जब कभी तिब्बत का नाम आता है, तो याद आंखों के सामने खूबसूरत प्राकृतिक नजारे घूमने लगते हैं. कानों में गूंजती हैं ‘बुधम शरणम गच्छामि’ की गूंज!
तिब्बत की धरती में अध्यात्म और मानवीय चेतना को समर्पित रही है. इस धरती ने कई महापुरूषों को आत्मज्ञान दिया है, जिन्होंने आगे चलकर दुनियाभर में उसका प्रचार किया. इन्हीं गुरूओं में से एक हैं ‘मिलारेपा’.
मिलारेपा का नाम तिब्बत के इतिहास को और ज्यादा गौरवांवित बनाता है. उन्होंने गुरू और शिष्य की नई परिभाषा को तो गढा ही, साथ ही अकेले कैलाश पर्वत तक की चढाई की. यह वो असंभव काम था, जिसे कम से कम कलयुग में तो किसी ने अंजाम नही दिया था.
यही कारण रहा कि ’मिलारेपा’ पूरी दुनिया के लिए किसी रहस्य से कम नहीं रहे हैं. मिलारेपा ने ज्ञान पाने के लिए तिब्बत गुरू ‘मार्पा’ को अपना गुरू बनाया था, लेकिन उनके बीच कुछ ऐसा हुआ कि बाद में ‘मार्पा’ खुद मिलारेपा के शिष्य बन गए.
तो चलिए आपको लेकर चलते हैं मिलारेपा की कैलाशयात्रा पर और जानते हैं कैसे उन्होंने अपने ही गुरू को अपना शिष्य बना लिया—
तिब्बत में करीब 850 वर्ष पहले एक सम्पन्न परिवार में ‘मिलारेपा’ का जन्म हुआ था. जब वे केवल 7 साल के थे, तभी उनके पिता का देहांत हो गया था. परिवार में मां और बहन के साथ मिलारेपा अकेले हो गए. उनके चाचा ने पूरी जायजाद हड़प ली.
इस तरह मिलारेपा का परिवार असहाय हो गया. वे अपने ही घर में नौकर बन गए. उनकी मां ने चाचा से अपनी संपत्ति वापिस लेने के अनेक प्रयास किए, लेकिन वह सफल नहीं हो पाईं. इसी तरह कुछ साल और बीत गए.
मिलारेपा की उम्र 13 साल हो चुकी थी. एक दिन वे कोई गीत गुनगुनाते हुए अपने घर पहुंचे. उनकी मां को इस गुनगुनाहट से परेशानी हुई और वे भीतर जाकर एक हाथ में डंडा और दूसरे में राख लेकर आईं. उन्होंने मिलारेपा की आंख में राख फेंककर मारी और फिर डंडे से पिटाई शुरू कर दी.
मिलारेपा कुछ समझ पाते इसके पहले ही मां के प्रहारों से घायल हो गए. मां भी अपने बेटे की तकलीफ देखकर बेहोश हो गईं.
होश में आने का बाद मिलारेपा की बोली कि तुम कैसे बेटे हो? तुम्हारा खून नहीं खौलता? तुम अपने पिता और माता के अपमान का बदला लेने की बजाए गीत गुनगुना रहे हो. यदि कुछ करना ही चाहते हो तो बदला लो. यह बात मिलारेपा के मन में घर कर गई और उसने बदला लेने के लिए तंत्र साधना का सहारा लेना चाहा.
इसके लिए उसने तिब्बत के तंत्र गुरूओं से तंत्र विद्या सीखी ।
यह विद्या सीखने में कई साल गुजर गए. तब तक चाचा और बुआ का परिवार अपने से ज्यादा संपन्न हो गया. मिलारेपा ने तंत्र साधना सीखकर उनके खेतों पर ओलावृष्टि की, जिससे एक ही साल में पूरी फसल खराब हो गई.
चाचा और बुआ दुखी हो गए, लेकिन मिलारेपा भी खुश नहीं रह सका. क्योंकि इतने सालों में उसने अपनी मां और बहन की सुध नहीं ली थी. आखिर वे बीमारी की चपेट में आकर मृत्यु को प्राप्त हो चुकी थीं.
यह जानने के बाद मिलारेपा पहले से ज्यादा गुस्से में था. उसने अपने चाचा के बेटे की शादी में ओलों की बारिश की, जिससे मेहमान व चाचा-चाची की मौत हो गई.
मिलारेपा ने अपना बदला तो पूरा कर लिया था. वह खुश था पर इसे पूरा करने की सनक में उसने अपनी मां और बहन को खो दिया था.
इससे वह दुखी भी था. जब उसका मन शांत हुआ, तो उसे अपनी गलती का एहसास हुआ. वह पछतावे से भर गया. वह इस दोष से मुक्त होना चाहता था और इसलिए उसने आध्यात्म की शरण ली.
जब मिलारेपा आध्याम के मार्ग पर चलने के लिए गुरू की तलाश कर रहे थे, तब उन्हें किसी ने भारत से योग विद्या (नालन्दा विश्विद्यालय ) सीखकर आए गुरू मार्पा के बारे में बताया. वे मशहूर गुरु नारपा के शिष्य भी थे.
मिलारेपा मार्पा की शरण में पहुंचे. उन्होंने देखा कि मार्पा खेत जोत रहे हैं. मिलारेपा ने उन्हें देखते ही खेत जोतना शुरू कर दिया. मार्पा कुछ देर में वहां से चले गए और मिलारेपा अपना काम खत्म करके उनके पास पहुंचे.
मार्पा ने उनसे कई तरह के शारीरिक श्रम करवाए. मिलारेपा सब कुछ करते गए और फिर अंत में बोले कि गुरूदेव मैं आपसे ज्ञान का आशा रखता हूं. मैं पु: जन्म के फेर से मुक्त होना चाहता हूं. मैं यहां आपको अपना शरीर, अपना दिमाग और अपनी बोली अर्पित करता हूं और बदले में खाना, कपड़े और ज्ञान की अभिलाषा रखता हूं.
मार्पा ने कहा कि मैं तुम्हें ज्ञान दे सकता हूं पर अपने रहने खाने का इंतजाम खुद करना होगा . मिलारेपा ने यह बात स्वीकार कर ली और वह खाने का इंतजाम करने के लिए भीक्षा मांगने निकल गया.
उसने एक बार में एक साल का अन्न जमा कर लिया. वह अन्न का बोरा लेकर मार्पा के घर पहुंचा और उसे जोर से पटक दिया. मार्पा अन्न के अपमान से नाराज हो गए और उसे बाहर निकाल दिया. मिलारेपा ने माफी मांगी पर मार्पा ने उससे कहा कि अब वह घर के बाहर के काम करेगा. उसे फिलहाल ज्ञान नहीं मिल सकता.
इसके बाद मिलारेपा 13 साल तक खेतों की जुताई और घर के काम करता रहा. वह कभी-कभी सत्संग में बैठने की कोशिश करता पर मार्पा उसे भगा देते.
मार्पा हर नए शिष्य को दीक्षा देते रहे और मिलारेपा के प्रति उनका व्यवहार सख्त होता गया. उन्होने इसके बाद भी कई सालों तक उससे अपने घर का काम और मेहनत करवाई. मिलारेपा बुजुर्ग हो चला था.
मार्पा की पत्नी दमेमा को उसकी हालत पर दया आई और उसने मिलारेपा को एक खत देते हुए कहा कि इसे मार्पा के शिष्य को दे दो वह तुम्हे दीक्षा दे देगा.
मिलारेपा खत लेकर शिष्य के पास पहुंचे और उसने उन्हें दीक्षित कर दिया, लेकिन आश्चर्य इस बात का था कि मिलारेपा को कोई अनुभव नहीं मिला. जब मार्पा को यह बात पता चली तो वे बहुत नाराज हुए और मिलारेपा को घर से निकाल दिया.
इसके बाद मिलारेपा इतना दुखी हुए कि उन्होंने आत्महत्या करने की सोची हालांकि, जैसे ही वे यह प्रयास करने वाले थे मार्पा वहां पहुंचे और उन्होंने मिलारेपा का गले लगाते हुए कहा कि अब असर मायनों में तुम्हें पछतावा हो रहा है और मैं तुम्हे दीक्षा देता हूं…