जानिए अपने काम में क्रिएटिविटी कैसे लाये ?(The Creative Habit)

by Deepak Joshi
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Know how to bring creativity in your work?

दो लफ़्ज़ों में

वर्ल्ड फेमस कोरियोग्राफर ट्विला थर्प नें , 2003 में आई अपनी किताब , ‘ द क्रिएटिव हैबिट ‘ के जरिये हमसे अपने रियल लाइफ एक्सपीरियंस को शेयर किया है . अपने क्रिएटिव प्रोफेशन में उन्हें कौन – कौन सी मुश्किलें आई , उनका सामना उन्होंने कैसे किया और ऐसी कौन सी आदतें हैं जो उनकी क्रिएटिविटी को जिंदा रखती हैं , इन सारे सवालों के जवाब आपको यहाँ  मिल जायेंगे . इसे पढकर आप भी अपनी आदतों में थोडा फेर – बदल कर अपनी क्रिएटिविटी को बढ़ा सकते हैं और अपनी मंजिल हासिल कर सकते हैं .

ये किसके लिए है ?

ऐसे आर्टिस्ट जो अपनी परफॉरमेंस और बेहतर करना चाहते हैं .

– जो लोग अपने काम में क्रिएटिविटी लाना चाहते हैं .

जो लोग किसी बड़े प्रोजेक्ट को हैंडल करना सीखना चाहते हैं .

लेखक के बारे में

ट्विला थर्प एक अवार्ड विनिंग अमेरिकी कोरियोग्राफर हैं , जिसने अपनी कंपनी के लिए 130 से ज्यादा डांस कोरियोग्राफ किये हैं , साथ ही पेरिस , लंदन , स्टॉकहोम , सिडनी और बर्लिन की कंपनियों के लिए भी . उन्होंने दो एमी और एक टोनी अवार्ड हासिल किया है , और कई फेमस फिल्मों के लिए भी काम किया है , जिसमें हेयर और एमाडेस शामिल हैं .

अपने आप को जानें कि आपमें ऐसा क्या खास है जो आपको अपनी मंजिल तक पहुंचा सकता है

मोजार्ट का नाम तो आपने सुना ही होगा , वो यकीनन एक बेहतरीन कंपोजर थे . लेकिन वो इस मुकाम तक किसी लक की वजह से नहीं बल्कि अपनी मेहनत और लगन से पहुंचे थे . वो कम्पोजीशन की इतनी प्रैक्टिस करते थे उनकी उँगलियाँ टेढ़ी हो गयीं थी . क्रिएटिविटी असल में ऐसी ही होती है , कोई भी रातों – रात फेमस नहीं हो जाता बल्कि अपने ऊपर मेहनत करनी पड़ती है अपने रुटीन में डिसिप्लिन लाना पड़ता है . क्रिएटिविटी भी मसल्स के जैसी है आप जितना ज्यादा प्रैक्टिस करेंगे वो उतना बढेगी . एक बार आपने इस बात को समझ लिया तो आपको अपना टैलेंट दुनिया के सामने लाने से कोई नहीं रोक सकता . इस किताब के अध्याय आपको सिखायेंगे कि कैसे आप रेगुलर प्रैक्टिस और डिसिप्लिन से अपनी स्किल्स को बढ़ा सकते हैं . डिसिप्लिन से आपका रुटीन बनता है और यही रुटीन एक दिन आपकी क्रिएटिव आदत में बदल जायेगा . हम सबमें कुछ न कुछ खास जरुर है . इसलिए , अपनी मंजिल तक पहुँचने का रास्ता चुनने से पहले अपने अन्दर छुपी खासियत को ढूँढें . यही खासियत हमारी क्रिएटिव आइडेंटिटी बनती है और हम अपने पैशन को समझ पाते हैं . आप खुद को जितना ज्यादा जानेंगे आप अपनी कमजोरियों और ताकतों को उतना ज्यादा समझ पाएंगे .

पहला सवाल कि आप अपनी क्रिएटिव आइडेंटिटी तक कैसे पहुँचे ? आप अपने एक्सपीरियंस , अपनी फीलिंग्स और अपने सपनों को एक कागज़ पर लिखने की कोशिश करें . आपको अपने लिखने के अंदाज़ में ही समझ आ जायेगा कि आपकी क्रिएटिव आइडेंटिटी क्या है . जैसे , लेखिका ने एक सेशन में अपने एक आर्ट स्टूडेंट से पूछा कि अगर उसे डांस को किसी रंग के जरिये बताना हो तो वो कैसे बताएगा . काफी देर तक इधर – उधर की बातें करने के बाद वो बोला कि डांस उसे एक ट्रांसपेरेंट नीले असमान जैसा लगता है . इससे ये साफ़ होता है कि वो पेंटिंग से ज्यादा लिखने में माहिर है क्यूंकि उसे शब्दों का काफी अच्छा इस्तेमाल आता है . इसी तरह आप भी अपनी बातों और रोज मर्रा के कामों पर गौर करके अपनी क्रिएटिव आइडेंटिटी को पहचान सकते हैं . अगर आप ये पहचान सकें कि आप किस काम के लिए बनें है तो सक्सेस को हासिल करना आपके लिए आसान हो जायेगा . खुद से सवाल करें के वो कौनसा काम है जिसे आप एक अलग अंदाज़ से कर सकते हैं जैसा और कोई नही कर पता . अगर आप अपनी पहचान और अपने टैलेंट के साथ कम्फर्टेबल हैं तो आपके लिए काम करना आसान और मजेदार हो जाता है . आगे आने वाले अध्यायों से हम जानेंगे कि क्रिएटिविटी की नीव कैसे रखी जाए .

अपनी स्किल्स को शार्प करने के लिए अपने डेली रुटीन में डिसिप्लिन लायें

किसी भी नए प्रोजेक्ट को शुरु करना थोडा मुश्किल हो सकता है . अगर आप इसे आसान बनाना चाहते हैं तो आपको इसे अपने डेली रुटीन में शामिल करना होगा . अपने डेली रुटीन में किसी भी नयी चीज़ को शामिल करने लिए कमिटमेंट की जरुरत होती है . अगर हम लगातार उस काम को करने में कामयाब हो गए तो देखते ही देखते वो हमारी आदत बन जाएगी और उसे करने के लिए फिर हमें अलग से सोचने की जरुरत नहीं पड़ेगी . अगर हमारा काम हमारी आदत बन गया तो वो हमारे कम्फर्ट जोन का हिस्सा हो जायेगा और उसे लेकर हम कॉंफिडेंट फील करेंगे . जैसे लेखिका अपने प्रोफेशन में फिट रहने के लिए मॉर्निंग कॉफ़ी के बाद जिम जाती है . कई बड़े म्यूजिशियन और कंपोजर अपनी सुबह की शुरुवात अपने इंस्ट्रूमेंट को बजा कर या लिख कर करते हैं . इन छोटी – छोटी बातों से हमारी क्रिएटिविटी पर बहुत फर्क पड़ता है . ऐसी ही एक और आदत है जो आपके बड़े काम आएगी और आपको हमेशा अपनी क्रिएटिव आइडेंटिटी से जोड़ कर रखेगी वो ये है कि आप अपने काम से जुडी कोई भी छोटी से छोटी चीज़ हमेशा अपने साथ रखें . ये चीज़ कुछ भी हो सकती है एक पेन , आपका कैमरा या टेप – रिकॉर्डर . ये सब इसलिए क्यूंकि ये आपको याद दिलाता रहेगा कि आप क्या हैं .

अगली अच्छी आदत ये है कि जब भी अपने काम को लेकर आपको घबराहट महसूस हो तो अपने मन में उठने वालों सवालों के जवाब तुरंत दें और अपने मन को शांत करें . जैसे अगर आपके मन में डर है कि लोग मुझ पर हसेंगे ‘ , तो खुद से कहें ‘ हाँ लेकिन वो लोग नहीं हसेंगे जो सच में मेरी इज्ज़त करते हैं , अगर मन में आ रहा है कि ‘ ये काम तो पहले भी चुका है ‘ तो कहें कि तो क्या हुआ ? शेक्सपियर भी 100 % ओरिजिनल नहीं थे ‘ . ‘ ये काम मुझसे उतना अच्छा नही हुआ जैसा मैंने सोचा था तो कहें गलतियाँ सभी से हो जाती हैं ‘ . कहने का मतलब बस इतना है कि जो भी आपका डर है उसका सामना तुरंत करें ताकि वो डर आपके कॉन्फिडेंस को नुक्सान ना पहुंचा पाए . अपनी इमेजिनेशन और वोकैबलरी को बढ़ाने के लिए अपनी मेमोरी को स्ट्रोंग करने की कोशिश करें . क्यूंकि , जब भी आप किसी ग्रुप में काम करते हैं और आपको हर वो छोटी बात याद रहती है जिसपर किसी और का ध्यान ना गया हो तो ग्रुप में आपकी इज्ज़त बढ़ती है . अपनी मेमोरी बढ़ाने के लिए आप अपने काम से जुड़ी बातों को मन ही मन रिपीट करते रहे , धीरे – धीरे सब आपकी मेमोरी में फिट हो जायेगा . जैसे लेखिका अपने रिहर्सल के दौरान अपने गाने के नोट्स , फीडबैक , और पॉसिबल चेंज को बिना लिखे अपने मन में याद रखने की कोशिश करती थीं . आप भी अपनी मेमोरी का इस्तेमाल ज्यादा से ज्यादा करें और चीज़ों को याद रखने की कोशिश करें क्या पता कब कौनसी बात आपके काम आया जाये .

नए प्रोजेक्ट की शुरुआत आप एक बॉक्स के साथ करें . अब आप सोच रह होंगे कि एक बॉक्स का किसी नए क्रिएटिव प्रोजेक्ट से क्या लेना देना हो सकता है , आईये देखते हैं . जब आप कोई नया प्रोजेक्ट शुरू करते हैं या किसी नए आईडिया पर काम करना शुरू करते हैं तो आपके दिमाग में बहुत सी बातें आती है या आप अपने आस – पास से बहुत सी चीजें कलेक्ट करते हैं जो कहीं न कहें आपके प्रोजेक्ट से जुड़ी होती हैं . लेकिन अगर आप इन चीज़ों को संभाल कर नहीं रखेंगे तो आपके लिए दुबारा इन्हें ढूँढना मुश्किल हो जायेगा . इसलिए अपने नए आईडिया के लिए एक नया बॉक्स बनाएं , हाँ ये जरुरी नहीं कि आप एक बॉक्स ही लें . आप अपनी जरुरत के हिसाब से कोई भी ओर्गानिजिंग टूल ले सकते हैं . चाहे वो आपकी अलमारी हो , कोई बॉक्स , कोई नोटबुक या आपके कंप्यूटर का एक फोल्डर . बस करना ये है कि आपके आईडिया से लेकर , उसके इंस्पिरेशन और उससे जुडी जो भी चीजें आपको मिलती है वो सब उसमें रखते जायें ताकि जब आपका ध्यान अपने आईडिया से भटक जाए तो आप अपने उस बॉक्स को देख कर दुबारा अपना फोकस बना पाएं . ये बॉक्स ऐसा है जैसे एक जर्नलिस्ट का रिसर्च फोल्डर जो वो अपनी स्टोरी लिखने से पहले बनाता है . जैसे , महान कवी हरिवंश राय बच्चन अपने हर आईडिया को एक नोटबुक में लिखते थे , फिर उसमें थोडा सुधार करके दूसरी नोटबुक में और फिर फाइनल कविता को तीसरी नोटबुक में . उनकी इसी आदत ने उन्हें एक महान कवी बना दिया .

आपकी आदतें और आपका रूटीन आपके क्रिएटिविटी वर्क की नीव है , आइये अब कुछ ऐसी इन्सपायरिंग बातें क्र लेते हैं जो आपको एनर्जी से भर देंगी ।

छोटे – छोटे आइडियाज को तब तक ढूढ़ते रहें जब तक कि आपको कुछ इंस्पायरिंग ना मिल जाए

अपने प्रोजेक्ट बॉक्स में रखने के लिए कुछ ढूँढते वक़्त आप ऐसा फील करेंगे जैसे आप किसी लौटरी की उम्मीद में हों . आपको ये भी नहीं पता कि आप असल में ढूँढ क्या रहे हैं और आप ये भी नहीं जानते कि आपको क्या मिलेगा . इसलिए बस इतना ही जरुरी है कि आप ढूंढते रहे क्या पता किस्मत नें आपके लिए कुछ मजेदार रखा हो . मजे की बात तो ये है कि आप अपने आस – पास किसी में भी और किसी चीज़ में भी कुछ भी ढूँढ सकते हैं क्या पता कौन आपको सही रास्ता दिखा दे . नयी – नयी चीजें करके देखें और तब तक कर के देखें जब तक कि आपको कुछ मजेदार नहीं मिल जाता . जैसे एक लेखक नयी लाइन लिख कर मिटाता रहता है जब तक उसे एक सटीक लाइन नहीं मिलती या एक कोरियोग्राफर तब तक नए मूव्स ट्राय करता है जब तक एक अच्छा डांस स्टेप न बन जाए . क्या होगा कैसे होगा सबको पसंद आएगा कि नहीं इन सब की चिंता किये बिना आप बस अपने मन की सुनते जाएँ।

रोज़ अपने काम से जुड़े आर्टिकल पढ़ें , लोगों की बातें सुनें , कभी समय निकाल कर फील्ड ट्रिप पर जाएँ कभी नेचर को निहारें . यानी आप कहीं से भी कुछ ढूँढ सकते है बस आपको चीज़ों को अपने आईडिया के साथ जोड़ कर देखना है . एक और जरुरी बात ये है कि हर आईडिया आपके बॉक्स में नहीं जायेगा . आपको ये देखना होगा कि कौनसे आईडिया ऐसे हैं जिनसे और कई नए आइडियाज का जन्म हो सकता है , उसे बॉक्स में डालें और जो आपके काम के नहीं हैं उन्हें छोड़ दें . आइडियाज को ढूँढते हुए आपको ये भी ध्यान रखना होगा कि बाहर आपको केवल छोटे – छोटे आइडियाज ही मिलेंगे उसे अपनी मेहनत और स्किल से अपने बेस्ट वर्क में बदलने की जिम्मेदारी तो आपकी है . खुद पर कंट्रोल रखें और खुले दिल से प्लानींग करें . आर्गेनाइजेशन और प्रॉपर प्लानिंग क्रिएटिव लोगों के लिए बहुत जरुरी है . लेकिन , जरुरत से ज्याद प्लानिंग थोड़ी खतरनाक भी हो सकती है . अगर आप अपने नए प्रोजेक्ट के लिए एक अच्छे माहौल का इंतज़ार करते हुए प्लानिंग ही करते रह गए तो हो सकता है कि आप स्टार्टिंग लाइन पर ही खड़े रह जायें . कभी – कभी क्रिएटिविटी के लिए आपने जो प्लान किया था उसे छोड़ कर , जो सामने है उससे डील करना पड़ता है . अगर आप एक ही चीज़ को पकड़ कर बैठ गए तो अपना काम कभी नहीं खत्म कर पाएंगे . जैसे लेखिका ने एक बार एक कंपोजर के लिए ‘ द हॉलीवुड किस ‘ नाम का एक डांस पीस तैयार करने का प्लान किया . करीब 6 हफ़्तों की मेहनत के बाद उन्हें एहसास हुआ कि इस प्रोजेक्ट का कुछ नहीं हो पा रहा तो उन्होंने उस आईडिया को छोड़ कर अगले पर काम करना शुरु कर दिया .

जब तक आप पुरानी चीज़ों को जाने नहीं देंगे तब तक आप शुरुवात नहीं कर पाएंगे . क्यूंकि , जब पुराना आईडिया दिमाग से जाएगा तभी तो नया आएगा . क्रिएटिविटी के बारे में एक बहुत , मजेदार बात है कि आपके पास समय और रिसोर्सेज जितने कम हों उतना ही नया और इनोवेटिव आईडिया निकल कर आता है . जैसे अगर एक लेखक के सर पर प्रोजेक्ट कम्पलीशन की डेडलाइन लटक रही हो तो वो कम से कम समय में बेहतर काम कर सकता है . वहीं दूसरी ओर अगर कोई डेडलाइन नहीं हो तो बहुत अच्छा लिखने की चाह में वो अपना आर्टिकल कभी ख़त्म ही नही कर पायेगा . ऐसा ही कुछ लेखिका की लाइफ में भी हुआ . 1965 के दौर में जब उन्होंने अपना करियर शुरु किया था तब अपना पहला डांस उन्होंने बिना पैसे , बिना स्टेज और बिना किसी अच्छा लोकेशन के किया था . लेकिन वो डांस इतना कमाल का था कि वो उनकी सफलता की पहली और सबसे मजबूत सीढ़ी साबित हुआ . अगर आपका इरादा मजबूत है और आपके अन्दर कुछ पाने की जिद्द है तो आपकी क्रिएटिव प्रॉब्लम का जवाब आपके पास खुद ब खुद चलकर आ जाता है . जैसे गुडइयर टायर के फाउंडर चार्ल्स गुड इयर के साथ हुआ था . 1839 में अपने सालों के एक्सपेरिमेंट के बाद गुड इयर के हाथों अचानक एक दिन गोंद और सल्फर का डब्बा स्टोव पर गिर गया और वहीं से उन्हें वल्कनाइजड टायर का आईडिया मिला . लेकिन अपनी जिद के रास्ते पर चलते समय आपको इस बात का भी ध्यान रखना है कि कहीं आप किसी डेड एंड पर न पहुँच जायें , यानी आपके पास हमेशा एक प्लान B भी होना चाहिए . जैसे अगर आप एक नॉवेल नहीं पूरी कर पा रहे तो उसे शोर्ट स्टोरी बना दें या फिर अगर आप लिखते – लिखते किसी करैक्टर में ज्यादा ही खो गए तो पेज काउंट से ना डरें उस स्टोरी को नॉवेल बना दें।

तो बस कुछ क्रिएटिव करने की जिद पर अड़े रहे लेकिन अपने दिल और दिमाग को हमेशा नए बदलाव के लिए खुला रखें .

अपने प्रोजेक्ट का बेस बनाने के बाद आप अपनी स्किल पर काम करें

जब आपने अपने आईडिया को ढूंढ निकाला और उस पर पूरी रिसर्च कर के तयारी कर ली तो समझिये आपके प्रोजेक्ट का बेस तैयार हो गया . आपके प्रोजेक्ट का बेस यानी वो कहानी जो आप अपने दर्शकों को सुनाना चाहते हैं . ये उस इन्स्पीरेशन की तरह है जो आपको सही ट्रैक पर रखेगी और आपका ध्यान इधर – उधर नहीं भटकने देगी . जैसे टाइटैनिक फिल्म का बेस टाइटैनिक जहाज़ था लेकिन उसका मेसेज था सच्चा प्यार . इसी तरह आपके प्रोजेक्ट का बेस और आपकी कहानी का असल मेसेज दोनों अलग भी हो सकते हैं . सीधी भाषा में कहें तो आपका बेस यानी वो चीज़ जिसके इर्द – गिर्द आपका सारा काम घूमेगा . अपना बेस तैयार करने के बाद सीधा अपने काम की बारीकियों में ना घुस जायें , उससे पहले ये देख लें की अपने काम को पूरा करने के लिए आपको कौन – कौन से स्किल की जरुरत पड़ेगी . बिना सही स्किल के आप अपना काम अच्छे से पूरा नहीं कर पाएंगे . ज़ाहिर सी बात है कि आपके पास जितने ज्यादा स्किल होंगे आपके पास उतने आप्शन होंगे . लेकिन किसी बड़ी स्किल को सीखने से पहले उसकी बेसिक बातों पर मास्टरी करना जरुरी है . जैसे हेड शेफ बनकर नए – नए डिशेस ट्राय करने से पहले आपको सही ढंग से सब्जियाँ काटना आना तो जरुरी है न ।

अब सवाल उठता है कि स्किल पर मास्टरी कैसे की जाये . तो इसका जवाब है उस काम की प्रैक्टिस कर के . आप किसी काम को जितनी बार करेंगे आप उसमें उतने ही माहिर होते चले जायेंगे . इसका एक और पहलु ये है कि आप अपनी क्रिएटिव आइडेंटिटी से जुड़े जितने नए – नए कामों को खुद कर के देखेंगे आप उतने ही नए स्किल सीखते जायेंगे . लेखिका ने भी ऐसे ही एक नयी स्किल सीखी थी . एक बार एक लाइटिंग डायरेक्टर ने डांसरों के एजिट के समय लाइट बंद करने से मना कर दिया और लेखिका को कहा कि वो खुद कर लें . इससे हुआ ये कि लेखिका को ऐसा नया आईडिया आया कि उन्होंने बिना लाइट बंद किये भी डांसरों को डांस के साथ ही एंट्री और एग्जिट करने का हुनर सिखा दिया . तो जल्दी से सोचें कि आपके प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए आपको कौन – कौन सी स्किल की जरुरत पड़ने वाली है और उनमें से आपके पास कितनी है . अगर कोई जरुरी स्किल आपके पास नहीं है तो आप उसके बदले क्या करने वाले है अपने प्रोजेक्ट को कैसे ख़त्म करने वाले हैं . लकीर के फ़क़ीर ना बनें और अपनी कल्पनाओं से बाहर आयें . बड़े से बड़े क्रिएटिव इंसान को भी अपने प्रोजेक्ट्स के समय कई बार मुश्किलों का समाना करना पड़ता है . कभी किसी को राइटर ब्लाक मिलता है , तो किसी को सही बैलेंस नहीं मिल पाता तो किसी को वो घुन नहीं मिल पाती . इन्हीं प्रोब्लेम्स में से एक है अपने रोज़ मर्रा के रुटीन में फसना जिसे लेखिका ने ‘ स्टक इन अरट ‘ का नाम दिया है ।

अपने प्रोजेक्ट का मास्टर प्लान तैयार करते समय हम खुद के लिए एक रास्ता चुनते हैं जिस पर चलकर हम अपना प्रोजेक्ट कम्पलीट करेंगे . लेकिन कभी – कभी होता ये है कि हम सबकुछ कर भी रहे होते हैं , सब ठीक ढंग से भी चल रहा होता है लेकिन फिर भी हमें ये महसूस होता है कि हमारा प्रोजेक्ट प्रोग्रेस ही नहीं कर रहा . पर ऐसा क्यूँ होता है ? हो सकता है आपका आईडिया ही सही ना हो या आपकी टाइमिंग गलत हो या इस बार लक नें आपका साथ ना दिया हो . ज्यादातर , हम इसलिए फँस जाते हैं क्यूंकि हम पुरानी स्ट्रेटेजी के हिसाब से काम कर रहे होते हैं . हमनें अपने प्लान को नए माहौल के हिसाब से तैयार नहीं किया होता . अगर एक सेल्समेन अपनी देखी परखी हुयी तकनीक इस्तेमाल कर रहा हो लेकिन अब वो काम ना कर रही हो तो हो सकता है कि उसका प्रोडक्ट जिस काम के लिए था अब कस्टमर्स को उसकी जरुरत ही नहीं . इसलिए समय के साथ चलना बहुत जरुरी है , वरना आप फँस जायेंगे . इस प्रॉब्लम से बाहर निकलने के लिए अपनी इमेजिनेशन पॉवर का इस्तेमाल करें आपने पुराने बिलीफ सिस्टम को चैलेंज करें और नये आइडियाज सोचें . आप जितना सोच सकते हैं उतने आइडियाज सोचें सबको नोट डाउन करें और फिर देखें कि आज के माहौल के हिसाब से कौनसा फिट है . ऐसा करने से आपकी प्रॉब्लम सॉल्विंग स्किल बढ़ेगी .

जैसे लेखिका ने अपने स्टूडेंट्स की इमेजिनेशन पॉवर देखने के लिए उन्हें एक लड़की के स्टूल के 60 यूज़ बताने को कहा . शुरू के 4-5 यूज़ तो आम से थे जैसे बैठने के लिए , उसपर खड़े होने के लिए . लेकिन जैसे – जैसे उनकी इमेजिनेशन और आगे बढती गयी तो बहुत ही मजेदार यूज़ निकल कर आये जैसे जिमनास्टिक करने के लिए , किसी शेर को ट्रेनिंग देने के लिए . तो ऐसे ही आप भी लकीर के फ़कीर न बनें और अपनी इमेजिनेशन से कुछ नया सोचते रहे , फिर शायद आप कहीं फसे ही ना .

अपने फेलियर से सीखें कि आप क्या कर सकते है और जो नहीं कर सकते उन्हें भूल जायें

जायें एक बढ़िया प्लानिंग , एक अच्छा बेस और गुड लक इन सबके होते हुए भी कई बार हमारा प्रोजेक्ट फ्लॉप हो सकता है . पर इससे घबराने की या निराश होने की जरुरत नहीं है क्यूंकि फेलियर भी प्रोडक्टिव हो सकते हैं . अगर आपका फेलियर प्राइवेट है यानी आपने कुछ किया और उसके रिलीज़ से पहले ही वो प्रोजेक्ट फेल हो गया तो वो प्राइवेट फेलियर है , यानी इसके बारे में सिर्फ आपको ही पता है . ऐसे फेलियर आपको बहुत कुछ सिखा जाते हैं और साथ में आपको दर्द भी कम होता है . जैसे आपका फ्लॉप आईडिया या आपकी लिखी 3000 वर्ड्स का आर्टिकल जिसमें बस तीन ही अच्छे सेंटेंस हों . पब्लिक फेलियर में दर्द थोडा ज्यादा होता है क्यूंकि इसके बारे में पूरी दुनिया जानती है . लेकिन , जितना बड़ा दर्द उतनी बड़ी सीख , अक्सर पब्लिक फेलियर हमें फिर से कुछ नया करने का रास्ता दिखाते है . पब्लिक फेलियर से हमें अपनी कमियों का पता चलता है .

कभी – कभी तो पब्लिक फेलियर हमें ऐसी गलती दिखा देते हैं , जिन्हें हम कबसे नज़रंदाज़ करते आये हों . जैसे शिकागो में अपने शो ‘ मोविन आउट ‘ का प्रीव्यू रिलीज़ करते समय लेखिका को पता था कि इसमें अभी कुछ कमियाँ हैं पर उन्होंने सोच कर नज़रंदाज़ कर दिया की दर्शकों का ध्यान उसपर नहीं जायेगा . लेकिन ऐसा हुआ नहीं क्रिटिक ने जमकर उनके शो का मजाक बनाया . लेखिका को इससे सीख मिली की चाहे कमी कितनी भी छोटी हो उसे नज़रंदाज़ करना खतरनाक हो सकता है . उन्होंने अपने पुरे शो को रिव्यु किया और फीर वो शो इतना हिट हुआ कि उन्हें उसके लिए टोनी अवार्ड भी मिला . इसलिए फेलियर भी जरुरी है ताकि आप अपना स्किल सेट बढ़ा सकें और अपनी कमियों पर काम कर सकें . फेलियर को निराशा की नज़रों से ना देखें ये ना सोचें की आपसे क्या नहीं हुआ ये सोचें अब आप और क्या कर सकते हैं . फेल सब होते हैं लेकिन जोफेलियर से सीखते हैं वो ही सक्सेसफुल होते हैं .

कुल मिलाकर

टैलेंट और टेक्निकल स्किल जरुरी हैं लेकिन केवल इनसे ही आप एक सक्सेसफुल आर्टिस्ट नहीं बन सकते . अगर आप कुछ बड़ा करना चाहते हैं तो सबसे पहले खुद को पहचानें , हाई – वर्क करें और अपने काम को आपनी आदतों में शामिल कर लें .

क्या करें ?

कल की थोड़ी तैयारी आज ही कर लें .

अपना काम ख़त्म करने के बाद आप अपने नेट आईडिया का नोट कल के लिए बना कर रखें . अगले दिन उठते ही आप उस नोट को पढ़ें , इस तरह से आप आज के काम को कल के काम से जोड़ पाएंगे . अपने रोल मॉडल से सीखें . किसी भी फ़ील्ड में जाने से पहले आप अपने रोल मॉडल के काम को बारीकी से देखें और उनके स्किल को सीखें . जैसे अगर आप एक राइटर हैं तो अपना पसंदीदा आर्टिकल पढ़ें और उसमें से वर्ड सिलेक्शन और सेंटेंस बनाना सीखें .

 

 

 



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