पलायन : समस्या, विमर्श की दिशा और समाधान

by Rajesh Budhalakoti
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सुबह होती है शाम होती है उम्र यू ही तमाम होती है।

[dropcap]अ[/dropcap]ब सच में ये ही लगने लगा है के बस हमारी जिंदगी भी सुबह और शामो को गिनते गिनते बीत जायेगी, हम भी सुधार, व्यवस्था, मूलभूत सुविधा, जन सरोकार के कामों का रोना रोते रोते अलविदा कर लेंगे, और हमारे करता धर्ताओं के कानो में जू तक नहीं रैंगेगी। हम जिन प्रतिनिधियों को जन नायक बना कर भेजेंगे वो हमारी आवाज न सुनने की कसम खा लेंगे।

लोकशाही मे अगर जनता को उसकी मूल भूत आवश्यकताऍ पूरी न हो, उसे इलाज के लिए दर दर भटकना पड़े, उसे परिवहन के लिये निजी व्यवस्थाओ का मुंह ताकना पड़े, शिक्षा व्यवस्था अथवा लचर व्यवस्था की उपलब्धता, उसके आने वाली पीढ़ी को अज्ञान की ओर अग्रसरित करे, तो व्यर्थ है ऐसी लोक शाही।
हमारा उत्तराखण्ड निर्माण के 18 , 19 वर्षो के बाद भी, अपने लोगो को आवश्यक सुविधाए भी क्यों नहीं प्रदान कर पाया। मित्रो, उत्तराखंड से यहाँ मेरा मतलब नैनीताल देहरादून या हरिद्वार से नहीं, यहाँ की 75 प्रतिशत जनता से है जो गांवों या सुदूर क्षेत्रों में रहती है और अब पलायन को मजबूर है

आजकल हमारे उत्तराखंड के उच्च बौद्धिक स्तर वाले चिंतक लेखकों और नेताओ के लिए वाद विवाद का मुख्य विषय है। बड़ी बड़ी गोष्ठीयों या बैठकों में, एन.जी.ओ, अर्ध सरकारी संस्थाए बहुत चिंतित हैं इस विषय को लेकर। टेलीविज़न वाले आकड़ो में उलझ रहे हैं। गांव गांव जाकर लटके ताले अपने स्क्रीन पर दिखला रहे हैं, उपाय ढून्ढ रहे हैं। ये भी लग रहा है कि, कोई न कोई पार्टी जरूर इसे अपना चुनावी मुद्दा भी बनाएगी।

मित्रो इतनी बहस, इतनी खोज, इतने हाय हल्ले के बजाय, अगर उन्हें हम उनकी जरूरत का सामान उपलब्ध करवा दें, रोजगार के अवसर दे दें, तो पलायन होगा ही क्यो!

लेकिन हम अपनी गलती पर पर्दा डालने के लिए “पलायन” को शोध का विषय बनाकर अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं। पलायन पर सरकार की तरफ से कई कमिटी बनेगी, पांच सितारा होटल में बैठ कर विचार विमर्श होगा, विदेशी मदिरा और लजीज भोजन के मध्य पलायन के कारण ढूंढे जायेंगे, प्रेस विज्ञप्ति जारी होगी, हमारे विज्ञापनों को लालाइत प्रेस प्रतिनिधि जो ये समितियां चाहेंगी वो छापेंगे। गहन अध्ययन की आवश्यकता पर जोर दिया जाएगा। किसी राज नेता अथवा अफसर का चहेता एन.जी.ओ. करोड़ों… लाखों रुपये लेकर अध्ययन करेगा, रिपोर्ट समिति को सौपी जायेगी, 5 वर्ष बीत जायेंगे, चुनाव के बाद नई सरकार आएगी और ये मुद्दा नयी सरकार नए तरीके से उठाएगी, और ये क्रम चलता रहेगा, तब तक हमारे पहाड़ खाली हो चुके होंगे, और हम उत्तराखंड की राजधानी को देहरादून से गैरसैण ले जाने हेतु आन्दोलनरत होंगे।



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