मुंबई की तेज भागती जिंदगी से तालमेल

by Yashwant Pandey
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साल 2010
मैं अफ्रीका छोड़कर हिंदुस्तान लौट आया था। एक जर्मन मल्टीनेशनल की इंडियन सब्सिडियरी जॉइन किया था। यूं तो यह कंपनी प्रोजेक्ट सेल्स में वर्ल्ड वाइड मार्केट लीडर थी, लेकिन उनकी डिस्ट्रीब्यूशन सेल्स की हालत बहुत अच्छी नहीं थी। मुझे अप्वॉइंट किया गया था, डिस्ट्रीब्यूशन सेल्स को बेहतर करने के लिए। कंपनी के हेड ऑफिस चेन्नई में थी। मैं रिस्पांसिबल था महाराष्ट्र और गोवा के बिजनेस के लिए, और मुंबई ऑफिस में बैठता था।

मुंबई की भागती जिंदगी के साथ, मैं भी भागना सीख रहा था। शुरू के महीना दो महीना तो मुंबई आपको तकलीफ देगी, लेकिन एक बार अगर आपने मुंबई के साथ भागना सीख लिया, तो फिर आप मुंबई से प्यार करने लगोगे। घर से सुबह निकलने पर पता ही नहीं चलता है, शाम कब हो गई। मुंबई में डिस्ट्रीब्यूशन सेट करने की कोशिश कर रहा था। प्रोजेक्ट सेल्स कि एक क्राइटेरिया है, प्रोजेक्ट कम से कम साल भर पहले शुरू हुआ होगा, 3 महीना पहले आर्किटेक्ट ने स्पेसिफाई किया होगा, आपने रिक्वायरमेंट्स जनरेट कर दी होगी, मटेरियल सेंट्रल वेयरहाउस से आ जाएगी और डिलीवरी हो जाएगी। मतलब आपके पास सफिशिएंट टाइम होता है, रिक्वायरमेंट जनरेट होने से लेकर के मैटेरियल्स की डिलीवरी तक।

लेकिन डिस्ट्रिब्यूशन अलग है, आप रिटेल आउटलेट में जाते हैं, वह आपको कुछ आर्डर देता है, साथ ही आशा करता है कि शाम तक उसको डिलीवरी हो जाएगी। प्रोजेक्ट के माफिक आपके पास में महीना या सप्ताह का समय नहीं होता डिलीवरी के लिए। डिस्ट्रीब्यूशन सेल्स काफी हद तक गाय से दूध निकालने के माफिक हैं।  मतलब अगर कोई गाय रोज 10 लीटर दूध देती है, तो आप ऐसा नहीं सोच सकते हैं कि एक सप्ताह तक आप दूध ना निकाले और आठवां दिन आपको 80 लीटर दूध मिल जाएगी। इन फैक्ट अगर आप एक सप्ताह तक दूध ना निकाले, तो हो सकता है गाय बीमार हो जाएगी।
डिस्ट्रीब्यूशन सेल्स में यही होता है, अगर आप आज सेल्स नहीं कर पाए तो वह सेल्स आपकी हमेशा के लिए गई, और काउंटर का सेल्फ स्पेस आपकी कंपनी के पास चली गई। कोई भी कंपनी दुबारा आपको स्पेस बनाने की मौका नहीं देगी। मुंबई टीम में मेरे अलावा सभी प्रोजेक्ट सेल्स के थे। मैं उनकी माइंडसेट्स समझता था, क्योंकि मैं उसके पहले प्रोजेक्ट और डिस्ट्रीब्यूशन दोनों को हैंडल कर रहा था। बैक ऑफिस मेरे रिक्वायरमेंट नहीं समझ पा रही थी, या समझना नहीं चाहती थी। क्योंकि समझने से अधिक काम करना पड़ेगा, मेरी चैलेंजेस और भी थी, मेरे लिए मुंबई बिल्कुल नया मार्केट था, ना तो मैं मुंबई का ज्योग्राफील लोकेशन जानता था, ना मेरे कोई कनेक्शन थे। मैं अपने सेल्स एग्जीक्यूटिव के साथ दुकानों में घूम रहा था और मार्केट की समझने की कोशिश कर रहा था।
सप्लाई चेन टीम मेरे ऑर्डर्स को भी प्रोजेक्ट टीम के ऑर्डर्स के माफिक ही ट्रीट किया करते थे। ऑर्डर चली गई कंपनी में तो वह डिलीवरी दे देंगे। कब देंगे, इसकी कोई एश्योरिटी नहीं है। पहले तो मैंने दो तीन बार उनसे बात करने की कोशिश की लेकिन मैं उन्हें समझाने में असफल रहा। उनकी नौकरी सरकारी नौकरी सी थी और उन्हें कुछ पडी नहीं थी। वह ऑफिस आ कर के ही कंपनी पर मेहरबानी कर दे रहे थे।
मैंने आर्डर मेल पर भेजता था, उस पर रिमाइंडर भेजना शुरू कर दिया। और हर एक रिमाइंडर में अपने से एक लेबल सीनियर को कॉपी कर देता था, दो रिमाइंडर के बाद तीसरा रिमाइंडर लाल रंग के बड़े फोंट में थर्ड रिमाइंडर लिख करके भेजता था। डिलीवरी की गति तेज हो गई थी, लेकिन दुश्मनी बढ़ती जा रही थी। दुश्मनी की ज्यादा परवाह करता नहीं था। एक बार तो मामला कंपनी के मैनेजिंग डायरेक्टर तक पहुंच गया। शाम को मेरे पास मुंबई के डायरेक्टर का फोन आया, वे दूसरे दिन सुबह मुझे ऑफिस में मिलना चाहते थे 10:00 बजे।
मैं 9:30 बजे ऑफिस पहुंच गया था, वे डायरेक्टर थे, ऐसा लगता था जैसे समय से ऑफिस पहुंचना उनके शान के खिलाफ था। 10:30 बजे के आसपास ऑफिस पहुंचे। ऑफिस के बाहर पार्किंग एरिया में पहले एक सिगरेट जलाई, उनके इर्द-गिर्द उनकी टीम खड़ी थी, और उनके किसी बात पर हंस रही थी। 10:45 पर वह अपने केबिन में पहुंचे, 11:00 बजे मुझे मिलने के लिए बुलाया।
मैं उनके केबिन पहुंचा, 10 बाय 10 की केबिन, जिसमें उनके कुछ अवॉर्ड्स वगैरह लगे हुए थे। टेबल के एक तरफ उनकी रिवाल्विंग चेयर, और दूसरी तरफ तीन फिक्स चेयर थी। उन्होंने मुझे बैठने का इशारा किया, मेरे पीछे अकाउंट्स मैनेजर, सप्लाई चैन मैनेजर, फाइनेंस मैनेजर और उनकी पीए खड़े हो गये।
उन्होंने दोनों कुहनी को सामने टेबल पर टिकायी, आंखों से चश्मा उतार कर साइड टेबल पर रखा, थोड़ा आगे झुकते हुए मेरी आंखों में आंखें डाल कर अंग्रेजी में कहा कहा (हिंदुस्तान में जब मैनेजर गुस्से में होता है तो, वह हिंदी में बात नहीं करता है), उन्होंने तल्ख आवाज में कहा, पता नहीं आपने कहां से घटिया मेल लिखने की ट्रेनिंग ले ली है, आपकी जानकारी के लिए बता देता हूं, मैंने मेल लिखने के लिए लोगों की नौकरी से निकाल दिया है। वे अपनी रौब अपनी टीम के सामने जमाना चाहते थे। उनकी टीम मेरे पीछे खड़ी थी। मैंने उनके आंखों में आंखें डालते हुए कहा, वह कौन सी ताकत है, जो आपको मुझे नौकरी से निकालने में रोक रही है, और ऐसा आपको क्यों लग रहा है कि यह नौकरी मेरी जिंदगी की पहली और आखरी नौकरी है। आप कान खोल कर सुन लो, इस नौकरी में मुझे बुलाया गया है, मैंने अप्लाई नहीं किया था, और ऐसी नौकरी मैं एक महीने में तीन ढूंढ सकता हूं। वे चौंक गए, उन्हें इस जवाब की आशा नहीं थी। उन्होने कुर्सी पीछे खिसकायी, साइड टेबल पर पड़े पानी का गिलास उठाया,  एक घूंट पानी पीकर कहा, लगता है आप अच्छे मूड में नहीं है, हम फिर बात करेंगे।  मैंने कुर्सी से उठते हुए कहा जब आपको टाइम हो काल कर लेना, मैं उठकर उनके केबिन से निकलने के लिए पीछे मुड़ा, चारों लोग मेरे पीछे जो खड़े थे, उनकी नजरें झुकी हुई थी।
इस घटना के बाद मैं डेढ़ साल तक रहा उस कंपनी में, डिलीवरी सुधर गई थी, हालांकि उन्होंने दोबारा मुझसे कभी बात नहीं की।

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