परिवार का नया सदस्य!

by Himalay Rawat
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क्या नाम रखा जाय कहा इसका?

वह बचपन जो आज की मॉडर्न भाग दौड़ से परे गुजरा वहां छोटी छोटी चीज़ों में ही खुशियां ढूंढ लेते थे।

यह कहानी उस सुबह की और उस घर की है जहां आज कुछ खुशियां कुछ अलग तरीके से बटने वाली थी। रोज की सुबह की तरह ईजा आज भी जल्दी उठ गई थी और रोज की तरह ही अपने कामों में व्यस्त हो पड़ी थी । पहाड़ों में हम लोग जानते ही हैं जितना प्यार लोगों से हैं उतना ही अपने जानवरों से भी होता है और रोज सुबह पहले उठते ही पहला काम होता है , आग जला कर हाथ मुंह धो कर उजाला अच्छे से होने देने तक चाय पी कर अपने जानवरों की ओर रुख करना।

रोज की सुबह की तरह आज भी ईजा सब काम निपटा कर भैंसो के गोठ की ओर बड़ी और गोठ का दरवाज़ा खोलते ही खुश हो पड़ी और लाड़- पत्याड (प्यार की भाषा) वाली भाषा बोलने लगी , क्योंकि आज गोठ में सिर्फ रेखा (भैंस का नाम) अकेले नहीं थी उसके साथ एक नई मेहमान भी थी, जो अभी जमीन पर ही बैठी और और बेहद खूबसूरत थी और उसके सिर के ऊपर एक सफेद रंग का टीका भी था जो इस खूबसूरती को और बड़ा रहा था।

ईजा थोड़ी देर नए मेहमान की खातिरदारी करने के बाद मुझे जोर जोर से और खुशी के मारे आवाज़ देती है और कहती हैं – या ईजा देख धे या ननु नान थोरी है रे । (मेरे प्यारे बच्चे इधर आ और देख यहां भैंस ने एक छोटी से बच्ची को जन्म दिया है), और यह आवाज़ सुनते ही मेरे कान खड़े होते हैं और मैं नींद से उठ कर खुशी के मारे दौड़ पड़ता हूं नन्हे मेहमान से मिलने। गोठ में पहुंचते ही जैसे नन्हें मेहमान के पास जाने की कोशिश करता हूं तो रेखा (भैंस का नाम) मुझे दूर भगा देती हैं और अपने छोटे से बच्चे के पास आने की इजाज़त नहीं देती है क्योंकि रेखा( भैंस का नाम) से मेरी बनती नहीं थी क्योंकि वह दिखने में बड़ी थी और मुझसे भी बड़ी और मैं भी तब अपने बचपन में था।

मेरी ईजा भी यह सब देख रही थी कि रेखा मुझे अपने बच्चे के पास नहीं आने दे रही थी तो ईजा पास आती है और उस दिन वह मेरी दोस्ती रेखा से भी करवाती है वह धीरे धीरे मुझे रेखा के पास ले जाती है और रेखा मुझे मारने को आ दौड़ती है यह सिलसिला 5-6 बार चलता है और ईजा के प्यार से समझाने के बाद रेखा मुझे अपने पास और नए मेहमान के पास आने की इजाज़त दे देती हैं और हम तीनों में भी दोस्ती बड़ने लगती हैं। रेखा से दोस्ती करना इसलिए जरूरी था क्योंकि मुझे नए मेहमान के साथ अपनी दोस्ती गहरी करनी थी।

अब रोज सुबह मैं भी ईजा के साथ उठता और रोज सुबह ईजा के साथ चल पड़ता अपने दिन की शुरुवात नए मेहमान के साथ खेलने से शुरू करने। और अब यह रोज का सिलसिला हो गया था।



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