसी के समय से ना आने पर बुजुर्ग महिला ने बिस्तर गीला कर दिया होता है)

मां जी- अरे बुढ़िया…कितना गंद मचा रखा है, पूरा घर तो इस बुढ़िया ने गंदा कर रखा है, कब मरेगी यह बुढ़िया जो घर का गंद साफ होए।

नई नवेली बहू- मां जी…अम्मा जी के लिए खिचड़ी बना दूं? उनकी तबीयत खराब है, उनसे रोटी नहीं खाई जाएगी।

मां जी- अरे बहू…क्या खिचड़ी बनाएगी, बुढ़िया को खाना तो 2 ही चम्मच होता है, बाकी तो पूरा फेंका ही जाएगा, रहने दे दाल तो है ही, वह दाल से ही रोटी खा लेंगी।

एक हफ्ते बाद बुजुर्ग महिला (अम्मा जी) की मृत्यु हो जाती है।
(तब आता है पितृपक्ष- श्राद्धो के दिन)

मां जी- अरे बहु शुक्रवार को अम्मा जी का श्राद्ध है, जरा बक्से में रखे हुए उनके लिए नए कपड़े निकाल कर लाना, और हां आज खीर पूड़ी और चने की सब्जी और गुलाब जामुन भी बना लेना अम्मा जी को बहुत पसंद थे, और कौवे को भी भोजन कराना है।
नई नवेली बहू- मां जी, क्या श्राद्ध करना जरूरी है? अगर हम श्राद्ध नहीं करें तो क्या होगा?
मां जी- अरे बहु पागल हो गई है, कैसी बातें कर रही है, श्राद्ध करना बहुत जरूरी होता है। इससे हमारे पूर्वज, बड़े-बुजुर्ग खुश रहते हैं और हम पर आशीर्वाद बनाए रखते हैं, घर में खुशहाली और संपन्नता रहती है।
नई नवेली बहू- अरे मां जी, फिर तो अम्मा जी मरने के बाद ही ज्यादा खुश होंगी।
मां जी- वो कैसे?
नई नवेली बहू- मां जी, जब अम्मा जी जिंदा थी, इस दुनिया में थी, तब उनसे रोटी नहीं खाई जा रही थी, तो मैंने खिचड़ी बनाने के लिए आपसे पूछा था, तब आपने कहा था- बुढ़िया दो चम्मच खिचड़ी खाएगी बाकी तो सब बेकार जाएगी तो खिचड़ी क्या बनाना, अम्मा जी रोटी-दाल ही खा लेंगी। लेकिन मरने के बाद अब उनके लिए स्वादिष्ट भोजन बनाया जा रहा है, उनके नाम पर नए कपड़ेेेे दान दिए जा रहे हैं, तब तो वह मरने के बाद ही खुश होंगी!
नई नवेली बहू की यह बातें सुनकर सासू मां (मां जी) की आंखें खुल जाती हैं और वह बहुत देर तक अपनी गलती पर पछतावा करती सोचती कि, कहीं  मेरी बहू भी मेरे साथ ऐसा ही तो नहीं करेगी! जैसा मैंने अपनी सासू मां के साथ किया!

लेकिन अब बहुत देर हो चुकी होती है। पछतावा करने से बीता हुआ समय वापस नहीं आ सकता, इसलिए दोस्तों हमें कोशिश करनी चाहिए कि इंसान जब तक हमारे साथ है, तब तक हम उसको उसकी खुशी दे सके, दुनिया छोड़ने के बाद तो किसको क्या पता कि कौन कहां जाता है! उम्मीद है आपको मेरी कहानी अच्छी लगी होगी और आप भी अपने घर के बड़े-बुजुर्गों की सेवा पूरे मान-सम्मान के साथ करेंगे, क्योंकि बीता हुआ कल वापस नहीं आता।


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