उत्तराखंड के चमोली में स्थित रुद्रनाथ महादेव मंदिर

by Ranjeeta S
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Rudranath_Temple

रुद्रनाथ मंदिर भगवान शिव को समर्पित एक ऐसा मंदिर है जहाँ केवल उनके मुख की पूजा की जाती है। यह विश्व का एकमात्र ऐसा मंदिर हैं जहाँ केवल शिव के मुख की पूजा की जाती है जबकि बाकि शरीर की पूजा नेपाल के पशुपतिनाथ मंदिर में की जाती है। इसके पीछे महाभारत के समय की एक रोचक कथा जुड़ी हुई है।

रुद्रनाथ मंदिर उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र के चमोली जिले के जंगलों व पहाड़ों के बीच में एक गुफा में स्थित है। यह मंदिर भगवान शिव के पंच केदारों में चतुर्थ केदार है जिसकी चढ़ाई सबसे लंबी है।

रुद्रनाथ मंदिर, चमोली, उत्तराखंड

रुद्रनाथ मंदिर का इतिहास

मान्यता है कि इस मंदिर का निर्माण महाभारत के समय में पांडवों के द्वारा किया गया था। रुद्रनाथ मंदिर के निर्माण की कथा के अनुसार जब पांडव महाभारत का भीषण युद्ध जीत गए थे तब वे गोत्र हत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए भगवान शिव के पास गए लेकिन शिव उनसे बहुत क्रुद्ध थे।

इसलिए शिवजी बैल का अवतार लेकर धरती में समाने लगे लेकिन भीम ने उन्हें देख लिया। भीम ने उस बैल को पीछे से पकड़ लिया। इस कारण बैल का पीछे वाला भाग वही रह गया जबकि चार अन्य भाग चार विभिन्न स्थानों पर निकले। इन पाँचों स्थानों पर पांडवों के द्वारा शिवलिंग स्थापित कर शिव मंदिरों का निर्माण किया गया जिन्हें हम पंच केदार कहते हैं।

पंच केदार में रूद्रनाथ है चौथा केदार

रुद्रनाथ मंदिर में भगवान शिव के बैल रुपी अवतार का मुख प्रकट हुआ था। बैल का जो भाग भीम ने पकड़ लिया था वहां केदारनाथ मंदिर स्थित हैं। अन्य तीन केदारों में मध्यमहेश्वर (नाभि), तुंगनाथ (भुजाएं) व कल्पेश्वर (जटाएं) आते हैं। रुद्रनाथ मंदिर को पंच केदार में से चतुर्थ केदार के रूप में जाना जाता है।

रुद्रनाथ मंदिर का भूगोल

यह मंदिर उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र के अंतर्गत आता है। यह चमोली जिले के सगर गाँव से 20 किलोमीटर दूर हैं जहाँ का रास्ता पैदल चलकर पार करना पड़ता हैं।

मंदिर का मार्ग अल्पाइन व बुरांस के जंगलों और पेड़ों से घिरा हुआ है जहाँ आपको असंख्य पेड़, पुष्प, पशु-पक्षी देखने को मिलेंगे। मंदिर की चढ़ाई में प्राकृतिक झरने व गुफाएं भी देखने को मिलेंगी। इसकी चढ़ाई के मार्ग को उत्तराखंड का बुग्याल क्षेत्र कहते है। मंदिर भी एक गुफा के अंदर ही स्थित हैं जो इसे सबसे अलग रूप प्रदान करती है।

रुद्रनाथ मंदिर की सरंचना

इसे रुद्रनाथ मंदिर का रहस्य कहा जाये या कुछ और लेकिन यहाँ पर स्थापित शिवलिंग सभी के लिए किसी रहस्य से कम नही है। प्राचीन कथा के अनुसार यहाँ शिव के बैल रुपी अवतार का मुख प्रकट हुआ था, इसलिए इसे स्वयंभू शिवलिंग के नाम से भी जाना जाता है।

शिवलिंग एक मुख की आकृति लिए हुए है जिसकी गर्दन टेढ़ी है। यह शिवलिंग एक प्राकृतिक शिवलिंग है जिसकी गहराई का आज तक पता नही लगाया जा सका है। दूर-दूर से भक्तगण इसी के दर्शन करने और महादेव का आशीर्वाद पाने यहाँ आते हैं।

रुद्रनाथ मंदिर में स्थित पित्रधार

सगर गाँव से रुद्रनाथ की यात्रा शुरू होती है जो कि 20 किलोमीटर लंबी है। इस मार्ग के अंत में पित्रधार नामक एक पवित्र स्थल आता है जहाँ से मंदिर बस 5 किलोमीटर की उतराई पर स्थित है। इस पित्रधार को पितरों के पिंडदान के लिए पवित्र जगह माना गया है। मान्यता है कि लोग गया की बजाए यहाँ भी अपने पितरों का पिंडदान कर सकते हैं। यहाँ आने वाले लोग पित्रधार में अपने पितरों के नाम के पत्थर रखा करते हैं और उनसे आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।

रुद्रनाथ मंदिर में वैतरणी नदी

गरुड़ पुराण के अनुसार, आत्मा अपनी तेरहवीं के दिन वैतरणी नदी को पार करके ही यमलोक पहुँचती है। रुद्रनाथ मंदिर के पास भी जो नदी बहती हैं, उसे वैतरणी नदी कहा गया है। इसके अलावा इसे बैतरनी नदी या रुद्रगंगा नाम से भी जाना जाता है। स्थानीय लोग इसे मोक्ष प्राप्ति की नदी भी कहते हैं। वैतरणी नदी में भगवान शिव/ विष्णु की पत्थर से बनी मूर्ति स्थापित है। कई लोग यहाँ भी पिंडदान करते हैं।

रुद्रमुख

रुद्रनाथ के साथ-साथ इस मंदिर में स्थापित शिवलिंग को रुद्रमुख के नाम से भी जाना जाता है। इसमें रूद्र भगवान शिव के रोद्र रूप को समर्पित एक नाम है जबकि मुख का अर्थ मुहं होता है।

रुद्रनाथ मंदिर की यात्रा

रुद्रनाथ मंदिर की यात्रा मुख्यतया तीन जगहों से शुरू होती हैं व हर स्थल से मंदिर की यात्रा करने का अपना एक अलग अनुभव हैं। यह यात्रा सगर गाँव, मंडल गाँव या हेलंग से शुरू होती हैं। मुख्यतया लोग इसे सगर गाँव से ही शुरू करते हैं। यात्रा में कम से कम 3 से 4 दिन का समय लगता हैं, इसलिए आप अपने रहने और खाने-पीने का सामान साथ में लेकर चले क्योंकि ऊपर इसकी व्यवस्था नामात्र के बराबर होती हैं।

सगर रुद्रनाथ ट्रेक

सगर गाँव-लिती बुग्याल-पनार बुग्याल-पित्रधार-रुद्रनाथ मंदिर

सगर गाँव गोपेश्वर से 5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हैं। रुद्रनाथ की यात्रा यहीं से शुरू होती हैं अर्थात यहाँ से आगे आप वाहन पर नही जा सकते हैं। यहाँ से रुद्रनाथ मंदिर की दूरी लगभग 20 किलोमीटर है जिसको पैदल ही पार करना होता है। रुद्रनाथ मंदिर पहुँचने के लिए यह ट्रेक सबसे छोटा व सुगम है, इसलिए मुख्यतया सभी के द्वारा यही ट्रेक किया जाता है।

इसके लिए आपको सगर गाँव से एक रास्ता मिलेगा जहाँ से यह ट्रेक शुरू होता है। बीच में लिती बुग्याल व पनार बुग्याल आएंगे जहाँ आप खाना-पीना कर सकते है या फिर एक दिन यहाँ रुक भी सकते है। सगर गाँव से पनार बुग्याल लगभग 12 किलोमीटर है। फिर यहाँ से 3 किलोमीटर की दूरी पर आप पित्रधार पहुँच जाएंगे जहाँ आपको भक्तों के द्वारा चढ़ाये गए पत्थर, घंटियाँ, चुनरियाँ इत्यादि देखने को मिलेंगी।

मंडल रुद्रनाथ ट्रेक

मंडलगाँव-अनुसूया मंदिर-हंसा बुग्याल-नोला पास-रुद्रनाथ मंदिर

यह ट्रेक मुख्यतया उनके द्वारा किया जाता हैं जिन्हें रुद्रनाथ मंदिर के साथ-साथ माता अनुसूया के मंदिर भी जाना होता हैं। मंडल गाँव गोपेश्वर से 12 से 14 किलोमीटर की दूरी पर है जहाँ से यह ट्रेक शुरू होता है। अनुसूया माता का मंदिर इस ट्रेक के बीच में पड़ता हैं जो यहाँ से लगभग 2 किलोमीटर अलग रास्ते पर है।

इसलिए सैलानी पहले माता अनुसूया के मंदिर होकर आते हैं और फिर रुद्रनाथ मंदिर का ट्रेक शुरू करते हैं। मंडल गाँव से अनुसूया मंदिर का आना-जाना 4 से 5 किलोमीटर हैं जिसमे 3 से 4 घंटे लगते है। उसके बाद आप हंसा बुग्याल, धनपाल मैदान व नोला पास होते हुए रुद्रनाथ मंदिर पहुँचते हैं जिसकी दूरी 23 किलोमीटर है।

हेलंग रुद्रनाथ ट्रेक

हेलंग-उर्गम-कल्पेश्वर मंदिर-दुमक-बंसी नारायण-पनार-रुद्रनाथ मंदिर

इस ट्रेक के बीच में पंच केदार में से एक और केदार कल्पेश्वर महादेव के दर्शन करने को भी मिलेंगे जो उर्गम गाँव के पास पड़ता है। यह ट्रेक रुद्रनाथ मंदिर ट्रेक का सबसे लंबा ट्रेक है जो कि लगभग 45 किलोमीटर के आसपास है।

हेलंग जोशीमठ के पास है जहाँ से यह ट्रेक शुरू होता है। उसके बाद भक्तगण उर्गम गाँव पहुँचते हैं जहाँ से कल्पेश्वर मंदिर का छोटा सा ट्रेक करके कल्पेश्वर महादेव के दर्शन किये जाते है।

रुद्रनाथ मंदिर खुलने व बंद होने की तिथि

अन्य केदारों की तरह यह मंदिर भी सर्दियों में भारी बर्फबारी के कारण बंद हो जाता है। मंदिर मुख्यतया मई माह में हिंदू कैलेंडर के अनुसार एक निश्चित तिथि को खोल दिया जाता है। इसके लिए गोपेश्वर के गोपीनाथ मंदिर से रुद्रनाथ डोली यात्रा निकाली जाती है। इसके बाद यह मंदिर छह माह तक खुला रहता है और दीपावली के आसपास एक निश्चित तिथि को मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाते हैं।

रुद्रनाथ मंदिर खुलने व बंद होने का समय

मंदिर के कपाट भक्तों के लिए प्रातः काल 6 बजे के पास खुल जाते हैं व संध्या 7 बजे के आसपास बंद हो जाते हैं।

रुद्रनाथ मंदिर का मौसम

यहाँ का मौसम वर्षभर ठंडा रहता है। गर्मियों में हल्की ठंड का अहसास होता है जबकि सर्दियों में तो भीषण बर्फबारी के कारण मंदिर जाने के रास्ते तक बंद हो जाते हैं। उस समय मंदिर से महादेव के प्रतीकात्मक स्वरुप को 20 किलोमीटर नीचे गोपेश्वर के गोपीनाथ मंदिर में स्थापित कर दिया जाता है। उसके बाद छह माह तक भगवान यही निवास करते हैं। फिर छह माह के बाद मई माह में रुद्रनाथ डोली यात्रा के द्वारा महादेव को पुनः रुद्रनाथ मंदिर में स्थापित कर दिया जाता हैं।

रुद्रनाथ डोली यात्रा

छह माह तक गोपीनाथ मंदिर में रहने के बाद महादेव के प्रतीकात्मक स्वरुप को पुनः रुद्रनाथ मंदिर पहुँचाने के लिए बड़ी धूमधाम के साथ रुद्रनाथ की पालकी में यात्रा निकाली जाती हैं जिसे डोली यात्रा के नाम से जाना जाता है। यह यात्रा गोपीनाथ मंदिर से शुरू होकर सगर गाँव होते हुए रुद्रनाथ मंदिर पहुँचती है।

बीच में जब पित्रधार आता है तब वहां पर पितरों की पूजा करने के लिए यात्रा को रोक दिया जाता हैं। फिर पितरों की पूजा करने के बाद यात्रा आगे बढ़ती हैं और रुद्रनाथ मंदिर पहुँचती हैं। उसके बाद वहां के स्थानीय लोगों के द्वारा वनदेवी की पूजा की जाती हैं। मान्यता है कि वनदेवी के द्वारा ही इस पूरे स्थल की रक्षा की जाती हैं।

रुद्रनाथ कैसे पहुंचे

हवाई मार्ग से रुद्रनाथ मंदिर कैसे जाए: यदि आप हवाई जहाज से रुद्रनाथ मंदिर आना चाहते हैं तो गोपेश्वर के सबसे नजदीकी हवाई अड्डा देहरादून का ग्रांट जॉली हवाई अड्डा है। यहाँ से बस या टैक्सी करके गोपेश्वर पहुँचना पड़ेगा।

रेल मार्ग से रुद्रनाथ मंदिर कैसे जाए: सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन ऋषिकेश का है। यहाँ से फिर आपको बस या टैक्सी की सहायता से गोपेश्वर पहुंचना पड़ेगा।

सड़क मार्ग से रुद्रनाथ मंदिर कैसे जाए: वर्तमान समय में उत्तराखंड राज्य का लगभग हर शहर व कस्बा बसों के द्वारा सड़क मार्ग से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ हैं। आपको दिल्ली, चंडीगढ़, जयपुर इत्यादि से ऋषिकेश तक की सीधी बस आसानी से मिल जाएगी। फिर वहां से आप आगे के लिए स्थानीय बस या टैक्सी कर सीधे गोपेश्वर तक पहुँच सकते हैं।

 

 

 

 

 

 

 

 



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