यूपीएससी की कठिनतम परीक्षा में 257 वी रैंक लाकर उत्तराखंड के किसान की बेटी प्रियंका ने परचम लहराया।

by Sunaina Sharma
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उत्तराखंड के कठिनतम परिवेश में रहकर भी किसान की बेटी कुमारी प्रियंका दीवान ने यूपीएससी 2020 की परीक्षा में हिंदी माध्यम से 257 वी रैंक हासिल की है।

28 वर्ष की कुमारी प्रियंका दीवान उत्तराखंड के छोटे से गांव रामपुर से ताल्लुक रखती हैं, जहां पर बिजली पानी कनेक्शन और रोड कनेक्टिविटी की गंभीर समस्या है। इन विषम परिस्थितियों में भी प्रियंका ने देश की कठिनतम परीक्षा यूपीएससी में पहले प्रयास में ही परीक्षा उत्तीर्ण की है और वह भी हिंदी माध्यम में, पिछले कुछ वर्षों से हिंदी माध्यम से बहुत कम छात्र ही यूपीएससी परीक्षा उत्तीर्ण कर पा रहे हैं जो कि चर्चा का विषय बना हुआ है की हिंदी माध्यम के छात्र यूपीएससी में इतनी कम संख्या में उत्तीर्ण क्यों हो रहे हैं?

कुमारी प्रियंका की पारिवारिक स्थिति भी बहुत अच्छी नहीं है। इनके गांव में दसवीं कक्षा की पढ़ाई के लिए कोई स्कूल नहीं है, इसके लिए इन्हें बहुत दूर पढ़ने जाना पड़ता था। गांव में शिक्षा की अच्छी सुविधा ना होने के कारण इन्होंने दसवीं कक्षा के बाद आगे की शिक्षा के लिए गोपेश्वर के गवर्नमेंट गर्ल्स इंटर कॉलेज में दाखिला लिया जो कि इनके गांव से 115 किलोमीटर दूर है, और कला में स्नातक की शिक्षा पूर्ण की इसके बाद वह डीएवी कॉलेज में कानून की डिग्री लेने के लिए देहरादून आ गई और यूपीएससी की परीक्षा भी बिना कोचिंग के बिना ही देहरादून में ही रहकर उत्तीर्ण की, वह बताती है कि किसी कोचिंग संस्थान की मदद नहीं ली लेकिन इंटरनेट का काफी उपयोग रहा उनकी तैयारी के दौरान।

खेती के कार्य में पिता की मदद करते हुए।

वह बताती है कि बचपन में उनके स्कूल में डीएम साहब आए थे तब उनके स्कूल में डीएम साहब ने समारोह को संबोधित किया था। डीएम के आगमन पर स्कूल को बहुत सजाया गया था, यह सब देखकर वह काफी प्रभावित हुई और फिर डीएम से मिली भी और यूपीएससी की परीक्षा उत्तीर्ण करने की सलाह ली, उनकी बात सुनकर बहुत उत्साहित हुई, और विषम परिस्थितियों के बावजूद परीक्षा की तैयारी में लग गई, अंततः 2019 की यूपीएससी परीक्षा पहले ही प्रयास में उत्तीर्ण कर ली। गांव में नेटवर्क कनेक्टिविटी की समस्या के कारण उनके माता पिता को उनके परीक्षा परिणाम के बारे में 2 दिन बाद पता चला था।

वह खेती के कार्य में अपने पिताजी की मदद भी करती थी और अपने घर की जीविका चलाने के लिए पिता का बोझ कम करने के लिए और अपना खर्च निकालने के लिए लगभग 40 बच्चों को ट्यूशन भी पढ़ाती थी।

इन सभी विषम परिस्थितियों के बावजूद उन्होंने कभी हार नहीं मानी और अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति के बल पर यूपीएससी की परीक्षा उत्तीर्ण कर के अपने जैसे लाखों युवाओं के लिए मिसाल बन चुकी है।



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